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जानिए क्या है शीतला अष्टमी व्रत का महत्व और पूजन विधि

जानिए क्या है शीतला अष्टमी व्रत का महत्व और पूजन विधि 

शीतलाष्टमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. यह लोकाचार में होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन भी मनाई जाती है. शुक्रवार के दिन भी इसके पूजन का नियम है, पर रविवार शनिवार या मंगलवार को अगर शीतलाष्टमी पड़ रही हो तो पूजा नहीं करनी चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से व्रत करने वाले व्यक्ति के परिवार को ज्वरदुर्गंध युक्त फोड़े फुंसियों, नेत्रों से जुड़े विकार, शीतला माता की फुंसियों के निशान और शीतला जनित दोषों से मुक्ति मिलती है. शीतला अष्टमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं.  

शीतला माता का स्वरूप

हर गांव नगर और शहर में माता शीतला का मठ होता है. सभी मठो में  माता शीतला का स्वरूप अलग अलग तरह का देखा जाता है

शीतला अष्टक में माता शीतला को रासभ के ऊपर सवार बताया गया है. इसलिए इस दिन शीतला अष्टक का पाठ जरूर करना चाहिए

शीतला माता अर्थात पर्यावरण की शुद्धि करण की देवी जो पूरे विश्व को  गंदगी और विषाणु से बचाने का संदेश प्रदान करती हैं

शीतला माता को साफ सफाई स्वच्छता और शीतलता की देवी माना जाता है. माता शीतला के वस्त्रों का रंग लाल होता है. लाल रंग खतरे और सतर्कता का प्रतीक माना जाता है

शीतला माता की चार भुजाएं होती है. माता शीतला की चारों भुजाओं में झाड़ू, घड़ा, सूप, कटोरा शोभायमान होते हैं. यह सभी चीजें सफाई का प्रतीक है

माता शीतला की सवारी गधा है जो उन्हें गंदी जगहों पर ले जाता हैमाता शीतला के हाथों में विराजमान झाड़ू उस स्थान की सफाई करने के लिए और सूप पत्थर को अलग करने के लिए है

घड़े में भरा गंगाजल उस जगह को विकारों से मुक्ति दिलाने के लिए एक प्रतीक के रूप में उनके हाथ में विद्यमान होता है

माता शीतला से जुड़ी खास बातें 

मान्यताओं के अनुसार शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की पूजा करने से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है

पुराणों के अनुसार माता शीतला को दूब बहुत पसंद होती हैचैत्र वैशाख ज्येष्ठ और आषाढ़ के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को माता शीतला की पूजा अर्चना की जाती है.  

पुराणों के अनुसार इन महीनों में गर्मियां शुरू हो जाती हैं और चेचक जैसी बीमारियों के होने का खतरा रहता है. इसीलिए लोग इस समय माता शीतला की पूजा करते हैं जिससे शरीर स्वस्थ और निरोगी रह सके

माता शीतला की पूजा के समय माता के पसंदीदा मंत्र का जाप करने से माता वह जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं

मम गेहे शीतलरोग जनितोपद्रव प्रशमनपूर्वकायुरोग्यैश्वर्याभिवर्द्धयिय शीतलाष्टमी व्रत कृष्यै  

स्कंद पुराण में बताया गया है कि खुद भगवान शिव ने लोगों का कल्याण करने के लिए शीतला अष्टक स्रोत की रचना की है. जिससे लोग इस स्रोत के द्वारा माता शीतला का पूजन करके उन्हें प्रसन्न कर सके और बीमारियों से मुक्ति पा सकें

वंदेहम शीतलाम देवी रासभास्थाम दिगंबराम मार्जनिकालशोपताम शूर्पालंकृतमस्तकाम  

शीतला अष्टमी पूजन विधि 

शीतला अष्टमी का व्रत करने वाले व्यक्ति को पुरे नियम के साथ अष्टमी तिथि को ग्रहण करना चाहिए

इस दिन सूर्योदय के समय अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डालकर ठन्डे पानी से स्नान करें और नारंगी वस्त्र धारण करें

दोपहर 12:00 बजे शीतला माता के मंदिर में जाकर उनकी पूजा करें

शीतला माता को सुगंधित फूल, नीम के पत्ते और सुगंधित इत्र चढ़ाएं

माता शीतला को ठंडे या बासी खाने का भोग लगाना चाहिए. इसके बाद कपूर जलाकर आरती करें

माता शीतला को भोग लगाने के लिए मेवे, मिठाई, पुआ, पूरी, साग, दाल, मीठा भात, फीका भात, मीठा बाजरा, बाजरे की मीठी रोटी, दाल का भरवा, पूरी या रस खीर आदि एक दिन पहले ही शाम के समय बना लेने चाहिए

रात के समय दही जमा देना चाहिए. इसलिए इसे बसौड़ा भी कहा जाता है. जिस दिन शीतला अष्टमी का व्रत किया जाता है उस दिन गर्म पदार्थ नहीं खाए जाते हैं. इसी वजह से इस दिन घर में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता है

शीतला अष्टमी के दिन पांचों उंगलियां हथेली के साथ ही में डूबा कर रसोई घर की दीवार पर छापा लगाएं. अब इसके ऊपर रोली और अक्षत चढ़ाकर हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करें

शीतला अष्टक का पाठ करें और माता शीतला की कथा सुने. रात के समय माता शीतला के सामने दीपक जलाकर जागरण करें

बसौड़ा के दिन सुबह एक थाली में पूर्व संध्या में तैयार किए गए नैवेद्य में से थोड़ा-थोड़ा सामान रखकर हल्दी, धूपबत्ती, जल का पात्र, दही, चीनी गुड़ और अन्य पूजन आदि सामग्री सजाकर परिवार के सभी लोगों के हाथ से स्पर्श कराकर माता शीतला के मंदिर में जा कर पूजा करें

होली के दिन बनाई गई गुलरी की माला को भी शीतला माता को अर्पित करना चाहिए. इस दिन चौराहे पर जल चढ़ाकर माता शीतला की पूजा करने की परंपरा भी है.

शीतला अष्टमी के दिन बासी खाने का महत्व 

शीतला अष्टमी के दिन सभी लोग ठंडा और बासी खाना खाते हैं. इस दिन सुबह के समय घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है

शीतला अष्टमी के दिन सभी लोगों को थोड़ी थोड़ी नीम की पत्तियां भी खानी चाहिए. जिससे शरीर अंदर से साफ हो जाता है

इस दिन माता शीतला को पूरी, दाल भात, मिठाई का माता को भोग लगाया जाता है और फिर स्वयं ग्रहण किया जाता है

भोजन करने से पहले भोजन का दान भी अवश्य करना चाहिए.

 

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