षटतिला एकादशी
षटतिला एकादशी की शुभ व्रत त्यौहार को कृष्ण पक्ष के 11 वें दिन यानी (चंद्रमा के चरण) में मनाई जाती है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार यह व्रत माघ के महीने के दौरान मनाया जाता है और ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह शुभ व्रत त्यौहार जनवरी या फ़रवरी के महीने में मनाया जाता है।
मह्तव –
अन्य एकादशी व्रतों के समान, षटतिला एकादशी भी भगवान विष्णु को समर्पित है। उनकी विधि –विधान से पूजा करने से विशेष लाभ प्रदान होते है। आपके सभी दुखों और दुर्भाग्य का नाश होता है। इसे कृष्ण माघ कृष्ण एकादशी या फिर षटतिला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। षटतिला एकादशी के शुभ दिन पर पूर्वजों या पितरों को तिल और जल चढाना भी शुभ माना जाता है।
क्या करे –
•इस शुभ दिन पर तिल के साथ मिश्रित जल से स्नान करने को बहुत फलदायी माना जाता है।
•इस दिन भक्तों को 'तिल' का भी सेवन करना चाहिये क्योकि इसे काफी शुभ मानते हैं।
•इसके अलावा केवल आध्यात्मिक विचारों पर ही अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए
क्या ना करे -
•इस दिन अपने दिल में लालच, वासना और क्रोध के विचारों को बिल्कुल भी ना आने दे।
•भक्त षटतिला एकादशी के धार्मिक उपवास को दौरान खाने या पीने की चीजों से परहेज रखें।
•यदि आप स्वस्थ नहीं हैं तो पूरा व्रत ना रखें क्योंकि आंशिक उपवास का प्रावधान भी है।
महत्ता –
षटतिला एकादशी का दिन भगवान विष्णु को पूर्ण रुप से समर्पित है। भावशोत्र पुराण ’में भी इस व्रत की महत्ता को पुलस्त्य मुनि और ऋषि दलभ्य के बीच वार्तालाप के द्वारा समझाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि यह महत्वपूर्ण षटतिला एकादशी का व्रत पालन करने से भक्त को अनंत धन और अच्छे स्वास्थ्य दोनों की प्राप्ति होती है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार इस व्रत को मोक्ष प्राप्त करने का सबसे शुभ मार्ग भी माना गया है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से इंसाना पुनर्जन्म के निरंतर चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। षटतिला एकादशी पर तिल को दान करने के बहुत ही अधिक महत्व है क्योंकि ऐसा करने से आपको अपने वर्तमान तथा पिछले जीवन में जाने या अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
पूजा विधि –
•एकादशीके दिन सूर्य उदय के पूर्व उठेऔर स्नान आदि कर खुद कोशुद्ध करें|
•सबसे पहले भगवान् सूर्य को जल अर्पित करें|
•अब भगवान् के आगे हाथ जोड़ कर व्रत का संकल्प लें|
•अब एक चौकी लें उसपे पीला वस्त्र बिछाएं|
•इस शुभ दिन पर भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराया जाता है
•स्नान कराने वाले जल में तिल अवश्य मिलाएं।
•इसके बाद भगवान विष्णु को भोग लगाया जाता है।
•षटतिला एकादशी को पूरी रात जागने और भगवान के भजन कीर्तन करने को बहुत ही शुभ माना जाता है।
•भगवान विष्णु के नाम का जाप पूरी श्रद्धा और दृढ़ता के साथ करते रहने ने विशेष फल की प्राप्ति होती है।
•इस श्रद्धेय दिन पर यज्ञ कराने के विधान बी है जिसमें तिल को शामिल करना बहुत ही महत्तवपूर्ण माना जाता है।
•भगवान् के आगे धुप दीप भी लगाएं|
•संभव हो तो विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करें अन्यथा बहगवां विष्णु के मन्त्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का क्षमता अनुसार जाप करें|
•षटतिला एकादशी की व्रत कथा भी अवश्य पढ़े|
•अब पूरा दिन व्रत करें इस व्रत की निर्जल व् फलाहार खा कर भी किया जा सकता है|
व्रत कथा –
एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि हे महाराज, पृथ्वी लोक में मनुष्य ब्रह्महत्यादि महान पाप करते हैं, पराए धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति देखकर ईर्ष्या करते हैं। साथ ही अनेक प्रकार के व्यसनों में फँसे रहते हैं, फिर भी उनको नर्क प्राप्त नहीं होता, इसका क्या कारण है? वे न जाने कौन-सा दान-पुण्य करते हैं जिससे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। यह सब कृपापूर्वक आप कहिए। पुलस्त्य मुनि कहने लगे कि हे महाभाग! आपने मुझसे अत्यंत गंभीर प्रश्न पूछा है। इससे संसार के जीवों का अत्यंत भला होगा। इस भेद को ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तथा इंद्र आदि भी नहीं जानते परंतु मैं आपको यह गुप्त तत्व अवश्य बताऊँगा। उन्होंने कहा कि माघ मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाना चाहिए। उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए। उस दिन मूल नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करें। स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सब देवताओं के देव श्री भगवान का पूजन करें और एकादशी व्रत धारण करें। रात्रि को जागरण करना चाहिए।
एक समय नारदजी ने भगवान श्रीविष्णु से यही प्रश्न किया था और भगवान ने जो षटतिला एकादशी का माहात्म्य नारदजी से कहा- सो मैं तुमसे कहता हूँ। भगवान ने नारदजी से कहा कि हे नारद! मैं तुमसे सत्य घटना कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
प्राचीनकाल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही। इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताअओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है। भगवान ने आगे कहा- ऐसा सोचकर मैं भिखारी के वेश में मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा माँगी। वह ब्राह्मणी बोली- महाराज किसलिए आए हो? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया। घबराकर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है? इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियाँ आएँगी तुम्हें देखने के लिए। पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना। मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देवस्त्रियाँ आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो। उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूँ। जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है। उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। अत: मनुष्यों को मूर्खता त्यागकर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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