गण’ अर्थात पवित्रक, ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के स्वामी।
शिव-पार्वती के पुत्र गणेश जन्म की कथा वर्णन से पता चलता है की गणेश का जन्म न होकर निर्माण बल्कि पार्वती जी के शरीर से उतारी गई हल्दी से हुआ था। स्नान पूर्व गणेश को अपने रक्षक के रूप में बैठा कर वो चली गईं और शिव जी इस बात से अनभिज्ञ थे। पार्वती से मिलने में गणेश को अपना विरोधी मानकर उनका सिर काटकर अपने रास्ते से हटा दिया।
जब वास्तविकता का ज्ञान हुआ तो अपने गणो को उन्होंने आदेश दिया की उस पुत्र का सिर लाओ जिसके ओर उसकी माता की पीठ हो। शिव-गणो को एक हाथी का पुत्र जब इस दशा में मिला तो वो उसका सिर ही ले आए और शिव जी ने हाथी का सिर उस बालक के सिर पर लगाकर बालक को पुनर्जीवित कर दिया। यह घटना भाद्रमास मास की चतुर्थी को हुई थी इसलिए इसी को गणेश जी का जन्म मानकर इस तिथि को गणेश चतुर्थी माना जाता है।
सबसे अलग शरीर होने के कारण सभी देवताओं ने गणेश को सभी देवताओं का अग्र्ज़ बना दिया और तब से गणेश वंदना हर पूजा से पहले करी जाती है।
चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की तिथि माना जाता है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। भाद्रपद के दौरान पड़ने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
आइए जानें कैसे करें विनायक चतुर्थी का पूजन :-
1. ब्रह्म मुहूर्त (सूर्य उदय के पूर्व) में उठकर, पीले रंग के वस्त्र धारण करें। भगवन गणेश के व्रत का संकल्प लें|
2. पूजन के समय, एक चौकी रखें उसपे हरे रंग का कपडा बिछाएं और गणेश मूर्ति की स्थापना करें|
3. मूर्ति स्थापना के पश्चात कलश स्थापना करें, एक लोटे में जल लें उसपे आम के पत्ते और श्री फल रखें|
4. श्रीफल अथवा लोटे दोनों पर हल्दी कुमकुम से स्वस्तिक बनाये और कलावा अर्पित करें|
5. इसके पश्चात षोडश ओपचार पूजन करें निम्न लिखित तरीके से:-
I. आवाहन - समस्त देवी देवताओ का ध्यान कर उनका स्वागत करें|
II. आसन - सब देवी देवताओं का ध्यान कर उन्हें स्थान ग्रहण कराएं
III. पद्य - जल से सभी देवी देवताओं के चरण धोये
IV. अर्ग्य - हाथों पर जल छींटा देकर हाथ धोये
V. आचमन - जल से आचमन करें
VI. स्नान - मूर्तियों अथवा खुद पर गंगाजल का छींटा देकर शुद्ध करें
VII. वस्त्रम - भगवन गणेश को क्षमता अनुसार वस्त्र अर्पित करें. अगर वस्त्र न हो तोह मोली को वस्त्र के रूप में अर्पण करें
VIII. यज्ञोपवीत - गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें.
IX. आभरणाम - भगवन गणेश को क्षमता अनुसार गहने अर्पित करें. (मानसिक रूप से भी आप गहने अर्पित कर सकते हैं)
X. गंध - गणेश जी को चन्दन की सुगंध अर्पित करें
XI. पुष्पम - पीले फूलों की माला भगवन को अर्पित karen
XII. धूपं - धुप अथवा अगरबत्ती लगाएं
XIII. दीपम - घी अथवा टिल के तेल का दीपक जलाएं
XIV. नैवेद्य - फल, मिठाईयों का भोग भगवन गणेश को लगाएं
XV. अर्चना - सबसे पहले गणेश वंदना कर पूजा शुरू करें| गणेश मन्त्र का जप करें (ॐ गं गणपतये नमः) का जाप करें व् गणेश स्तोत्र का पथ करें
XVI. नमस्कारम - अपनी पूजा के पूर्ण होने पर गणेश भगवान सहित समस्त देवी देवता को नमस्कार कर अपनी पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें|
विनायक चतुर्थी कथा
एक दिन स्नान करने के लिए भगवान शंकर कैलाश पर्वत से भोगावती जगह पर गए। उनके जाने के बाद मां पार्वती ने घर में स्नान करते समय अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया था। उस पुतले को मां पार्वती ने सतीव कर उसका नाम गणेश रखा. पार्वती जी ने गणेश से मुद्गर लेकर द्वार पर पहरा देने के लिए कहा. पार्वती जी ने कहा था कि जब तक मैं स्नान करके बाहर ना आ जाऊं किसी को भी भीतर मत आने देना। भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव वापस घर आए तो वे घर के अंदर जाने लगे। लेकिन बाल गणेश ने उन्हें रोक दिया। इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर चले गए।
शिवजी जब अंदर पहुंचे तो बहुत क्रोधित थे। पार्वती जी ने सोचा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव क्रुद्ध हैं। इसलिए उन्होंने तुरंत 2 थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का आग्रह किया। दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा, 'यह दूसरी थाली किस के लिए लगाई है?' इस पर पार्वती जी ने कहा कि पुत्र गणेश के लिए, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनकर भगवान शिव चौंक गए और उन्होने पार्वती जी को बताया कि, 'जो बालक बाहर पहरा दे रहा था, मैने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है। यह सुनकर पार्वती जी बहुत दुखी हुईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने भगवान शिव से पुत्र को दोबारा जीवित करने का आग्रह किया। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया. पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं।