हमारे शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास की नवमी तिथि के दिन आंवला नवमी का त्योहार मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि से लेकर पूर्णिमा के दिन तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं. आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के साथ साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है. आंवला नवमी को अक्षय नवमी तथा कुष्मांड नवमी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है की आंवला नवमी के दिन गंगा स्नान, पूजा, हवन, तर्पण और दान पुण्य करने से मनुष्य को मनचाहे फलों की प्राप्ति होती है, पर आजकल लोग शहरों में रहते हैं. जिसकी वजह से गंगा स्नान करना संभव नहीं हो पाता है. यदि आप नदी में जाकर गंगा स्नान नहीं कर सकते हैं तो अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें. ऐसा करने से आपको गंगा स्नान करने जितना पुण्य प्राप्त होगा.
अक्षय नवमी पूजन विधि -
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अक्षय नवमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त ( सुबह चार बजे ) में उठकर स्नान करने के बाद व्रत करने का संकल्प लें. संकल्प लेने के लिए अपने दाहिने हाथ में जल, अक्षत, फूल, दूर्वा लेकर नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें. ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः " मेरी पूजा स्वीकार करें और मुझे हिम्मत प्रदान करें की मैं आपका व्रत सफलता पूर्वक संपन्न कर पाऊं”
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व्रत का संकल्प करने के बाद आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें. यदि आपके घर के आसपास आंवले का पेड़ नहीं है तो गमले में आंवले की टहनी लगाकर पूजा ना करें.
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आंवले की पूजा करने के लिए एक लोटे में चावल भरकर उसके मुख को लाल कपड़े से बांध दें. अब इसे उल्टा करके इसके ऊपर हरे रंग से आंवले के वृक्ष का चित्र बनाएं और बगल में पांच आंवले रखे.
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अब धूप, दीप, पुष्प, अक्षत आदि से आंवले के वृक्ष की विधिवत पूजा करें. इसके बाद आंवले के वृक्ष में जल में थोड़ा सा दूध मिलाकर अर्पण करें.
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अब घी और कपूर का दीपक जलाकर आंवले के वृक्ष की आरती करें. आरती करने के बाद भगवान् विष्णु का ध्यान करते हुए आंवले के पेड़ की परिक्रमा करें.
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आंवले के वृक्ष की पूजा करने के बाद अपनी क्षमता अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दक्षिणा दें. इसके अलावा पितरों की ठंड को दूर करने के लिए क्षमता अनुसार गर्म कपड़ों का दान दें.
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