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वराह जयंती | Varah Jayanti on 06 Sep 2024 (Friday)

वराह अवतार श्री हरि का यानी विष्णु जी का तीसरा अवतार है|

वराह जयंती के अवसर पर दो कथाओं की मान्यता है|

दिति के गर्भ से हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु ने जन्म सौ वर्षों के गर्भ के पश्चात लिया, इस कारण जन्म लेते ही उनका रूप विशालकाय हो गया। हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया। और चारो तरफ अपने अत्याचारों से हां हां कार मचा दी| एक बार हरिण्यकश्यप ने वरूण देव को युद्ध के लिये ललकारा तब वरूण ने विनम्रता से कहा कि आपसे टक्कर लेने साहस केवल भगवान विष्णु में ही हैं। हिरण्याक्ष जब विष्णु जी की खोज कर रहा था तब उसे नारदमुनि से पता चला कि भगवान विष्णु वराह अवतार लेकर रसातल से पृथ्वी को समुद्र से ऊपर ला रहे हैं। हरिण्याक्ष समुद्र के नीचे रसातल तक जा पंहुचा। वहां उसने देखा कि वराह रूपी भगवान विष्णु अपने दांतो पर धरती उठाए चले जा रहे है। उसने भगवान विष्णु को ललकारा| लेकिन वह शांत चित से आगे बढ़ते रहे और जब भगवान विष्णु उचित आधार देकर पृथ्वी को स्थापित कर दिया तो उन्होंने हिरण्याक्ष से कहा कि सिर्फ बातें ही करना जानते हो या लड़ने का साहस भी रखते हो। जैसे ही उसने वराहरूपी भगवान विष्णु पर प्रहार किया और उनकी ओर झपटा। पलक झपकते ही भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से, उसका संहार किया। भगवान के हाथों मृत्यु भी मोक्ष देती है। हरिण्याक्ष सीधा बैंकुठ लोक गमन कर गया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने हरिण्याक्ष का वध करने उद्देश्य से ही वराह अवतार के रूप में जन्म लिया। संयोग से जिस दिन वराह रूप में भगवान विष्णु प्रकट हुए वह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी इसलिये इस दिन को वराह जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

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भगवान् विष्णु ने क्यों लिए वराह अवतार ?

पृथ्वी के उद्धार के लिए भगवन श्री हरी जी के तृतीया अवतार थे वराह अवतार। विष्णु भगवान ने प्रलय के जल मे डूबी हुई पृथ्वी को बचाने के लिए वराह अवतार हुआ। एक दिन स्वायम्भुव महर्षि मनुजी ने हाथ जोङकर अपने पिता ब्रह्मा जी से कहा, "पिता जी, एकमात्र आप ही समस्त जीवो के जन्मदाता है अथवा जिविका प्रदान करने वाले है| हम ऐसा कौनसा कर्म करे, जिससे आपकी सेवा हो सके? तब ब्रह्मा जी ने उनको ध्यान पूर्वक पृथ्वी का पालन करने को कहा| इस पर मनु ने कहा, "परन्तु पृथ्वी इस समय प्रलय के जल मे डूबी हुई है" मै पृथ्वी का पालन कैस करूँ? ब्रह्मा जी पृथ्वी के उद्धार की बात सोच ही रहे थे कि उनकी नाँक से अचानक अँगूठे के आकार का एक वराह शिशु निकला। देखते ही देखते वह पर्वताकार होकर गरजने लगे। ब्रह्मा जी प्रभु की घुरघुराहट सुनकर उनकी स्तुति करने लगे। ब्रह्मा जी की स्तुति से वराह भगवान प्रसन्न हुए। वे तुरंत ही जल में गए और थोङी देर बाद ही जल मे डूबी हुई पृथ्वी को अपनी दाढो पर लेकर रसातल से ऊपर आने लगे| मार्ग मे हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर हमला किया। भगवान् वराह ने तुरंत ही हिरण्याक्ष का वध कर उसे मार दिया| जल से बाहर निकले हुए भगवान को देखकर ब्रह्मा आदि देवता हाथ जोङकर उनकी स्तुति करने लगे। इससे प्रसन्न होकर वराह भगवान ने अपने खुरो से जल को रोककर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।

वराह जयंती - महत्व

1.   भगवान् विष्णु के अपने पुनर्जन्म का उद्देश्य धरती पर ब्राह्माण का संरक्षण, धर्म बढ़ाना और निर्दोष लोगों को असुर और राक्षसों बचाने के लिए था।

2.   भगवान वराह की पूजा करने से मनुष्य को सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति होती है और अपने जीवन से सभी बुराइयों से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना करते हैं।

व्रत कैसे करें और पूजा विधि क्या है

1.   सर्वप्रथम स्नान करके खुद को शुद्ध कर पीले रंग के वस्त्र धारण करें|

2.   हाथ में जल लेकर भगवान वराह की उपासना का संकल्प लें।

3.   एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और उसपे भगवान वराह की प्रतिमा स्थापित करें|

4.   सबसे पहले कलश स्थापना करें श्रीफल और आम के पत्तो के साथ|

5.   भगवान वराह को फल, फूल, मिठाईयां, आदि अर्पित करें|

6.   घी का एक मुखी दीपक जलाएं अथवा धुप भी लगाएं|

7.   पूजा करने के बाद श्रीमदभागवद् गीता का पाठ कीजिए।

8.    वराय नमः मंत्र का उच्चारण कीजिए और प्रभु से अपनी मनोकामना के लिए प्रार्थना कीजिए।

9.   निराहार व्रत रखें| फलाहार या जल पीकर, अपनी शमता अनुसार व्रत करें|

10. अगले दिन व्रत पूरा होने के बाद ब्राह्मणो को दान दीजिए।

11. इस दिन गरीबों को अन्न वस्त्र दान करना बहुत ही फलदाय होता है|

 

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