1. सम्पूर्ण सृष्टि की गतिशीलता सूर्यादि ग्रहो की ऊर्जा शक्ति के कारण बनी हुई है| सूर्य हमारे जीवन का दाता व् विश्वात्मा है|
2. सूर्य प्रत्यक्ष रूप से भौतिक और आध्यात्मिक जगत को प्रभावित करता है| जिसके दम पर सम्पूर्ण जहां रोशन है| जो ज्योतिषीय दृष्टि से सिंह राशि का स्वामी है|
3. सूर्य जगत की पिता है और चंद्र जगत की माता इन् दोनों ग्रहो का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है|
4. सूर्य रिश्ते में पिता का तथा शरीर में आँख व् रीढ़ की हड्डी का कारक है| सूर्य नमस्कार व् सूर्य उपासना जैसे कईं तरह के प्रयोग से व्यक्ति को स्वास्थय लाभ मिलता है|
5. व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ,नीच व् पाप होने से व्यक्ति को पितृ सुख में हानि पहुँचती है तथा उसे नेत्र व् रीढ़ की हड्डी के रोग व् परेशानी उत्पन होजाते है|
6. सूर्य षष्ठी का व्रत पुराणों अनुसार प्रत्येक महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी युक्त षष्टी तिथि को किया जाना चाहिए|
7. भाद्रपद मॉस के शुक्ल पक्ष की सप्तमी युक्त षष्टी तिथि का व्रत विशेष एवं महत्वपूर्ण है|
8. इस दिन व्रत, दान, पवित्र नदी में स्नान, जाप आदि का बड़ा महत्व है|
सूर्य षष्ठी व्रत विधि
1. सूर्यषष्ठी व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस व्रत का आरंभ मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की छठी से ही करना चाहिए।
2. इस व्रत में व्यक्ति को शांत और अपनी इंद्रियों पर काबू कर के रहना चाहिए।
3. इस दिन व्रत, दान, पवित्र नदी में स्नान, जाप आदि का बड़ा महत्व है|
4. सूर्य उदय के पूर्व उठ व्यक्ति को स्नान आदि कर शुद्ध होजाना चाहिए|
5. सूर्य देव को इस दिन जल में लाल चन्दन या रोली व् लाल फूल मिला कर अर्घ्य देना चाहिए|
6. वहीँ खड़े हो ॐ आदित्याय नमः का जाप करना चाहिए|
7. सूर्य देव को फल,दीप,धुप,नवैद्य,फूलों से पूजन कर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए|
8. इस दिन व्रत करने वाले को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए|
9. व्रत में केवल एक समय (रात्रि) शुद्ध भोजन ही करना चाहिए।
10. इस दिन रात में यदि संभव हो तो भूमि पर ही सोये।
11. सूर्यास्त से पहले अर्थात दिन थोड़ा बचने पर सूर्य को पुनः अर्घ्य व् दीप दान करते हुए गेंहू की रोटी गुड़ के साथ खाना चाहिए|
12. सबसे पहले गौ ग्रास निकलना चाहिए| सूर्यास्त के बाद किसी तरह का कोई खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहिए|
यह द्वादश नाम भगवान् सूर्य को सबसे प्रिय मन्त्र है| ऐसी मान्यता है की भगवान् राम इन् मंत्रो का उच्चारण प्रतिदिन सुबह सूर्य उदय के समय किया करते थे| भगवान् सूर्य को प्रसन्न करने के लिए ये अचूक मन्त्र आत्मविश्वास को मज़बूत करता है|
ॐ सूर्याय नम: ।
ॐ भास्कराय नम:।
ॐ रवये नम: ।
ॐ मित्राय नम: ।
ॐ भानवे नम:
* ॐ खगय नम: ।
* ॐ पुष्णे नम: ।
* ॐ मारिचाये नम: ।
* ॐ आदित्याय नम: ।
* ॐ सावित्रे नम: ।
* ॐ आर्काय नम: ।
वर्ष के अंतिम सूर्यषष्ठी व्रत पर पूजा समाप्ति के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए तथा शक्ति अनुसार वस्त्र, धन, आदि का दान करना चाहिए।
सूर्य षष्ठी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को रोग, दोष व् निर्धनता से मुक्ति मिलती है| वह आरोग्य की और बढ़ता रहता है, उसका जीवन सूर्य व्रत के प्रभाव से खिल उठता है, उसे नाना प्रकार के सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है| सूर्य की प्रसन्नता से व्यक्ति की कुंडली में सूर्य का बुरा असर कम होजाता हैं| तथा उसे महत्वपूर्ण ऊँचे पदों की प्राप्ति होती है| वह राजकीय व् प्रशासनिक कार्यो में अच्छा लाभ प्राप्त करता है| उसका वर्चस्व बढ़ता है, अर्थात जीवन में सुख समृद्धि व् विकास की कामना वाले प्रत्येक व्यक्ति को सूर्य षष्टी का व्रत बड़े श्रद्धा विश्वास से करना चाहिए|