जानिए वैभव लक्ष्मी व्रत की महिमा और खास पूजन विधि
वैभव लक्ष्मी व्रत का महत्व-
वैभव लक्ष्मी व्रत करने से मनुष्य के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और कभी भी धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है. वैभव लक्ष्मी का व्रत करने से आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है और संतान से जुड़ी सभी समस्याओं का अंत होता है. अगर आप शुक्रवार के दिन मां वैभव लक्ष्मी का व्रत करते हैं तो आपका घर हमेशा धनधान्य से पूर्ण रहता है. जिन लोगों की कुंडली में शुक्र दोष होता है उन्हें भी मां लक्ष्मी वैभव लक्ष्मी का व्रत अवश्य करना चाहिए.
वैभव लक्ष्मी व्रत करने से जीवन में चल रही धन से जुड़ी समस्याओं का अंत होता है. अगर आप पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ वैभव लक्ष्मी का व्रत करते हैं तो आपके घर परिवार में मां लक्ष्मी का स्थिर रूप से निवास करती हैं. जो लोग व्यापार में लाभ पाना चाहते हैं उन्हें भी वैभव लक्ष्मी का व्रत अवश्य करना चाहिए. सुहागिन स्त्रियों के लिए वैभव लक्ष्मी का व्रत बहुत ही फलदाई होता है.
वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम-
वैभव लक्ष्मी पूजन विधि-
'हे मां धनलक्ष्मी! मैंने पूरी श्रद्धा और आस्था के आपका 'वैभवलक्ष्मी व्रत' करने का संकल्प लिया था. आज मैंने आपका यह पूर्ण किया है. हे माँ! मेरी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करें. हमारे जीवन में आने वाले सभी संकटों को दूर करें. हमारा कल्याण करें. हे माँ! आपके वैभव लक्ष्मी व्रत की महिमा अपार है।' आपकी जय हो! ऐसा कहकर माँ लक्ष्मी के 'धनलक्ष्मी स्वरूप' की छवि को पूरी श्रद्धा के साथ प्रणाम करें.
वैभव लक्ष्मी व्रत कथा-
किसी शहर में लाखों लोग रहते थे। सभी अपने-अपने कामों में रत रहते थे। किसी को किसी की परवाह नहीं थी। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थीं। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे। इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।
ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी। उनका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।
देखते ही देखते समय बदल गया। शीला का पति बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा फलस्वरूप वह रोडपति बन गया। यानी रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी।शराब, जुआ, रेस, चरस-गाँजा वगैरह बुरी आदतों में शीला का पति भी फँस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। इस प्रकार उसने अपना सब कुछ रेस-जुए में गँवा दिया।
शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी। वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक माँजी खड़ी थी। उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था। उसका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा था। उसको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। शीला के रोम-रोम में आनंद छा गया। शीला उस माँजी को आदर के साथ घर में ले आई। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उसको बिठाया।
माँजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहाँ आती हूँ।' इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी। फिर माँजी बोलीं- 'तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई।'माँजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गए और वह बिलख-बिलखकर रोने लगी। माँजी ने कहा- 'बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छाँव जैसे होते हैं। धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारी परेशानी बता।'
माँजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने माँजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई।
कहानी सुनकर माँजी ने कहा- 'कर्म की गति न्यारी होती है। हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएँगे। तू तो माँ लक्ष्मीजी की भक्त है। माँ
लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा।'
शीला के पूछने पर माँजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई। माँजी ने कहा- 'बेटी! माँ लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है। उसे वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है।'
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