रोहिणी व्रत
त्यौहार हमारे जीवन को ख़ुशियों से भर देते हैं और आगे बढते की प्रेरणा देते हैं। साथ ही इस बात का संदेश भी देते है कि धर्म व ईश्वर से जुड़े रहना कितना अधिक आवश्यक है । और एक ऐसा ही महत्वपूर्ण व्रत-त्यौहार है रोहिणी व्रत।
रोहिणी व्रत - जैन समुदाय को मह्त्तवपूर्ण त्यौहार –
जैन समुदाय में रोहिणी व्रत महत्वपूर्ण व्रत में से एक है। रोहिणी व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति के लंबे जीवन व खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन महिला सजती और संवरती है। और इस दिन महिलाओं की खुशी देखते ही बनती है । रोहिणी जैन और हिंदू कैलेंडर में सत्ताईस नक्षत्रों में से एक नक्षत्र है।
एक साल में बारह रोहिणी व्रत
यूं तो एक साल में कुल बारह रोहिणी व्रत होते हैं। आमतौर पर रोहिणी व्रत तीन, पांच या सात वर्षों तक लगातार मनाया जाता है ताकि मन चाहे फल मिल सके। रोहिणी व्रत की उचित अवधि पांच साल और पांच महीने है। रोहिणी व्रत को उद्यापन के साथ ही समाप्त करना चाहिए अन्यथा व्रत का फल नहीं मिलता है।
रोहिणी व्रत का महत्तव -
रोहिणी व्रत एक पवित्र भारतीय अनुष्ठान में से एक है और इसे बहुत ही विशेष तरीके से मनया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से जैन समुदाय द्वारा मनाया जाता है लेकिन आजकल अन्य धर्म के लोग भी इसका पालन करते है ताकि ईश्वर का विशेष आशीर्वाद प्राप्त कर सके ।
अनुष्ठान तब शुरू होता है जब रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय के बाद आकाश में उगता है और यह बहुत ही अद्भुत नजारा लगता है। यह आपके प्रकृति के करीब भी ले जाता है। यह घटना सत्ताईस दिनों में एक बार होती है और यह आकाश में देखने पर बहुत ही प्यारी लगती है।
जैनियों के लिए इस 'व्रत' (व्रत) का दिन अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। उनका मानना है कि इस दिन अनुष्ठान करने से व्यक्ति को जीवन में दुख, गरीबी और अन्य बाधाओं से छुटकारा मिल सकता है और इसीलिये इस व्रत के पूरे मन और विश्वास के साथ रखना चाहिये।
जैन और हिंदू कैलेंडर के अनुसार, रोहिणी के शुभ अवसर को सत्ताईस नक्षत्रों में से एक माना जाता है। रोहिणी नक्षत्र का व्रत मार्गशीर्ष नक्षत्र के उदय के साथ समाप्त होता है, जो रोहिणी नक्षत्र के अंत का संकेत है। कुल मिलाकर, साल में कुल बारह रोहिणी व्रत आते हैं।
रोहिणी व्रत कब मनाया जाता है -
रोहिणी व्रत उस दिन मनाया जाता है जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र रहता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग रोहिणी व्रत का पालन करते हैं, वे सभी प्रकार के दुखों और गरीबी से छुटकारा पा सकते हैं। और इसीलिये इस व्रत का बहुत अधिक महत्तव है। रोहिणी नक्षत्र का पारगमन रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र के दौरान किया जाता है।
रोहिणी व्रत का उपवास -
रोहिणी नक्षत्र पर उपवास रखने की प्रथा न केवल उपवास का पालन करने वाले व्यक्ति को, बल्कि परिवार के सदस्यों के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इस दिन उपवास समृद्धि, खुशी और परिवार में एकता बनाए रखने के लिए रखते है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए व्रत भी रखती हैं। जैन घरों में कई महिलाएं अपने घर में राज करने के लिए शांति और शांति के लिए उपवास रखती हैं।
रोहिणी व्रत के अनुष्ठान:
महिलाएं सुबह जल्दी उठती हैं और पवित्र स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनती है।
जैन भगवंतों की एक मूर्ति अर्थात् वासुज्य को प्रार्थना की पेशकश के लिए रखा गया है।
पूजा के बाद महिलाओं का उपवास शुरू हो जाता हैं
और उपवास अगले मार्गशीर्ष नक्षत्र के उदय होने के बाद समाप्त होता है।
रोहिणी व्रत के उपवास के लाभ:
रोहिणी व्रत प्रभु से सुख और आशीर्वाद लेने के लिए मनाया जाता है।
घरों में खुशहाली लाने के लिए इसे महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है।
यह पतियों के लंबे जीवन, बीमारी से उबरने के लिए तथा उनके जीवन से परेशानियों को खत्म करने के लिए रखा जाता है।
लोगों को सभी दुखों और गरीबी से छुटकारा मिलता है।
भक्त अच्छे स्वास्थ्य, धन और भाग्य पाने के लिए और सुखी वैवाहिक जीवन को बनाए रखने के लिए भी प्रार्थना करते हैं।
हम सभी की तरफ से आप सभी को रोहिणी व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ...