शाकम्बरी पूर्णिमा
हिन्दु धर्म में शाकम्बरी पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्तव है। इस शुभ दिन को शाकंभरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है और पूरी श्रदद्धा के साथ मनाया जाता है।
महत्व –
इस पवित्र दिन को नवरात्रि का पहला दिन या आरंभ दिवस भी माना जाता है। हिंदू पंचांग में ऐसा कहा गया है कि शाकम्बरी नवरात्रि अष्टमी तिथि के दिन से शुरू होती है और पौष माह में पूर्णिमा तिथि के दिन समाप्त होती है। अर्थात इस विशेष व्रत त्यौहार को लगभग आठ दिनों तक पूरी श्रद्धा के साथ मानाया जाता है। शाकम्बरी पूर्णिमा के दिन शाकम्भरी नवरात्रि समाप्त हो जाती है।
क्या करें –
क्या ना करें –
मान्यतां -
देवी शाकंभरी जी हिन्दु धर्म में बहुत ही अधिक महत्व है । इन्हें देवी भगवती का अवतार माना जाता है और इसीलिये इन्हें "साग का वाहक" भी कहा जाता है। शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सभी शाकाहारी खाद्य उत्पादों का भोग शाकंभरी देवी को लगाया जाता है।
पूजा विधि –
शाकम्बरी पूर्णिमा की पूजा विधि की प्रक्रिया पूर्ण रुप से शारदीय नवरात्र की तरह से ही की जाती है।
कथा -
हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ, देवी भागवतम के अनुसार, शाकंभरी देवी की कहानी बताती है कि एक बार दुर्गम नाम का एक दानव था, जिसने महान कष्ट और तपस्या करके सभी चारों वेदों का अधिग्रहण किया था। उन्होंने यह भी वरदान प्राप्त किया कि देवताओं के सामने प्रस्तुत सभी प्रार्थनाएँ और पूजाएँ उनके पास पहुँच जाएँगी और इस प्रकार दुर्गम अविनाशी हो गए। ऐसी शक्तियों को प्राप्त करने के बाद, उन्होंने सभी को परेशान करना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप धर्म का नुकसान हुआ और इसलिए सैकड़ों वर्षों तक बारिश नहीं हुई, जिससे गंभीर सूखे की स्थिति पैदा हुई।