हिंदू धर्म हमेशा से ही त्यौहारों, व्रत और विभिन्न प्रकार के पर्वों के लिये जाना जाता है। एक ऐसी ही महत्वपूर्ण तिथि को भडली नवमी के नाम से जाना जाता है। इस तिथि को आमतौर पर हिंदू समुदाय में विवाह के लिये शुभ दिनों के अंतिम दिन को माना जाता है।
क्या है भडली नवमी –
सरल शब्दों में कहे तो इस दिन के बाद भगवान निंद्रा की अवस्था में चले जाते हैं। भडली नवमी भगवान विष्णु जी के निंद्रा की अवस्था ग्रहण करने से पहले का दिन मानी जाती है। और फिर इसके बाद विवाह की तिथि नहीं रखी जाती हैं क्योंकि भगवान का आशीर्वाद नहीं मिल पाता है। और इसलिए सभी भक्त इस विशेष दिन को बहुत ही अनोखे तरीके से मनाते है और ईश्वर का आशीर्वीद लेते है।
भडली नवमी को अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे आश्रम शुक्ल पक्ष, भटली नवमी, कंदर्प नवमी। भडली नवमी को आषाढ महीने के दौरान मानाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है और उन्हीं के सम्मान में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भडली नवमी के उपरांत किसी भी प्रकार की धार्मिक त्यौहार या गतिविधि को संपन्न नहीं किया जाता है।
कैसे मनायी जाती है भडली नवमी
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भडल्या नवमी तिथि का महत्व -
भडल्या नवमी तिथि के दिन शादी और विवाह के लिये काफी शुभ माना जाता है। कई लोग ऐसे भी होते है जिनके विवाह के लिये किसी भी प्रकार का कोई मुहुर्त नहीं निकलता है। उन लोगों के लिये यह मूहुर्त काफी शुभ होता है। ऐसा करने से उनके जीवन में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होता है। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन गुप्त नवरात्र का भी विश्राम होता है तो यह दिन और भी अधिक शुभ होता है।
भडली नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा –
इस पर्व से जुड़ी एक हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु अपनी शक्ति के लिये जाने जाते थे । तो एकबार ऐसा हुआ कि भगवान सो रहे थे और इसी दौरान हिंदुओं के विवाह नहीं हो सकते थे। वही विवाहित जीवन को तब तक सुखमय और संपन्न नहीं माना जाता है जबतक भगवान विष्णु का आशीर्वाद उसमें शामिल ना हों।
झारखंड राज्य में एक छोटा सा शहर है जिसे इटखोरी के नाम से जाना जाता है। इस पूरे क्षेत्र में भगवान विष्णु के भक्त रहते हैं। यहां एक भगवान शिव और देवी काली से संबंधित बहुत ही प्राचीन मंदिर है, जहां भक्त दूर-दूर से उनका आशीर्वाद लेने आते हैं। भडली मेले के दौरान देवी काली के जगदबा के रुप में पूजा जाता है और उन्हें बलिदान भी चढाया जाता है। इस दिन मुंडन संस्कार के लिये भी काफी लाभदायक माना जाता है।