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रथ सप्तमी | Rath Saptami on 03 Mar 2024 (Sunday)

जानिए कैसे करें रथ सप्तमी के दिन सूर्यदेव की पूजा

रथ सप्तमी का महत्त्व-

रथ सप्तमी के दिन भगवान् सूर्यदेव की पूजा उपासना की जाती है. मान्यताओं के अनुसार रथ सप्तमी के दिन भगवान् सूर्य देव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे, इसलिए रथ सप्तमी को सूर्य देव के जन्म दिन के रूप में भी मनाते है. शास्त्रों के अनुसार रथ सप्तमी के दिन श्रद्धा पूर्वक सूर्य देव को अर्घ्य देने और पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकानायें पूरी हो जाती है और साथ ही धन और पुत्र रत्न की भी प्राप्ति होती है.

रथ सप्तमी पूजन विधि-

• रथ सप्तमी के दिन प्रातःकाल उठकर नित्य कर्म  से निवृत होकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें.

• अगर आपके घर के आसपास कोई नदी नहीं है तो अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलकर स्नान करें. ऐसा करने से आपको गंगा स्नान के समान ही पुण्य प्राप्त होगा.

• रथ सप्तमी के दिन नदी में स्नान करने के पश्चात् सूर्य देव को दीप दान करने का नियम है. ऐसा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है,

• अगर आप अपनी कोई ख़ास मनोकामना को पूरा करना चाहते हैं तो एक दीपक जलाकर उसे पत्ते के कटोरे में रखे. अब इसे फूल आदि से सजाकर जल में प्रवाहित कर दें.

• अब धुप डीप कपूर, लाल पुष्प आदि से श्रद्धा पूर्वक भगवान सूर्य की आराधना करें

• अब सूर्यदेव को जल से अर्घ्य दें. सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए जल में फल, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि मिला लें

• सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय नीचे दिए गए मन्त्र का जाप करें.

ओम घृणि सूर्याय नम: या ओम सूर्याय नम

• रथ सप्तमी के दिन विधिवत सूर्य देव की पूजा करने के पश्चात् दिनभर उपवास करें.

• अगर आप उपावस करने में सक्षम नहीं हैं तो आप दिन में फलाहार भी कर सकते हैं.

• रथ सप्तमी का व्रत करने से संतान सुख के साथ साथ सौभाग्य में भी बढ़ोत्तरी होती है.

• रथ सप्तमी के दिन अपने गुरु को वस्त्र का दान करें. रथ सप्तमी के दिन गाय दान करने का भी बहुत महत्व माना जाता है.

• कई जगहों पर रथ सप्तमी के दिन महिलाएं सूर्य देवता का स्वागत करने के लिए अपने घरों में सूर्यदेव का और उनके रथ के साथ चित्र बनाती हैं

• महिलायें अपने घरों के मुख्य द्वार पर सुंदर रंगोली बनाती हैं. इस दिन आंगन में मिट्टी के बर्तनों में दूध रख दिया जाता है जिससे दूध में सूर्य के ताप से उबाल जाता है. बाद में इसी दूध से सूर्य भगवान का भोग बनाया जाता है.

कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार, एक स्त्री ने अपने जीवनकाल में कोई दान पुण्य नहीं किया। जब उसे जीवन के अंतिम चरण में इसका बोध हुआ तो वह वशिष्ठ मुनि के पास पहुंची। उसने यह बात उनको बताई। तो उन्होंने उसे अचला सप्तमी यानी रथ सप्तमी व्रत की महिमा बताई। उन्होंने उससे कहा कि अचला सप्तमी व्रत करने से, सूर्य को दीप दान करने से पुण्य लाभ होता है। उसने मुनि के बताए अनुसार, अचला सप्तमी का व्रत रखा और सूर्य देव की विधि विधान से पूजा की। उस व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त हुआ।

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