विवाह पंचमी
विवाह पंचमी एक बहुत ही प्रसिदध् हिंदू त्योहार है और काफी जोरशोर से मनाया जाता है। यह त्यौहार विशेष रुप से भगवान राम और देवी सीता की विवाह के रुप में मनाया जाता है।
महत्तव –
यह एक विशेष त्यौहार है जो कि हिंदू कैलेंडर में 'मार्गशीर्ष' के महीने के दौरान शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन पर बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती है। हिंदू धर्म में इस विशेष दिन को बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है। इसे विवाह पंचमी इसिलिये कहा जाता है क्योंकि यह भगवान राम जी और देवी सीता की शादी की सालगिरह के बहुत ही शुभ प्रतीक रुप में माना जाता है। इस त्यौहार की तैयारी बहुत ही दिनों पहले से शुरु हो जाता है।
इस दिन क्या करें-
- आपको इस दिन फलों के सेवन करना चाहिये।
- इस शुभ दिन सीता राम विवाह प्रसंग की कथा कहने और सुनने को बहुत ही फलदायी माना जाता है।
- धार्मिक पुस्तक का दान करना भी बहुत ही शुभ होत है।
- इस विशेष दिन पर श्री रामचरितमानस जी का पाठ करना चाहिये।
- इस दिन सीता राम जी का विवाह का आयोजन भी किया जाता है।
- इस दिन मंदिर में अखण्ड मानस पाठ कराये जाने को भी बहुत ही शुभ माना जाता है
- यदि आपका वैवाहिक जीवन सही नहीं चल रहा है तो इस सीता राम विवाह कराकर भंडारा कराया जाना काफी शुभ माना जाता है।
- घर के मंदिर में घी का अखंड दीप जलाएं।
क्या न करें-
- पत्नी का अपमान कतई ना करें।
- पत्नी से असत्य कदापि ना बोलें।
- घर में गंदगी के अंबार ना लगायें
- अन्न का सेवन इस दिन ना करें।
मान्यातायें-
रामायण और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में, विवाह पंचमी का बहुत ही अधिक महत्व माना जाता है । ऐसा माना जाता है कि अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र श्री राम जी का जन्म इसी दिन हुआ था और ये भगवान विष्णु जी के अवतार हैं। भगवान राम जी ने देवी सीता के जन्म स्थान जनकपुरी का भी दौर किया था। इस विवाह पंचमी का संबंध उस स्वंयवर से भी है जिसमे भगवान राम जी ने भगवान शिव जी के बहुत ही बलशाली 'धनुष' को तोड़कर राजकुमारी सीता जी से विवाह किया। इस अद्भुत विवाह समारोह को अमर बनाने के लिए विवाह पंचंमी को हर साल मनाया जाता है ।
विधि –
इस दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपडे पहने और राम विवाह का संकल्प लें। और मंदिर में भगवान राम और सीता जा की मुर्ति की स्थापना करे और उन्हें पीले और लाल वस्त्र चढाये। इसके बाद बाल कांड और विवाह प्रसंग का पाठ करें और फिर भगवान राम और सीता जी का गठबंधन करने के बाद आरती उतारें। और प्रसाद बांटें
विवाह पंचमी की कहानी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सीता माता का जन्म धरती से हुआ था. कहा जाता है कि राजा जनक हल जोत रहे थे तब उन्हें एक बच्ची मिली और उसे वे अपने महल में लाए व पुत्री की तरह पालने लगे. उन्होंने उस बच्ची का नाम सीता रखा. लोग उन्हें जनक पुत्री सीता या जानकी कहकर पुकारते थे. मान्यता है कि माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था. उस धनुष को परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था. उसी दिन राजा जनक ने निर्णय लिया कि वो अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे जो इस धनुष को उठा पाएगा. फिर कुछ समय बाद माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर रखा गया. स्वयंमर के लिए कई बड़े-बड़े महारथियों, राजाओं और राजकुमारों को निमंत्रण भेजा गया. उस स्वयंवर में महर्षि वशिष्ठ के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे.
स्वयंवर शुरू हुआ और एक-एक कर सभी राजा, धुरंधर और राजकुमार आए लेकिन उनमें से कोई भी शिव के धनष को उठाना तो दूर उसे हिला भी नहीं सका. यह देखकर राजा जनक बेहद दुखी हो गए और कहने लगे कि क्या मेरी पुत्री के लिए कोई भी योग्य वर नहीं है. तभी महर्षि वशिष्ठ ने राम से स्वयंवर में हिस्सा लेकर धनुष उठाने के लिए कहा. राम ने गुरु की आज्ञा का पालन किया और एक बार में ही धनुष को उठाकर उसमें प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन तभी धनुष टूट गया. इसी के साथ राम स्वयंवर जीत गए और माता सीता ने उनके गले में वरमाला डाल दी. मान्यता है कि सीता ने जैसे ही राम के गले में वर माला डाली तीनों लोक खुशी से झूम उठे. यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन आज भी धूमधाम से भगवान राम और माता सीता का गठबंधन किया जाता है.