या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
शैल का अर्थ पर्वत है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन इनकी पूजा की जाती है। इस दिन साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थिर करते हैं। माँ शैलपुत्री की उपासना से यह चक्र जाग्रत होता है और यहीं से योग साधना का प्रारंभ होता है, जिससे साधक को दिव्य शक्तियों की प्राप्ति होती है।
रूप: माँ शैलपुत्री वृषभ पर विराजमान होती हैं। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल पुष्प सुशोभित रहता है।
श्रृंगार: माँ को चमकदार श्वेत अथवा हल्के गुलाबी वस्त्र अर्पित करना शुभ माना जाता है।
पूजा विधि:
घटस्थापना वाले स्थान पर जहाँ अखंड ज्योति प्रज्वलित है, वहीं माँ के समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलाएँ।
धूप, अगरबत्ती अर्पित करें।
सफेद फूलों की माला माँ को अर्पित करें।
चन्दन और चन्दन का इत्र अर्पण करना अत्यंत मंगलकारी है।
पूर्वजन्म में माँ शैलपुत्री प्रजापति दक्ष की कन्या सती के रूप में जन्मी थीं और उनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया, परंतु जानबूझकर शंकरजी को नहीं बुलाया। सती अपने पिता के घर जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने उन्हें रोका, परंतु उनके आग्रह पर अनुमति दे दी।
पिता के घर पहुँचने पर सती का अपमान हुआ। बहनों और परिजनों ने उपहास किया तथा दक्ष ने शंकरजी के प्रति तिरस्कारपूर्ण वचन कहे। यह देखकर सती का हृदय पीड़ा और क्रोध से भर गया। उन्होंने सोचा कि भगवान शंकर की आज्ञा न मानकर यहाँ आकर उन्होंने भारी भूल की है। अपने आराध्य का अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर का त्याग कर दिया।
इस दुखद घटना से शंकरजी ने क्रोधित होकर अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करा दिया। बाद में सती ने पुनः जन्म लेकर पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में अवतार लिया और शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। इन्हीं को पार्वती और हैमवती भी कहा जाता है। अंततः उन्होंने फिर से शंकरजी को पति रूप में प्राप्त किया।
वन्देवांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
आरती:शैलपुत्रीमां बैल असवार।
करेंदेवता जय जयकार।
शिव शंकरकीप्रिय भवानी।
तेरीमहिमा किसी ने ना जानी।
पार्वतीतूउमा कहलावे।
जो तुझेसिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धिपरवान करे तू।
दया करे धनवानकरे तू।
सोमवारकोशिव संग प्यारी।
आरतीतेरी जिसने उतारी।
उसकीसगरी आस पुजा दो।
सगरेदुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदरदीप जला के।
गोलागरी का भोग लगा के।
श्रद्धाभाव से मंत्र गाएं।
प्रेमसहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराजकिशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्रचकोरी अंबे।
मनोकामनापूर्ण कर दो।
भक्तसदा सुख संपत्ति भर दो।
भोग: माँ शैलपुत्री चन्द्रमा से सम्बन्ध रखती है| इन्हे सफ़ेद खाद्य पदार्थ जैसे खीर, रसगुल्ले, पताशे आदि का भोग लगाना चाहिए| स्वस्थ व् लम्बी आयु के लिए माँ शैलपुत्री को गाये के घी का भोग लगाएं या गायें के घी से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं|
शैलपुत्रीकी कवच: यह आप पढ़ भी सकतेहैयाइसे सफ़ेद कागज़ पर लाल रंग से लिखकर अपने घर के मुख्य द्वार पर अंदर की तरफ लगा सकतें हैं|
ओमकार:मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार:पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकारपातुवदनेलावाण्या महेश्वरी ।
हुंकारपातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कारपात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥
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