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शनि प्रदोष व्रत विधि व कथा on 12 Dec 2020 (Saturday)

प्रदोष का अर्थ है "भारी दोष"| चन्द्रमा को क्षय रोग होने के कारण चंद्र देव अंतिम साँसे गिन रहे थे| तभी भगवान् शंकर ने चन्द्रमा को पुनर्जीवन देकर मस्तक पर धारण किया| चंद्र मृत्यु के निकट जाकर भी भगवान् शिव की कृपा से जीवित रहे और पूर्णिमा के दिन तक पूर्णता स्वस्थ हो प्रकट हुए|

प्रदोष व्रत महत्व

जीवन में शारीरिक मानसिक एवं आधयात्मिक रूप से मज़बूत होने के लिए प्रदोष व्रत कारगर मन गया है|प्रदोष व्रत एक ऐसा व्रत है जो मृत्यु के निकट पोहोंचे हुए मनुष्य को जीवन दान देता है| प्रदोष व्रत हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी को मनाया जाता है| भगवान् शिव की विशेष और अनंत कृपा पाने के लिए यह व्रत कारगर है| हिन्दू धर्म शास्त्रों में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है| इस व्रत को हर माह के दोनों पक्षों को करने से व्यक्ति के जीवन के सब कष्टों का निवारण होजाता है| प्रदोष व्रत का अपना महत्व है, परन्तु दिन के अनुसार पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अपना अलग महत्व होता है|

शनि प्रदोष व्रत विधि


1.        व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठना चाहिये।

2.        स्नान आदिकर भगवान् शिव का नाम जपते रहना चाहिए|

3.        सुबह नहाने के बाद साफ और आसमानी वस्त्र पहनें।

4.        इस व्रत में दो वक्त पूजा करि जाती है एक सूर्य उदय के समय और एक सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में|

5.        व्रत में अन्न का सेवन नहीं करेंगे, फलाहार व्रत करेंगे|

6.        फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और गौरी शंकर भगवान् का सयुंक्त पूजन करें।

7.        शनि देव का पूजन भी करें|

8.        भगवान् शिव माँ गौरी को सफ़ेद व् लाल फूलों की माला अर्पित करें. बेल पत्र अर्पित करें|

9.        भगवान् गणेश दूर्वा अर्पित करें|

10.    सफ़ेद मिठाई (पताशे,रसगुल्ले) फल का भोग लगाएं|

11.    शनि देव को सरसो का तेल अर्पित करें व् मीठे का भोग लगाएं|

12.    शाम के समय पीपल के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं|

13.    घी व् तिल के तेल का दीपक लगाएं, धुप अगरबत्ती भी लगाएं.

14.    भगवान् शिव को चन्दन की सुगंध अर्पित करें|

15.    पूजा में 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करें और जल चढ़ाएं।

शनि प्रदोष व्रत कथा


प्राचीन समय की बात है । एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था । वह अत्यन्त दयालु था । उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था । वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था । लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्‍नी स्वयं काफी दुखी थे । दुःख का कारण था- उनके सन्तान का न होना । सन्तानहीनता के कारण दोनों घुले जा रहे थे । एक दिन उन्होंने तीर्थयात्र पर जाने का निश्‍चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पडे । अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े । दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए । पति-पत्‍नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे । सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी । मगर सेठ पति-पत्‍नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े पूर्ववत बैठे रहे । अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे । सेठ पति-पत्‍नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले- ‘मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं।’साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई और शंकर भगवान की निम्न वन्दना बताई|