महत्व :-
- हिंदू धर्म में व्रत और त्योहारों का बहुत महत्व होता है. अलग अलग व्रत और त्योहारों को लेकर अलग-अलग मान्यताएं होती हैं.
- हर व्रत के अलग अलग देवता होते हैं. सभी व्रतों का अलग-अलग महत्व और अलग-अलग पूजन विधि होती है. जिसका पालन करना बहुत जरूरी होता है.
- आज हम आपको हिंदू धर्म में किए जाने वाले प्रदोष व्रत के बारे में बताने जा रहे हैं. कभी-कभी प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से मिलने वाले फल अलग अलग होते हैं|
प्रदोष व्रत स्कन्द पुराण के अनुसार :-
- स्कंद पुराण में हिंदू धार्मिक तथ्यों के अनुसार प्रदोष व्रत का उल्लेख किया गया है.
- स्कंद पुराण में बताया गया है कि हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत कहा जाता है.
- प्रदोष व्रत शिव जी को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए किया जाता है.
प्रदोष व्रत करने के फल :-
- जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन व्रत करके एकाग्र चित्त मन से शिव पूजा की कथा को पढता या सुनता है उसे 100 जन्मों तक कभी भी दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता है.
- प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के जीवन के सभी कष्ट और तकलीफ से दूर हो जाती हैं.
- शिव जी अपने भक्तों के जीवन में कभी भी कोई समस्या नहीं आने देते हैं.
- प्रदोष व्रत एक बहुत ही महान व्रत है. इससे जुड़े सत्य बहुत ही रोचक है.
दिन के अनुसार प्रदोष व्रत :-
- ऐसा माना जाता है की जिस दिन प्रदोष व्रत आता है उसके आधार पर इस व्रत का नाम और महत्व बदलते रहते हैं:
- अगर रविवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ रहा है तो इसे करने से आपको कभी भी कोई बीमारी नहीं होगी. इस व्रत को रवि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है.
- अगर सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ रहा है तो इसे करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. मंगलवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष व्रत को रखने से रोग मुक्ति के साथ साथ जीवन में खुशहाली आती है.
- अगर बुधवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ रहा है तो इसे करने से आपकी सभी कामनाएं सिद्ध होती हैं.
- बृहस्पतिवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है.
- शुक्रवार के दिन पढ़ने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य वृद्धि का प्रतीक होता है. इस व्रत को करने से आपके वैवाहिक जीवन में कभी भी कोई भी समस्या नहीं आएगी और आपका दाम्पत्य जीवन हमेशा खुशहाल बना रहेगा.
- अगर शनिवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ रहा है तो इस व्रत को करने से आपको पुत्र की प्राप्ति होगी.
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भी आपको प्रदोष व्रत करना हो तो उस दिन पढने वाली त्रयोदशी तिथि का चुनाव करना उत्तम होता है. उसी दिन के अनुसार कथा पढ़ी और सुनी जानी चाहिए. ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी.
व्रत के नियम :-
- सूर्यास्त के बाद रात होने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है.
- प्रदोष व्रत में शिवजी की पूजा करने का नियम है.
- आप शिव जी की मूर्ति की पूजा भी कर सकते हैं.
- जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है उसे पूरा दिन निर्जल व्रत रखना होता है.
- सुबह नहाने के बाद बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप दीप के साथ पूरे हृदय से शिवजी की पूजा करनी चाहिए.
- शाम के समय दोबारा नहाकर इसी विधि से शिवजी की पूजा करनी चाहिए.
- इस तरह से प्रदोष व्रत करने वाले मनुष्य को पुण्य मिलता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
प्रदोष व्रत की मान्यताएं :-
- प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है. प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में सबसे शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है.
- हमारे धर्म पुराणों में बताया गया है कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत करता है और उस दिन भगवान शिव की सच्चे ह्रदय से पूजा करता है उस व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि प्रदोष व्रत रखने से दो गायों का दान करने के समान पुण्य मिलता है.
- प्रदोष व्रत को लेकर हमारे धर्म पुराणों में बताया गया है कि जब चारों ओर अधर्म, पाप, अन्याय और अनाचार फैला होगा और मनुष्य पूरी तरह से स्वार्थी हो जाएगा, व्यक्ति सत्कर्म करने की जगह गलत कार्य ज्यादा करेंगे, उस समय जो भी मनुष्य प्रदोष व्रत करके शिवजी की पूजा करेगा उसके ऊपर शिव की कृपा हमेशा बनी रहेगी.
- प्रदोष व्रत को करने वाला मनुष्य जन्म जन्मांतर के चक्कर से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ता है और उसे अंत में स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है.
- अगर आप लम्बी उम्र पाना चाहते हैं तो रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को ज़रूर करें. ऐसा करने से आपको लंबी उम्र और अच्छी सेहत मिलगी.
- निरोगी काय प्राप्त करने से लिए सोमवार के दिन त्रयोदशी तिथि पर आने वाले प्रदोष व्रत को करना उत्तम होता है. इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं
- शुक्रवार के दिन पढ़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में हमेशा सुख शांति बनी रहती है.
- अगर आप अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए प्रदोष व्रत करते हैं तो व्रत से मिलने वाले फल और भी ज्यादा हो जाते हैं.
प्रदोष व्रत विधि :-
- जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत को करता है उसे त्रयोदशी तिथि के दिन सूर्य निकलने से पहले उठना चाहिए.
- नित्य कर्म को निपटा कर अपने मन में भगवान भोलेनाथ का ध्यान करना चाहिए.
- प्रदोष व्रत को निराहार किया जाता है.
- पूरा दिन व्रत करने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले दोबारा स्नान करके सफेद वस्त्र पहने.
- अब पूजन स्थल को गंगाजल से साफ करने के बाद गाय के गोबर से लीप कर मंडप बनाएं.
- अब इस मंडप के नीचे पांच रंगो का इस्तेमाल करके रंगोली बनाएं.
- प्रदोष व्रत की पूजा करने के लिए हमेशा कुशा के आसन का इस्तेमाल करना चाहिए.
- अब उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके भगवान शिव का पूजन करें.
- भगवान शिव के पूजन में ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए शिवजी को जल चढ़ाएं.
- प्रदोष व्रत को 11 या 26 त्रयोदशी तिथि तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करें.
- इस बात का ध्यान रखें कि व्रत का उद्यापन हमेशा त्रयोदशी तिथि पर ही करें.
- प्रदोष व्रत का उद्यापन करने से 1 दिन पहले गणेश जी का पूजन करने का नियम है.
- व्रत से 1 दिन पहले पूरी रात कीर्तन करते हुए जागरण करें.
- सुबह जल्दी उठकर केले के पत्तों से मंडप बनाएं.
- मंडप को खूबसूरत वस्त्रों से सजाकर इसके नीचे रंगोली बनाएं.
- अब 108 बार "ओम उमा सहित शिवाय नमः” का जाप करें और फिर हवन करें.
- हवन में आहुति देने के लिए खीर का इस्तेमाल करें.
- हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती करके शांति पाठ करें.
- सबसे अंत में दो ब्राह्मणों को भोजन करवाकर अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करें.
प्रदोष व्रत कथा :-
पुराने समय में एक बहुत ही गरीब विधवा ब्राह्मणी थी. जीवन यापन करने के लिए वह विधवा ब्राम्हणी अपने पुत्र को साथ लेकर सुबह सुबह भिक्षा लेने निकल जाती थी और शाम होने पर अपने घर वापस आती थी .एक दिन जब वह विधवा ब्राह्मणी भिक्षा लेकर घर वापस आ रही थी तो उसे एक नदी के समीप एक खूबसूरत बालक बैठा दिखाई दिया पर वह विधवा ब्राह्मणी उस बालक को नहीं पहचानती थी. वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्म गुप्त था. धर्म गुप्त को शत्रुओं ने युद्ध में हराकर उसे उसके राज्य से बाहर निकाल दिया था. एक युद्ध में धर्म गुप्त के शत्रुओं ने धर्म गुप्त के पिता की हत्या करके उसका राज्य छीन लिया. पिता की मृत्यु से धर्म गुप्त की माता को आघात लगा और उनकी भी मृत्यु हो गई. तब धर्म गुप्त अपना राज्य छोड़ कर एक नदी के किनारे उदास बैठा था. ब्राह्मणी को उस बालक पर दया आ गई और वह धर्म गुप्त को अपने घर ले गई और उसका पालन पोषण करने लगी. विधवा ब्राह्मणी धर्म गुप्त से अपने पुत्र के समान प्रेम करती थी. राजकुमार धर्म गुप्त भी उस विधवा ब्राह्मणी के साथ रहकर खुश थे. कुछ समय के बाद वह विधवा ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ मंदिर में दर्शन करने गई. मंदिर में उन्हें ऋषि शांडिल्य मिले. ऋषि शांडिल्य एक बहुत ही महान ऋषि थे. जिन्हें सभी कोई मानते थे. जब ऋषि शांडिल्य ने धर्म गुप्त को देखा तब उन्होंने विधवा ब्राह्मणी को बताया कि यह बालक विदर्भ देश के राजा का पुत्र धर्म गुप्त है. इसके पिता युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए हैं. ऋषि शांडिल्य ने विधवा ब्राह्मणी को धर्म बुद्ध गुप्त की माता की मृत्यु के बारे में भी बताया. जब विधवा ब्राह्मणी को यह सभी बातें पता चली तो वह बहुत दुखी हुई. सब ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत के बारे में बताया. शांडिल्य ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए विधवा ब्राह्मणी और दोनों बालकों ने प्रदोष व्रत करना आरंभ किया. तीनों ऋषि शांडिल्य द्वारा बताए गए नियमों का पालन करते हुए व्रत करने लगे पर उन्हें व्रत के फल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. कुछ समय व्यतीत होने के बाद एक दिन वह दोनों बालक जंगल में घूम रहे थे. तब उन्होंने वहां पर कुछ गंधर्व कन्याओं को घूमते हुए देखा. ब्राह्मणी का बालक अपने घर वापस आ गया पर राजकुमार धर्म गुप्त वहीं ठहर गए. धर्म गुप्त गंधर्व कन्या अंशुमती की ओर आकर्षित हो गए और उससे बात करने लगे. बात करते-करते गंधर्व कन्या और राजकुमार दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया. तब धर्म गुप्त अंशुमती से विवाह करने के लिए उसके पिता से मिलने गए. जब अंशुमती के पिता को यह पता चला कि यह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उन्होंने भगवान शिव की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी पुत्री अंशुमती का विवाह धर्म गुप्त से कर दिया. अंशुमती से विवाह होने के बाद राजकुमार चंद्रगुप्त की किस्मत के सितारे वापस पलटने लगे. राजकुमार धर्म गुप्त ने बहुत संघर्ष करके फिर से अपने गंधर्व सेना का निर्माण किया और विदर्भ देश पर आक्रमण करके विजय हासिल की. कुछ समय व्यतीत होने के बाद धर्म गुप्त को यह पता चला कि उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया है वह विधवा ब्राम्हणी और राजकुमार के प्रदोष करने का फल है. उनके प्रदोष व्रत करने से शिव जी ने प्रसन्न होकर उनके जीवन की सभी कठिनाइयों को दूर किया है.
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