ऋषि पंचमी व्रत विधि|
1. प्रातः उठ कर अगर संभव हो तो नदी पर जाकर स्नान करें अन्यथा घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. तत्पश्चात घर में ही पूजा स्थान पर पृथ्वी को शुद्ध करके हल्दी से चौकोर मंडल (चौक पूरें) बनाएं। फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना करें।
i. ऋषि विश्वामित्र – इन्होंने गायत्री मंत्र लिखा था और इन्हें भगवान राम और लक्ष्मण के गुरू के तौर पर जाना जाता है।
ii. ऋषि वशिष्ठ – ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के चारों पुत्रों रांम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु थे। इनका जन्म ब्रह्माजी की इच्छा शक्ति से हुआ है।
iii. ऋषि द्रोणाचार्य - कौरवों और पांडवों के गुरू द्रोणाचार्य भी इनमें से एक हैं।
iv. ऋषि अग्सत्य – ऋषि अग्सत्य की भी सप्त ऋषियों में महत्वपूर्ण भूमिका है।
v. ऋषि भृगु – सुबह उठकर ऋषि भृगु का नाम भी ज़रूर लेना चाहिए।
vi. ऋषि कश्यप – कश्यप गोत्र के रचयिता ऋषि कश्यप भी इन्हीं में से हैं।
vii. ऋषि अत्रि – श्रीराम और देवी सीता वनवास के दौरान अत्रि के आश्रम में ही रूके थे। इनकी पत्नी अनुसूइया थी।
3. इसके बाद फूल, धुप, दीप, फल, मिठाई, जल, आदि से सप्त ऋषियों का पूजन करें|
4. तत्पश्चात गायत्री मन्त्र का उच्चारण करें|
5. अब व्रत कथा सुनकर आरती कर प्रसाद वितरित करें।
6. इस दिन निर्जल या फलाहार व्रत करें|
7. इस प्रकार सात वर्ष तक व्रत करके आठवें वर्ष में मिट्टी से सप्त ऋषियों की सात मूर्तियां बनाएं जिसके बीचे में किसी भी पौधे के बीज डालें|
8. उसके बाद कलश स्थापन करके यथाविधि पूजन करें।
9. इस दिन गौ दान करना भी शुभ मन जाता है, यदि आप गौ दान न कर पाएं तो गौ सेवा अवश्ये करें|
10. सात ऋषियों को भोजन कराएं|
11. भोजन कराने के पश्चात बनाई गई मूर्तियों का एक गमले में रख विसर्जन करे| जिस से उन् मूर्तियों की शुभता आपके घर में भी पौधे के रूप में बानी रहेगी|