Indian Festivals

शिव चतुर्दशी व्रत

शिव चतुर्दशी व्रत का महत्व:-
शिव चतुर्दशी का व्रत जो पूरे श्रद्धाभाव से करता है उसके माता पिता के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा उसके स्वयं के सारे कष्ट भी दूर हो जाते है तथा वह जीवन के सम्पूर्ण सुखों का भोग करता है। इस व्रत की महिमा से व्यक्ति ऐश्वर्य, आरोग्य, संतान एवं विद्या आदि प्राप्त कर अंत में शिवलोक जाता है।

शिव चतुर्दशी व्रत कब और क्यों मनाई जाती है:-
हिंदू धर्म में सभी देवताओं में भगवान शिव को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। शिव के भक्त इन्हें प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं और पूरे विधि विधान से इनकी पूजा करते हैं। प्रत्येक सोमवार को शिव मंदिरों में शिव भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। वैसे तो पूरे साल भगवान शंकर की पूजा होती है लेकिन शिव चतुर्दशी के दिन भोलेनाथ की आराधना करना बहुत फलदायी होता है। हिन्दू धर्म के अनुसार प्रत्येक माह की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव को समर्पित शिव चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। भविष्यपुराण के अनुसार प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को "शिव चतुर्दशी" कहते हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से शिव जी की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि के बंधन से मुक्त हो जाता है।

शिव चतुर्दशी व्रत की मान्यताए:-
इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है। इस व्रत को लगातार करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका उद्धापन कर देना चाहिए। शिव मंत्रों का जाप शिव मंदिर या घर के पूर्वी दिशा में बैठकर करने से अधिक फल प्राप्त होता है। चतुर्दशी के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन कराके स्वयं भोजन करना चाहिए।

शिव चतुर्दशी व्रत की विधि:-
  • शिव चतुर्दशी में भगावन शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों सहित की जाती है।
  • पूजा का आरम्भ भोलेनाथ के अभिषेक के साथ होता है।
  • उपवास की पूजन सामग्री में जिन वस्तुओं को प्रयोग किया जाता हैं, उसमें गंगाजल, दुध, दही, घी, शहद, सुगंधित फूल, शुद्ध वस्त्र, बिल्व पत्र, धूप, दीप, नैवेध, चंदन का लेप, ऋतुफल आदि  से स्नान कराया जाता है। 
  • अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, समीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं। 
  • अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रुप में चढा़या जाता है। 
  • इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है, प्रत्येक पहर की पूजा में "उँ नम: शिवाय" व "नम:शिवाय" का जाप करते रहना चाहिए। 
  • अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं। 
  • चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। 
  • इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है।