उत्तरायण
उत्तरायण जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि यह दो अलग-अलग संस्कृत शब्दों "उत्तारा" (उत्तर) और "अयन" (आंदोलन) से बना है। उत्तरायण को दक्षिणायन से सदैव श्रेष्ठ माना गया है । सूर्य का उतराय़ण का अर्थ है कि प्राणहारी ठड समाप्त हो जाती है और वसंत शूरु हो जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता
के आठवें अध्याय के चौबीसवें श्लोक में कहा गया है-
''अग्निज्योतिरहः
शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति
ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः।।''
हिंदू पुराण के अनुसार उतरायण का अर्थ –
उत्तरायण को हिंदु पुराण में काफी शुभ माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि यह एक नए, अच्छे व स्वस्थ दिन की शुरुआत की ओर इशारा करता है । कौरवों और पांडवों के अनुसार, महाभारत में इसी दिन को भीष्म पितामह जी ने अपने स्वर्गीय निवास के लिए प्रस्थान के लिये चुना था। हिंदू परंपरा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण के छह महीने देवताओं के लिये एक दिन की भांति होते हैं और दक्षिणायन के छह महीने देवताओं की एक रात के बराबर होते हैं।
उत्तरायण का महत्व –
उत्तरायण को आध्यात्मिक उपलब्धियों एवं ईश्वर के पूजन-स्मरण के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। सूर्य जिस राशि में प्रवेश करते हैं उसे उस राशि की संक्रांति रुप में माना जाता है। 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि की ओर प्रस्थान करते हैं इसीलिये यह मकर संक्राति के रुप में माना जाता है।
क्या करें–
� इस दिन स्नानादि के बाद व्रत, पूजा-पाठ व हवन का बहुत ही अधिक महत्व है।
� इस दिन दान करने का भी बहुत ही अधिक महत्व है ।
� इस दिन से दिन बड़े होने लगते हैं।
� यह मौसम के बदलने की ओर भी संकेत करता है और इसिलिये नदी में स्नान करने का बहुत ही अधिक महत्तव है
� जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिये
� देवों और पितरों को तिल दान करना चाहिये
अंत में –
उत्तरायण एक प्रकृति से जुड़ा हुआ त्यौहार है और इसका एक विशेष महत्तव है। यह मौसम में आने वाले बदलाव की ओर इंगित करता है।