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सत्य नारायण व्रत | Satya Narayan Vrat on 12 Feb 2025 (Wednesday)

टिप्पणीः - भगवान सत्यनारायण व्रत की कथा किसी भी दिन वैसे श्रद्धा भक्ति के साथ की जा सकती है, किन्तु पूर्णिमा तिथि इसके लिए प्रशस्त मानी गई है। इस कथा का श्रवण प्रथम दाम्पत्य जीवन मे बंधने वाले दंपत्ति, प्रथम वधु प्रवेश, में किया जाता है। इसके अतिरिक्त दुःखों से मुक्ति पाने और सुखों मे वृद्धि करने हेतु इस व्रत का अनुष्ठान प्रत्येेक माह की पूर्णिमा तिथि में भी किया जाता है। यदि किसी को दुःखों को मुक्ति न मिल रही हो तो वह किसी विद्धान व संस्कारित पंड़ित के सहयोग से वर्ष पर्यन्त या उससे अधिक समय तक प्रत्येक पूर्णिमा के दिन षोड़षोपचार विधि से पूजन करते हुए भगवान श्रीसत्यनाराण व्रत की कथा सुनें तो उसे चमत्कारिक फल प्राप्त होगा।   

।। श्री सत्यनारायण व्रत महत्व।।
सत्य सनातन धर्म जीव व जीवन के सृजन करता ईश्वर के बारे में अनेकों तथ्यों को समेटे हुए है। जिसके अध्ययन व अनुसरण से मानव अटूट सत्य जन्म-मृत्यु के बंधनों से सहज ही छुटकारा पा लेता है। भ्रम व भौतिकता की चादर ओढ़ मानव अनेक जन्मों तक नाना प्रकार के दुःख को भोगता है। अधिदैविक (आँधी, तूफान, भूकम्प, बाढ़ादि दैविक शक्तियों व प्रकृति) द्वारा, अधिभौतिक (वायुयान, जलयान, रेल, व अन्य वाहन,) भौतिक साधनों द्वारा ये अधिभौतिक दुःख कहे गए हैं। इसी प्रकार घर, परिवार, शरीर में उत्पन्न रोग, व्याधि, हार्ट अटैक, रक्तचापादि, शुगर, जिससे नाना प्रकार के मानसिक व शारीरिक कष्ट मिलते हैं उन्हें विद्वानों ने दैहिक दुःख कहा है। विविध प्रकार के दुःखों से दुखी भटकते हुए जीवन के लिए सत्यसनातन धर्म के वेद, पुराणों, शास्त्रों, कथाओं व प्रसंगों में बडे़ ही रोचक व सत्य तथ्य उपलब्ध हैं। जिनका अनुसरण ध्यान, मनन, कीर्तन, चिंतन करते हुए व्यक्ति सुकर्मों की ओर अग्रसर होता है। जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्यता व आयु बढ़ती है तथा स्त्री, पति, पुत्र, धन, वैभव भी बढ़ता है। इसी प्रकार अति विशिष्ट व महत्त्वपूर्ण व्रत कथा सत्य नारायण व्रत कथा है जिसके श्रद्धा विश्वास पूर्वक व्रत करने तथा सत्य नारायण व्रत की कथा कहने या सुनने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कुल (वंश ) में वृद्धि, व्यावसाय में लाभ तथा नाना प्रकार के रोगों से छुटकारा भी मिलता है।  
 
पूजा की सामग्रीः-
केले के खम्बे, फल (कदली स्तम्भ), पान व आम के पत्ते, सुपारी, लौंग, इलाइची, कलश, चावल, धूप, दीप, रूई, देसी घी, सुगंधित पुष्पों की माला, गुलाब के फूल, हल्दी, यज्ञोपवीत, वस्त्र, मलयागिरि चंदन, पांच रतन, कपूर, रोली, मौली, स्वर्ण प्रतिमा, शुद्ध व पवित्र जल, गंगाजल, पंचामृत- दूध, शहद, दही, घी, चीनी, तुलसी दल, पांच प्रकार के फल व पंच मेवा। 
 
 
प्रसादः - गेंहू के आटे (गोमधूचूर्ण) को जिसे देसी घी में भूनकर व शक्कर से भली-भांति मिलाकर बनाएं।
 
पूजन विधिः - प्रातः या सायंकाल पूर्णिमा, संक्राति तिथि या फिर किसी भी दिन श्रद्धा विश्वास के साथ इस व्रत कथा का संकल्प लिया जा सकता है। विवाहोपरान्त अर्थात् नववधू के आने पर व अन्य अवसरों पर इस कथा को विधिपूर्वक कहा या सुना जा सकता है। किन्तु सभी अवसरों पर स्नानादि नित्यक्रियाओं से निवृत्त होकर पूर्व या उत्तर दिषा की ओर मुंह करके पूजा स्थल पर शुद्ध आसन बिछाकर बैंठे। फिर श्रीगणेश, गौरी, वरूण, विष्णुादि सब देवताओं का ध्यान व पूजा करें। कि मैं श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा कथा सदैव श्रवण करूंगा। विवधि प्रकार के फल, फूल, गंध, धूप, दीप, नैवेद्य, वस्त्राभूषण, यज्ञोपवीत, द्रव्य (पैसा) अर्पित कर भगवान सत्य नाराण से प्रार्थना करें कि हे अन्नत ईष्वर! मैनें जो श्रद्धा भक्ति व विष्वास द्वारा जो सामग्री भेंट की हैं उसे स्वीकार करें, आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है, नमस्कार है। ऐसा कहते हुए कथा सपरिवार सुननी या पढ़नी चाहिए।
 
यह कथा सात अध्याय की हैं, जिसमे पांच अध्याय ही प्रमुख रूप से कहे जाते हैैं। कथा बड़ी ही रोचक व सुन्दर है जिसे आप किसी भी मंदिर या दुकान या संबंधित व्यक्ति से प्राप्त कर सकते हैं।
 
प्रथम अध्याय का आरम्भ इस प्रकार है-
एक समय नैमिशारण्य तीर्थ में शोणनकादि अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्रीसूत जी से पूछा- ”हे प्रभु! इस कलियुग में वेद-विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ! कोई ऐसा तप कहिए जिस में थोड़े समय में पुण्य हो तथा मनोवांछित फल भी मिले, वह कथा सुनने की हमारी प्रबल इच्छा है।
 
।। दूसरा अध्याय।।
सूतजी बोले हे ऋषियों! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया है उसका इतिहास कहता हँू। ध्यान से सुनो! सुन्दर काषीपुरी नगरी में एक अतिनिर्धन ब्राह्मण रहता था। वह भूख और प्यास से बचैन हुआ नित्य ही पृथ्वी पर घूमता था। ब्राह्मणों को पे्रम करने वाले भगवान ने ब्राह्मण को दुःखी देख कर बूढ़े ब्राह्मण का रूप धर उसके पास जा आदर के साथ पूछा हे। विप्र! नित्य दुखी हुआ पृथ्वी पर क्यों घूमता है? हे श्रेष्ठ ब्राह्मण यह सब मुझसे कहो, मैं सुनना चाहता हूँ। ब्राह्मण बोला- मैं बहुत ही निर्धन ब्राह्मण हूँ, भिक्षा के लिए पृथ्वी पर फिरता हूँ। हे भगवान्! यदि आप इसका उपाय जानते हो तो कृपा कर कहो
 
।। तीसरा अघ्याय।।
सूतजी बोले- हे श्रेष्ठ मुनियो! अब आगे की कथा कहता हूँ सुनो पहले समय में उल्कामुख का एक बुद्धिमान राजा था वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था। प्रतिदिन देव स्थानों मे जाता तथा गरीबों को धन देकर उनके कष्ट को दूर करता था। उसकी पत्नी कमल के समान मुखवाली और सती साध्वी थी। भद्रषीला नदी के तट पर उन दोनों ने सत्यनारायण देव का व्रत किया। उस समय में वहां एक साधू नाम का वैष्य आया, उसके पास व्यापार के लिए बहुत सा धन था। नाव को किनारे पर ठहराकर राजा के पास गया और राजा को व्रत करते हुए देख कर विनय के साथ पूछने लगा हे! राजन् भक्ति युक्त चित्त से यह आप क्या कर रहें? मेरी सुनने की इच्छा है। यह आप मुझे बताइये। राजा बोला हे साधू! अपने बांधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए यह महाषक्ति सत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन किया जा रहा है
 
।। चौथा अध्याय।।
सूतजी बोले-वैष्य ने मंगलाचार करके यात्रा आरम्भ की और अपने नगर को चला। उनके थोड़ी दूर पहुंचने पर दंडी वेषधारी सत्यनारायण ने उनसे पूछा हे साधू! तेरी नाव में क्या है। अभिमानी वणिक हंसता हुआ बोला हे दण्डी! आप क्यों पूछते हो क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव मे तो बेल तथा पत्ते आदि भरे हैं। वैष्य का कठोर वचन सुनकर भगवान ने कहा तुम्हारा वचन सत्य हो। ऐसा कहकर दण्डी वहां से चले गए और कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए। दण्डी के जाने पर वैष्य नित्य क्रिया करने के बाद नाव को ऊँची उठी देखकर अचम्भा किया तथा नाव में बेल आदि देखकर मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा फिर मूर्छा खुलने पर षोक करने लगा। तब उसका दामाद बोला कि आप षोक न करों यह दंडी का श्राप है

।। पांचवा अध्याय।।
सूतजी बोले हे ऋषियो। मै और भी कथा कहता हूँ सुनो। प्रजा पालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत दुःख पाया। एक समय वन में जाकर के पषुओं को मार कर बड़ के पेड़ के नीचे आया उसने भक्ति भाव से ग्वालों को बांधवों सहित सत्यनारायण की का पूजन करते देखा। राजा देखकर अभिमानवष न वहां न गया और न ही नमस्कार किया। जब ग्वालों ने भगवान का प्रसाद उसके सामने रखा तो वह प्रसाद को त्याग कर अपनी सुन्दर नगरी को चला गया। वहां उसने अपना सब कुछ नष्ट पाया। तो वह जान गया कि यह सब कुछ भगवान ने किया है तब वह विष्वास कर ग्वालों के समीप गया और विधिपूर्वक पूजन कर प्रसाद खाया तो सत्यदेव की कृपा से सब जैसा था वैसा ही हो गया तथा सुख भोगकर स्वर्ण लोक को गया।  

।। श्री सत्यनारायण जी की आरती।।
जय लक्ष्मी रमणा श्री जय लक्ष्मी रमणा, सत्यनारायण स्वामी जन पातक हरणा ।टेक।
रत्न जड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे, नारद करत निरंजन घण्टा ध्वनि बाजे ।1।
प्रकट भयो कलि कारण द्विज को दर्ष दियो, बूढ़ा ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो। 
 
इसके अतिरिक्त ओम जय जगदीष हरे की आरती भी गाएं, सभी उपस्थित बंधु बांधव व भक्त भगवान का भोग लग जाने पर आदर व विष्वास पूर्ण गोधमधू चूर्ण का प्रसाद खायें फिर अपने गनतव्य की ओर बढ़ें। बोलिए सत्य नारायण भगवान की जय, उमामहेष्वर भगवान की जय,लक्ष्मी नारायण भगवान की जय, सचियां जोता वाली माता की जय, सांचे दरवार की जय, सत्य सनातन धर्म की जय, हनुमंत प्रभ की जय
 
सब संतन भक्तन की जय इस प्रकार जय घोष करते हुए संपूर्ण वातावरण को उत्साह व आनन्दमय बनाएं कथा की सम्पन्नता पर विविध प्रकार की हवन साम्राग्री द्वारा हवन करना भी अत्यंत आवष्यक है बिना हवन के धार्मिक कथाओं, अनुष्ठानों का पूर्ण फल नहीं प्राप्त होता है। यदि विधि व शुद्धता पूर्व हवन आदि वैदिक क्रियाएं की जाएं तो निष्चित रूप से आरोग्यता, आयु, धन, समृद्धि, सुख, सौभाग्य अर्थात् मनोवांछित फल प्राप्त किए जा सकते हैं। किन्तु इसके लिए श्रद्धा विश्वास के साथ लगन होना चाहिए और साथ ही विद्वान व अनुभवी ब्रह्मणों से सलाह करना उत्तम रहता है। 
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