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षष्ठ नवरात्रि: माता कात्यायनी | Sixth Navratri on 09 Oct 2024 (Wednesday)

माता कात्यायनी:- या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनीरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यैनमस्तस्यैनमस्तस्यैनमो नम:

नवदुर्गा के छठवें स्वरूप में माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है. माँ कात्यायनी का जन्म कात्यायन ऋषि के घर हुआ था अतः इनको कात्यायनी कहा जाता है| ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, गोपियों ने कृष्ण की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा की थी. विवाह सम्बन्धी मामलों के लिए इनकी पूजा अचूक होती है, योग्य और मनचाहा पति इनकी कृपा से प्राप्त होता हैnavratri 2021, 6th day of navratri, maa katyayani, maa katyayani mantra, maa katyayani puja, katyayani puja, माँ कात्यायनी, कात्यायिनी, कात्यायनी, नवरात्रि की षष्ठी तिथि, मां भगवती कात्यायनी, भगवती योगमाया कात्यायनी, maa katyayani images, maa katyayani aarti, maa katyayani mantra, katyayani mata image, katyayani vrat, sep navratri 2021, sharad navratri puja vidhi, mata katyayani mantra, 

रूप:- इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।

पूजा:- गोधूली वेला के समय पीले अथवा लाल वस्त्र धारण करके इनकी पूजा करनी चाहिए| इनको पीले फूल और पीला नैवेद्य अर्पित करें| माँ को शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है| माँ को सुगन्धित पुष्प अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनेंगे साथ ही प्रेम सम्बन्धी बाधाएँ भी दूर होंगी| इसके बाद माँ के समक्ष उनके मन्त्रों का जाप करें|

श्रृंगार:- माँ कात्यायनी को लाल व् पीले रंग के वस्त्र व् सोलह श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें| उनको पीले फूलों की माला भी अर्पित करें|

कथा:- नवरात्रि के छठे दिन देवी के छठे स्वरूप मां कात्यायिनी का पूजन किया जाता है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं।

देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ॠषि हुए तथा उनके पुत्र ॠषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे. देवी कात्यायनी जी देवताओं ,ऋषियों के संकटों कोदूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं. महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था. जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं. महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें. देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्णचतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनोंतक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया.माँ कात्यायिनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है. ये अपनी प्रिय सवारी सिंह पर आरूढ रहती हैं. इनकी चार भुजाएं भक्तों को वरदान देती हैं. इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है. तो दूसरा वरदमुद्रा में है. अन्य हाथों में तलवार और कमल का फूल है.

इनका गुण शोध कार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायिनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं।

उपासना मन्त्र:- चन्द्रहासोज्जवलकराशाईलवरवाहना।

                     कात्यायनीशुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

भोग:- मां कात्यायनी को शहद बहुत प्रिय है। इसलिए इस दिन लाल रंग के कपड़े पहनें और मां को शहद चढ़ाएं।

आरती:- जय कात्यायनि माँ, मैया जय कात्यायनि माँ

उपमा  रहित  भवानी,   दूँ   किसकी  उपमा

मैया जय कात्यायनि....

 

गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हाँ

वर-फल जन्म रम्भ  गृहमहिषासुर  लीन्हाँ

मैया जय कात्यायनि....

 

कर  शशांक-शेखर   तपमहिषासुर   भारी

शासन   कियो   सुरन  परबन   अत्याचारी

मैया जय कात्यायनि....

 

त्रिनयन  ब्रह्म  शचीपतिपहुँचे, अच्युत  गृह

महिषासुर   बध   हेतू,   सुर   कीन्हौं   आग्रह

मैया जय कात्यायनि....

 

सुन  पुकार  देवन मुखतेज  हुआ  मुखरित

जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित

मैया जय कात्यायनि....

 

अश्विन कृष्ण-चौथ  परप्रकटी  भवभामिनि

पूजे  ऋषि   कात्यायननाम  काऽऽत्यायिनि

मैया जय कात्यायनि....

 

अश्विन  शुक्ल-दशी    को,   महिषासुर  मारा

नाम   पड़ा   रणचण्डी,   मरणलोक    न्यारा

मैया जय कात्यायनि....

 

दूजे      कल्प    संहारा,    रूप     भद्रकाली

तीजे    कल्प    में    दुर्गा,   मारा   बलशाली

मैया जय कात्यायनि....

 

दीन्हौं पद  पार्षद  निजजगतजननि  माया

देवी   सँग    महिषासुररूप   बहुत   भाया

मैया जय कात्यायनि....


उमा     रमा     ब्रह्माणी,    सीता    श्रीराधा

तुम  सुर-मुनि  मन-मोहनि, हरिये  भव-बाधा

मैया जय कात्यायनि....


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