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पौषी / शाकम्बरी पूर्णिमा/जयंती | Shakambhari Jayanti on 13 Jan 2025 (Monday)

शाकम्बरी पूर्णिमा 

हिन्दु धर्म में शाकम्बरी पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्तव है। इस शुभ दिन को शाकंभरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है और पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

 महत्व –

 इस पवित्र दिन को नवरात्रि का पहला दिन या आरंभ दिवस भी माना जाता है। हिंदू पंचांग में ऐसा कहा गया है कि शाकम्बरी नवरात्रि अष्टमी तिथि के दिन से शुरू होती है और पौष माह में पूर्णिमा तिथि के दिन समाप्त होती है। अर्थात इस विशेष व्रत त्यौहार को लगभग आठ दिनों तक पूरी श्रद्धा के साथ मानाया जाता है। शाकम्बरी पूर्णिमा के दिन शाकम्भरी नवरात्रि समाप्त हो जाती है।

 क्या करें –

  •  ऐसा माना जाता है कि इस दिन जरुरत मंद लोगों को अन्न-शाक यानी कच्ची सब्जी, भाजी, फल व जल का दान करना चाहिये क्योंकि इससे आपको अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होगी। ऐसा करने से आपके ऊपर मां देवी की विशेष कृपा बनी रहती है।

क्या ना करें –

  •  अपने मन को चंचल ना होने दे और मां के स्मरण में तल्लीन रहें
  •   घर और पूजा स्थल को गंदा ना रखें।

मान्यतां -

 देवी शाकंभरी जी हिन्दु धर्म में बहुत ही अधिक महत्व है । इन्हें देवी भगवती का अवतार माना जाता है और इसीलिये इन्हें "साग का वाहक" भी कहा जाता है। शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सभी शाकाहारी खाद्य उत्पादों का भोग शाकंभरी देवी  को लगाया जाता है।

 पूजा विधि –

 शाकम्बरी पूर्णिमा की पूजा विधि की प्रक्रिया पूर्ण रुप से शारदीय नवरात्र की तरह से ही की जाती है।

  • इस दिन सूर्योदय से पहले उठे और नहाधोकर साफ कपडे पहने और व्रत का संकल्प लें।
  •  पूजा स्थल की सफाई करने के बाद एक साफ चौकी ले और उस एक लाल कपड़ा बिछाकर देवी मां की प्रतिमा को रखें।
  •  अब देवी माँ को रोली से तिलक करें।
  •  इसके बाद उन्हें फूल और माला चढ़ाएं।   
  •  इसके बाद गाय के गोबर का उपला लेकर उससे अज्ञारी करें।
  •  ध्यान रहे कि अज्ञारी के लिए उसमें कपूर, सामग्री, घी और बतासों को चढ़ाना बहुत ही मह्तवपूर्ण है।
  •  इसके बाद मां की धूप और दीप से आरती उतारते हुयें आरती का पाठ करें और प्रसाद चढायें
  •   इसके बाद देवी मां का आर्शीवाद लेते हुये पूजा का समापन करें।

कथा -

 हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ, देवी भागवतम के अनुसार, शाकंभरी देवी की कहानी बताती है कि एक बार दुर्गम नाम का एक दानव था, जिसने महान कष्ट और तपस्या करके सभी चारों वेदों का अधिग्रहण किया था। उन्होंने यह भी वरदान प्राप्त किया कि देवताओं के सामने प्रस्तुत सभी प्रार्थनाएँ और पूजाएँ उनके पास पहुँच जाएँगी और इस प्रकार दुर्गम अविनाशी हो गए। ऐसी शक्तियों को प्राप्त करने के बाद, उन्होंने सभी को परेशान करना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप धर्म का नुकसान हुआ और इसलिए सैकड़ों वर्षों तक बारिश नहीं हुई, जिससे गंभीर सूखे की स्थिति पैदा हुई।  

सभी प्राणी भूख-प्यास से व्याकुल होकर दुखी हो गए। इस विपत्ति को देखकर ऋषि-मुनि और भक्तों ने माँ भगवती का आह्वान किया। उनकी प्रार्थना सुनकर माँ दुर्गा ने शाकुंभरी/शाकम्बरी देवी के रूप में प्रकट होकर अपने भक्तों को इस कष्ट से मुक्ति दिलाई।

माँ शाकुंभरी ने अपने करुणामय स्वरूप में 100 वर्षों तक केवल फल, फूल और शाकाहारी भोजन का भक्षण किया। उन्होंने अकाल से पीड़ित लोगों को जीवनदान देने के लिए शाक (सब्जी) और फल उत्पन्न किए। इसी कारण उन्हें "शाकुंभरी" कहा गया, जिसका अर्थ है "शाक-भरण-पोषण करने वाली देवी।"

 

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