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शरद पूर्णिमा | Sharad Purnima on 16 Oct 2024 (Wednesday)

 
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है।  शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान्  श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महा रासलीला की थी।  इस दिन चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ उदित होकर अमृत वर्षा कर के वातावरण को शुद्ध व् शीतल कर देता है।  कृष्‍ण ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया।  ब्रह्मा की एक रात का मतलब मनुष्‍य की करोड़ों रातों के बराबर होता है।  ऐसी मान्यता है, इस दिन को कोजागरी लक्ष्मी पूजन के नाम से भी जाना जाता है क्यूंकि इस दिन माँ लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था।  ऐसा माना जाता है की, महादेव जी की महारासलीला की इच्छा के चलते उन्होंने गोपी का रूप धारण कर भगवान् कृष्ण के साथ लीला की।  अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है।

ऐसी मन्यता है की इस रात चन्द्रमा की रौशनी में खीर रखने से वह अमृत बन जाती है। क्यूंकि चन्द्रमा इस रात सोलह कलाओं से युक्त होकर अमृत वर्षा करता है और इसकी रौशनी में खीर रखने से उसमे चन्द्रमा से बरसता अमृत शा जाता है। 

शरद पूर्णिमा पूजन विधि:

शरद पूर्णिमा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठें। 
स्नान आदि कर खुद को शुद्ध करलें। 
श्वेत व् स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 
या तो मंदिर जाएं या घर में ही पूजन करें। 
भगवान् कृष्णा या विष्णु जी के चरण धोएं उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं। 
उन्हें श्वेत व् चमकदार वस्त्र पहनाएं। 
उन्हें चन्दन का तिलक लगाएं। 
उन्हें सफ़ेद व् पीले फूलों की माला भी अर्पित करें। 
उन्हें सफ़ेद खाद्य पदार्थो का भोग भी लगाएं। 
अब पूर्णिमा व्रत की कथा कहे या सुने। 
तुलसी जी के आगे घी का दीपक भी लगाएं। 
तुलसी चालीसा का पाठ करें। 
अब भगवान विष्णु व् तुलसी जी की आरती कर अपनी पूजा संपन्न करें। 
शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य दें व् खीर भोग के लिए उनकी रौशनी में रखें। 
अगले दिन सुबह खीर ग्रहण करें। 

पूर्णिमा व्रत कथा:

एक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
 

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