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विजया एकादशी | Vijaya Ekadashi on 24 Feb 2025 (Monday)

जानिए क्या है विजया एकादशी की महिमा और पूजा विधि

 

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन विजया एकादशी का व्रत किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान राम ने लंका पर विजय पाने के लिए समुद्र के किनारे बैठकर भगवान  की पूजा की थी. विजया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. विजया एकादशी के दिन श्रद्धा पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है और सभी प्रकार के दोषों का नाश हो जाता है. विजय एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को मनचाहा वरदान मिलता है. भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल जरूर करें.  


विजया एकादशी पूजा विधि-


1- विजया एकादशी व्रत करने के लिए दशमी तिथि को कलश स्थापना करें. आप सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश की स्थापना कर सकते हैं

 

2- कलश में जल  के साथ-साथ अक्षत सुपारी और पंच पल्लव रखें. अब इसके ऊपर एक बर्तन में अक्षत भरकर भगवान विष्णु की स्थापना करें

 

3- अब एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. स्नान करने के बाद माला, चंदन, सुपारी, नारियल, गंध और नैवेद्य से कलश की पूजा करें

 

4- पूरा दिन कलश के सामने बैठकर भगवान का ध्यान करें. भगवान के सामने घी का दीपक जलाएं, पूरा दिन व्रत करने के बाद अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी नदी या तालाब के तट पर स्थापित कर दें और षोडशोपचार से कलश की पूजा करें

 

5- अब देव प्रतिमा को किसी ब्राह्मण को दान में दे

 

6- श्रीराम ने  इसी विधि से विजया एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से उन्होंने रावण को हराकर लंका पर विजय प्राप्त की और माता सीता को उनकी कैद से आजाद कराया. इस व्रत को करने से मनुष्य के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मृत्यु के पश्चात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.


विजया एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले - हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।


श्री भगवान बोले हे राजन्- फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रतके प्रभाव से मनुष्‍य को विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य केश्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजीने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी विधान कहिए।
ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है।इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए। 
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजीऔर सुग्रीव की‍ मित्रता कावर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।
श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।

श्रीलक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं,सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीपमें वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्रीरामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए।
मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ?  रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना ‍सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने केलिए लंका जा रहाहूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।

वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।
इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी,ताँबा या मिट्‍टी का एक घड़ा बनाएँ।उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर श्री नारायण भगवान् की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एका‍दशी केदिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।
तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें‍ और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्यनियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हेराम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी नेऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।
अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत कोकरेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

 

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