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षष्ठी व्रत (स्कंद षष्ठी) | Skand Shashti on 11 Jul 2024 (Thursday)

स्कंद षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय/मुरुगन को समर्पित है। इस दिन भगवान मुरुगन की पूजा अर्चना बहुत ही श्रद्धा के साथ की जाती है। भगवान मुरुगन को सुब्रह्मण्यकार्तिककार्तिकेयस्कंद या कांडा के नाम से भी जाना जाता है इस दिन भगवान मुरूगा की पूजा करने पर विशेष फल मिलता है। यह चंद्र महीने के छठे दिन पडता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस दिन का विशेष महत्व होता है। इस दिन की मूल गणना तमिल कैलेंडर और पंचांग के आधार पर की जा रही है। यह पूर्णिमा और अमावस्या के 6 दिन के बाद यानि महिने में दो बार पड़ता है। अमावस्या के बाद पडने वाले स्कंद षष्ठी पर विशेष रुप से व्रत रखकर मानाया जाता है।

स्कंद षष्ठी व्रत क्या है:

तमिलनाडु में यह त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन बडे-बडे अनुष्ठान किये जाते है और पारंपरिगत तरीके से लोग बड़ी संख्या में एकत्रित होते है। केरल में भी इस त्योहार को बहुत खुशी के साथ मनाया जाता है। इस व्रत का विश्व व्यापी विस्तार सिंगापुरमलेशिया और श्रीलंका तक भी है। तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के छह पवित्र मंदिरों - तिरुचेंदुर (समुद्र तट मुरुगन मंदिर तिरुनेलवेली के पास)थिरुप्पुरनकुमारम (मदुरै के पास का मंदिर)पलानी हिल मंदिरस्वामी मलाई (कुंभकोणम के पास पहाड़ी मंदिर)थिरुतिगई (चेन्नई के पास पहाड़ी मंदिर) और पज़ामुधीर सोलई (मदुरई के पास पहाड़ी मंदिर) में बडे-बडे अनुष्ठान किये जाते है।

 

स्कंद षष्ठी का महत्व: आइये जानते है स्कंद षष्ठी का महत्व -

  • यह त्योहार भक्तों को सुख-शांति प्रदान कराता है।
  • इस व्रत को करने से मन शांत रहता है।
  • यह पूजा संतान की प्राप्ति के लिए भी की जाती है।
  • जो भक्तगण भगवान स्कंद का व्रत पूरी श्रृध्दा के साथ करते है उनके जीवन से नकारात्माक ऊर्जा का विनाश हो जाता है।

स्कंद पष्ठी से जूडी परौरणिक कथा -

यह वह दिन है जिस दिन भगवान मुरुगन ने शैतान तारका का वध किया था। स्कंदपुरम (भगवान मुरुगन की कहानी) में सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि रामायण के कुछ पहलुओं में इसकी समानता है। भक्त इस अवधि के लिए उपवास करते हैं और भगवान मुरुगन की महिमा का ध्यान करते हैं। विवाहित जोड़े जिनके कोई संतान नहीं हैवे संतान प्राप्ति के लिए इस दिन मुरुगन भगवान की पुजा अर्चना करते हैं।


पूजा के सामान:

गुलाब जलचंदन का पेस्टहल्दी का पेस्टकुमकुमफूलमालादूधगणेश की छोटी मूर्तिभगवान मुरुगन की मूर्ति।


स्कंद षष्ठी व्रत विधि :

स्कंद षष्ठी की पूजा करने से सभी चिंताएं व तनाव दूर हो जाता है। व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन भगवान सूर्य को श्रद्धांजलि देकर समाप्त होता है। इस दिन सुबह जल्दी नहाकर सुर्य-देव का जल अर्पित करना चाहिए। उसके बाद भगवान स्कंद की पूजा अर्चना करनी चाहिये। पूजा-अर्चना करने के लिये सबसे पहले पूजा का स्थान गंगा जल से शुद्ध करें। पूजा की स्थान साफ करने के बाद भगवान गणेश व भगवान मुरुगन की मूर्ति को उनके स्थान पर विर्जित करें। मूर्ति स्थापित करने के सबसे पहले भगवान गणेश की आराधना करें। उसके बाद भगवान पूजा-अर्चना आरंभ करें। स्कंद मंत्र व जप के साथ सबसे पहले उन्हे फूल अर्पित करें। फूल आर्पित करने के बाद चंदन का पेस्टहल्दी का पेस्टकुमकुम का लेप लगायें। उसके बाद दूध अर्पित करें। उसके पश्चात् भोग सामग्री अर्पित करें।

 


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