बहुला चतुर्थी व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन मनाया जाता .है यह व्रत पुत्रवती स्त्रियां अपने पुत्रों की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. यह व्रत मूल रूप से गौ पूजा का पर्व है. जिस प्रकार एक माता की तरह अपना दूध पिलाकर गाय मनुष्यों का पालन पोषण और रक्षा करती है, उसी कृतज्ञता के भाव के साथ इस व्रत के नियमों का पालन सभी महिलाओं को करना चाहिए. यह व्रत संतान प्राप्ति और ऐश्वर्य बढ़ाने वाला है. शास्त्रों में भी बताया गया है कि माता से बढ़कर गौ माता होती हैं.
बहुला चतुर्थी व्रत का नियम :-
1- बहुला चतुर्थी के दिन सुबह प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के पश्चात हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, द्रव्य और जल लेकर विधि पूर्वक अपना नाम गोत्र और वंश का उच्चारण करके संकल्प लेना चाहिए.
2- बहुला चतुर्थी के दिन व्रत में पूरे दिन व्रत करके संध्या काल में गणेश गौरी, भगवान श्री कृष्ण और मिट्टी की गाय और सिंह बनाकर उस की विधिवत पूजा करनी चाहिए.
3- बहुला चतुर्थी में भगवान को भोग लगाने के लिए कई तरह के पकवान तैयार किए जाते हैं. इस प्रसाद को भगवान् को चढाने के बाद बछड़े को खिला दिया जाता है.
4- व्रत रखने वाली महिलाओं को इस दिन श्रद्धा पूर्वक बहुला चतुर्थी व्रत कथा भी सुननी चाहिए.
5- बहुला चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा का भी नियम है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन गणेश जी की पूजा करने से सुख और समृद्धि प्राप्त होती है.
6- इस दिन श्रद्धा पूर्वक व्रत और पूजा करने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उसी प्रसाद से पारण करना चाहिए.
7- बहुला चतुर्थी के दिन भगवान श्री कृष्ण और गाय की वंदना करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें.
ओम कृष्णाय वासुदेवाय हरे परमात्मने नमः
बहुला चतुर्थी की पौराणिक मान्यता :-
1- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बहुला चतुर्थी के दिन महिलाओं को अपने बच्चों की खुशहाली और लंबी आयु के लिए कुम्हार से मिट्टी के भगवान शिव पार्वती, कार्तिकेय, श्री गणेश और गाय की प्रतिमा बनवानी चाहिए.
2- अब इन मूर्तियों की मंत्र उच्चारण और विधि विधान पूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए.
3- मान्यताओं के अनुसार इस प्रकार विधि पूर्वक पूजा करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.
बहुला चतुर्थी व्रत के लाभ:-
1- बहुला चतुर्थी व्रत रखने से मन की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं.
2- इस व्रत को करने से शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं.
3- यह व्रत निसंतान दंपत्ति को संतान सुख देता है.
4- इस व्रत को करने से जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है.
5- बहुला चतुर्थी का व्रत करने से संतान के ऊपर आने वाले सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
6- बहुला चतुर्थी का व्रत निसंतान को संतान तथा संतान को मान सम्मान और ऐश्वर्य प्रदान करता है.
बहुला चतुर्थी के भूल कर भी ना करें ये काम-
1- बहुला चतुर्थी के दिन गाय के दूध से बनी कोई भी वस्तु नहीं खानी चाहिए. इस दिन गाय के दूध पर पूरी तरह से बछड़े का अधिकार होता है.
2- इस दिन गाय माता के साथ साथ उनके बछड़े की भी श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करनी चाहिए.
3- बहुला चतुर्थी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा का भी नियम है.
बहुला चतुर्थी व्रत कथा :-
बहुला चतुर्थी व्रत से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा प्रचलित है। जब भगवान विष्णु का कृष्ण रूप में अवतार हुआ तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी कृष्ण की सेवा का विचार आया और अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई।
भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था। एक बार श्रीकृष्ण के मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया। जब बहुला वन में चर रही थी तब भगवान सिंह रूप में प्रकट हो गए। मौत बनकर सामने खड़े सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई। लेकिन हिम्मत करके सिंह से बोली, 'हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी।'
सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जाने दूं, तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी। बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई।
बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि 'हे बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा।'
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