शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र हैं. शनिदेव का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं. शनिदेव को अशुभ ग्रहों में गिना जाता है. परंतु शनिदेव हमेशा व्यक्ति के किए गए कर्मों के अनुसार ही फल प्रदान करते हैं. शनि देव को भाग्यविधाता माना जाता है. यदि मनुष्य निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लेता है तो उसके सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं. शनिदेव को कर्मफल दाता भी कहा जाता है. वह मनुष्य के कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं. शनिदेव एक नपुंसक ग्रह माने जाते हैं. इनका दिन शनिवार और रंग काला या गहरा नीला भी होता है. बुध शुक्र और राहु का इन से सीधा संपर्क है. इसके अलावा सूर्य, मंगल, चंद्रमा, शनि देव के शत्रु होते हैं. राहु और केतु शनि देव के रक्षक ग्रह हैं. जो शनिदेव की रक्षा के लिए किसी भी ग्रह को नष्ट कर सकते हैं.
शनिदेव का स्वरुप :-
शनि की महादशा 19 साल तक चलती है. शनि ग्रह को काल पुरुष का दुख माना जाता है.
स्नायु तंत्र पर इनका खास अधिकार होता है. इसके अलावा शारीरिक बनावट में पैर और शरीर के जोड़ों पर इनका खास असर रहता है.
शनिदेव की स्वराशियां कुंभ और मकर है. जिसमें कुंभ इनकी मूल त्रिकोण राशि मानी जाती है और तुला राशि इनकी ऊंची और मेष नीची राशि होती है.
शनि ग्रह पर मजदूर वर्ग का खास अधिकार होता है. यह कलेश, अहंकार, भौतिकवाद के चक्कर में फंसे व्यक्ति को दंड देते हैं.
जिस भाव में शनि देव स्थित होते हैं वह भाव वृद्धि और शुभ फल देने वाला होता है. इसके अलावा जहां पर शनिदेव की कूदृष्टि पड़ती है उस भाव से संबंधित परेशानियां समस्याएं और अशुभ काम शुरू हो जाते हैं.
शनिदेव की तीसरी, सातवीं और दसवीं तीन दृष्टियां होती हैं. जहां सूर्य का कार्य खत्म हो जाता है वहीं से शनि ग्रह का कार्य आरंभ होता है.
शनिदेव से जुडी खास बातें :-
शनि ग्रह 36 वर्ष की उम्र में अपना पूर्ण फल प्रदान करता है. किसी भी व्यक्ति के जन्मांग में जितने भी ग्रह शनि की दृष्टि में पड़ते हैं उनका असर कमजोर होता जाता है. ऐसे ग्रह 36 साल की उम्र के बाद ही अपना फल प्रदान करते हैं.
यदि शनि ग्रह का सूर्य से योग हो तो यह बहुत ही कष्टकारी होता है. ऐसी परिस्थिति में पिता पुत्र में लड़ाई झगड़े, प्रतिष्ठा संबंधी परेशानियां आदि हो सकती हैं.
शनि ग्रह पश्चिम का प्रभाव रखने वाला ग्रह है. लोहा, खनिज, पुरानी चीजें, तेल, पेट्रोल, दवा, चाय, कारखाने, पुरानी पुस्तकें, इतिहास आदि चीजों में शनि ग्रह का विशेष स्थान होता है. 3,6, 11 और बारहवें भाव में शनि अकेले रहकर खास परिणाम प्रदान करता है.
यदि किसी मनुष्य पर शनि की महादशा चल रही है और साथ ही कुंडली में साढ़ेसाती का भी योग है, या शनि कुंडली के शुभ भावों पर असर डाल रहा हैं या शनि पूर्ण या नीच राशि में मौजूद हो और कुंडली भी कमजोर हो तो मनुष्य के लिए शनि की साढ़ेसाती बहुत ही कष्टदायक होती है.
शनिदेव का महत्व :-
शनि ग्रह मनुष्य को ईश्वर की भक्ति करने के लिए तकलीफ देता है. किसी भी मनुष्य को जब कष्ट या तकलीफ होती है तो वह सीधा भगवान की शरण में आता है. जब शनि ग्रह को यह संपूर्ण विश्वास हो जाता है कि मनुष्य प्रभु की शरण में चला गया है और उसने अपनी किए गए पापों का संपूर्ण फल प्राप्त कर लिया है तब शनिदेव उसे माफ करके सुख और सौभाग्य प्रदान करते हैं.