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वरलक्ष्मी व्रत | Var Lakshmi Vrat on 16 Aug 2024 (Friday)

वरलक्ष्मी व्रत भारत में काफी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस व्रत का एक खास महत्व है। वरलक्ष्मी पूजा को सही समय पर करना भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है और इसीलिये ये जानना बहुत जरुरी है कि पूजा का सही मुहूर्त क्या है। varalakshmi,varalaxmi vratam,varalakshmi vratam 2021,varalakshmi pooja 2021,varalakshmi vratam mehtv,varalaxmi vrat significance

विवाहित महिलाँए क्यों करती है पूजा –

विवाहित महिलाएँ इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ रखती है। इस दिन इस बात का भी ख्याल रखा जाता है कि पूरे विधि विधान से यह व्रत किया जाये। विवाहित महिलायें ये व्रत अपने पति और बच्चों की दीर्घायु के लिये करती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि इस शुभ दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्याताओं के अनुसार इस व्रता की तुलना अष्टलक्ष्मी देवा जो कि प्यार, धन, बल, शांति, प्रसिद्धि,सुख, पृथ्वी और विद्या की आठ देवी हैं,की उपासना करने के बराबर माना जाता है।

कब मनाते है वरलक्ष्मी व्रत

इसे श्रावण मास की पूर्णिमा से ठीक पहले या दूसरे शुक्रवार को मनाया जाता है। यदि अंग्रेजी कैलेंडर की बात करें तो यह जुलाई या अगस्त महीने में मनाया जाता है।

भारत में कहां-कहां मनाया जाती है वरलक्ष्मी व्रत

वरलक्ष्मी व्रत को बड़ी धूमधाम के साथ इन विशेष भारतीय राज्यों में मनाया जाता है जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर तमिलनाडु और तेलंगाना। इस विशेष दिन पर भक्तों का उत्साह और विश्वास देखते ही बनता है। यही नहीं बल्कि यह समारोह महाराष्ट्र राज्य में भी बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन राज्यों में एक वैकल्पिक अवकाश भी ऱखा जाता है ताकि लोग इसे पूरी श्रदधा के साथ मना सके।

वरलक्ष्मी व्रत की तैयारी कैसे करे:

पूजा मे प्रयोग होने वाली सभी आवश्यक सामग्री एक दिन पहले ही एकत्रित कर ली जाती है। वरलक्ष्मी व्रत के दिन भक्त सुबह जल्दी उठ जाते हैं और स्नानादि करने के बाद साफ वस्त्र ग्रहण करते है। पूजा करने के लिये भक्त सूर्योदय से ठीक पहले उठ जाते है। उसके बाद घर के आस-पास की सफाई की जाती है। पूजा स्थल को विशेष तौर पर साफ किया जाता है। और रंगोली भी बनाई जाती है।

  • इसके बाद कलश को सजाया जाता है। इसके लिये चांदी या कांसे को कलश लिया जाता है। इसे चंदन से सुस्ज्जित किया जाता है। इस पर खासतौह पर स्वास्तिक का प्रतीक लगाया जाता है।
  •  कलश के अदंर पानी या कच्चा चावल के साथ चूना,सिक्के, सुपारी और पांच अलग-अलग तरह के पत्ते भरे जाते हैं।
  • उसके बाद इसे आम की पत्तियों से ढंक दिया जाता है। और उसके ऊपर नारियल रख दिया जाता है। नारियल पर, हल्दी पाउडर के साथ देवी लक्ष्मी की एक तस्वीर भी लगाई जाती है और इसके उपरात इस कलश की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है।
  • कलश को चावलों के एक ढेर के ऊपर रखा जाता है। पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा के साथ की जाती है।
  • और उसके बाद देवी लक्ष्मी की स्तुति के मंत्रोच्चारण करते हुऐ पूजा आगे बढाई जाती है।
  • महिलाँए प्रसाद को घर पर ही तैयार करती है पूरी तरह से स्वच्छता को ध्यान में रखते हुये। पूजा के दौरान कलावा बांधने भी अति आवश्यक माना गया है।

पूजा के अगले दिन का अनुष्ठान–

पूजा के एक दिन बाद श्रद्धालु स्नान करते हैं और उसके उपरांत पूजा में इस्तेमाल किया गया कलश को हटाया जाता है। कलश के अंदर रख चावलों को घर में रखे चावल के साथ मिश्रित किया जाता है ताकि सुख स्मृदधि का वास हौ और पूजा में इस्तेमाल किया गया जल पूरे घर में और चावल पर छिड़का जाता है ताकि नकारात्मकता का नाश हो।

 

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