Indian Festivals

संवत्सरी पर्व on 23 Sep 2020 (Wednesday)

संवत्सरी पर्व जैन धर्म से जुड़ा एक विशेष त्यौहार है जिसका उद्देश्य है जाने-अनजाने हुयी गलतियों की माफी मांगना। यह त्यौहार पूरी तरह दोस्ती, माफी और प्यार का संदेश देने वाला त्यौहार है।

क्या है संवत्सरी पर्व-

यह त्यौहार क्षमा (माफी मांगना और देना), आहिंसा (प्यार के साथ और बिना हिंसा के) और मैत्री (दोस्ती) का त्यौहार है। कहना गलत ना होगा कि यह त्यौहार बाकी त्यौहारों से एकदम अलग है क्योंकि समाज को एक मौका देता है जहां पर गलतियों के सुधारने की गुंजाइश होती है। जैन धर्म के श्वोताबंर पंथ अपने इसे अनोखे त्यौहार से बाकी धर्मों को भी काफी प्रभावित करता है। यह त्यौहार समाज में एकता बढाने के लिये है।

क्या करते है इस दिन-

क्या है 'मिच्छामी दुक्कड़म' का अर्थ है- मिच्छामा का अर्थ है माफी देना और दुक्ड़म का अर्थ है गलतियों की। यानि की मेरे ओर से की गई किसी भी तरही की गलती जो शायद जाने-अनजाने हो गई हो उसके लिये मैं क्षमाप्राथी हूँ। 

जैन धर्म के अनुसार पर्युषण पर्व के आखिरी दिन को क्षमावाणी दिवस यानि संवत्सरी पर्व के रुप में मानाया जाता है। इस दिन सभी लोग एक-दूसरे से जाने-अनजाने हुयी गलतियों लिये 'मिच्छामी दुक्कड़म' कहकर माफी मांगते हैं। इसका अर्थ है कि यदि किसी ने भी किसी का अपने मन, वचन,काया का प्रयोग करते हुये किसी का भी जाने-अनजाने दिल दुखाया है तो इस दिन माफी मांगने से माफी मिल जाता है।

  •   इस दिन लोग पूजा-अर्चना करते हैं
  •   कुछ लोग उपवास भी रखते है
  •   इस दिन सभी लोग अपने मन से क्रोध व निंदा के भाव को त्याग कर अपना मन साफ रखते है

क्यों मनाना चाहिये स्वत्सरी जैन –

इस त्यौहार को मनाने का सबसे बड़ा कारण है कि यह समाज के लोगों को एक-दूसरे के करीब लाता है। लोगों में एक-दूसरे के प्रति किसी भी प्रकार का वैर-भाव नहीं रहता है क्योंकि माफी मांगने से दिल साफ हो जाता है और माफ करने से मन का भार कम हो जाता है। यह त्यौहार बाकी त्यौहारों से काफी अलग है और एक विशेष महत्व रखता है।

  • यह त्यौहार हमें सीखाता है कि हम अकेले कुछ भी नहीं हैं औऱ आगे बढने के लिये सबका एक साथ होना बहुत जरुरी है। कहना गलत ना होगा कि यह त्यौहार बाकी त्यौहारों से भी ज्यादा खास है क्योंकि एक स्वस्थ समाज ही एक खुशहाल समाज की नींव रखता है ।
  • आसान शब्दों में कहें तो इस त्यौहार का एकमात्र उद्देश्य है मनुष्य की आत्मा का विकास। माफी मांगने से और देने से आत्मा का भार कम हो जाता है और वह स्वतंत्र हो जाती है। जब एक आत्मा स्वंय में खुश व चिंतामुक्त होती है तो वह इंसान को जीवित होने का बोध कराती है।
  • एक खुशहाल इंसान ही दूसरों को शुशियां बांट सकता है। इस विशेष दिन सभी लोग अपनी क्षमता के अनुसार अपनी आत्मा की शुद्धि करते हैं। क्षमा मांगने से कोई छोटा नहीं होता है किंतु क्षमा करने से आपका कद अवश्य बढ जाता है। क्षमा करने से क्रोध का त्याग होता है, वहीं क्षमा मांगने से आपके अंदर के अहंकार का।