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त्रिपुर भैरवी जंयती | Tripur Bhairav Jayanti on 04 Dec 2025 (Thursday)


त्रिपुर भैरवी जंयती
महत्व
माँ का योगदान स्वरूप सृष्टि के निर्माण और संहार में अतुल्नीय माना गया है। इसके अतिरिक्ति ऐसा भी माना जाता है कि माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं। हिन्दु कथाओं के अनुसार माँ भैरवी के कुल अन्य तेरह प्रकार के स्वरुप हैं और इनके प्रत्येक स्वरुप का बहुत ही अधिक महत्व है। इनकी पूजा पूरे विधि विधान से करने से भक्तों को  अतुल्नीय सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 
क्या करें – 
पूरे दिन मां भैरवी का ध्यान करें
सभी विधियो का पालन करे
इस दिन दान का बहुत महत्तव है
अहंकार का त्याग करे
क्या ना करें –
नकारात्मक विचारों को मन में ना लाये 
दूसरे की बुराई ना करें
 
पूजा विधि – 
  • मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन प्रदोष समय में माँ त्रिपुरा भैरवी का पूजन किया जाता है|
  • घर में दक्षिण दिशा की और मुख कर के बैठे|
  • अपने आगे एक चौकी रखें और उसमे लाल वस्त्र बिछाये|
  • अब माँ भैरवी के चित्र व् मूर्ति की स्थापना करें| अगर माँ भैरवी के चित्र उपलब्ध न हो, तो आप माँ काली का चित्र भी लगा सकते है क्यों की माँ भैरवी को माँ काली का ही स्वरुप माना जाता है|
  • अब अपने द्वारा स्थापित किये गए चित्र के समक्ष हाथ जोड़े और माँ से अपनी पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें|
  • माँ के आगे कलश स्थापना करें|
  • उन्हें रक्तचंदन या लाल चन्दन का तिलक करें|
  • माँ को श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करें|
  • माँ भैरवी को लाल फूलों की माला भी अर्पित करें|
  • माँ के समक्ष तिल के तेल का दीपक लगाएं|
  • लाल चन्दन की माला पर नीचे दिए गए मन्त्र का उच्चारण करें| उच्चारण अगर आप कर पाएं तो उत्तम होगा अन्यथा इस मन्त्र को लाल सियन्हि से लिखे और इसे देख कुछ देर ध्यान करें|
ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा॥
Om Hreem Bhairavi Kalaum Hreem Svaha॥
  • अब माँ के आगे अपनी पूजा के दौरान हुई भूल की शमा मांगे|
  • माँ भैरवी की पूजा उपासना अगर किसी विद्वान भ्रामिन के मार्गदर्शन में की जाये तो उत्तम होगा|
महत्ता – 
ऐसा माना जाता है कि त्रिपुर भैरवी की पूजा अर्चना करने से भक्त के सभी बंधन दूर हो जाते है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इनकी पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को न केवल सफलता बल्कि सर्वसंपदा की भी प्राप्ति होती है। चाहें वो शक्ति-साधना हो अथवा भक्ति-मार्ग हो भक्त किसी भी रुप में देवी मां की उपासना कर सकते है क्योंकि यह दोनो ही तरह से फलदायी सिदध होती है। 
त्रिपुर भैरवी अवतरण कथा | 
‘नारद-पाञ्चरात्र’ के अनुसार एक बार जब देवी काली के मन में आया कि वह पुनः अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें तो यह सोचकर देवी अन्तर्धान हो जाती हैं. भगवान शिव जब देवी को को अपने समक्ष नहीं पाते तो व्याकुल हो जाते हैं और उन्हें ढूंढने का प्रयास करते हैं. शिवजी, महर्षि नारदजी से देवी के विषय में पूछते हैं तब नारद जी उन्हें देवी का बोध कराते हैं वह कहते हैं कि शक्ति के दर्शन आपको सुमेरु के उत्तर में हो सकते हैं वहीं देवी की प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात संभव हो सकेगी. तब भोले शंकर की आज्ञानुसार नारदजी देवी को खोजने के लिए वहाँ जाते हैं. महर्षि नारद जी जब वहां पहुँचते हैं तो देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखते हैं यह प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो जाती हैं. और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट होता है और इस प्रकार उससे छाया-विग्रह "त्रिपुर-भैरवी” का प्राकट्य होता है.

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