क्या है हरियाली तीज-
श्रावण मास में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन हरियाली तीज या श्रावणी तीज का पर्व मनाया जाता है. हरियाली तीज का त्योहार विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है. पूर्वी उत्तर राज्य में हरियाली तीज के पर्व को कजरी तीज के नाम से मनाया जाता है. सभी महिलाएं इस पर्व को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाती हैं. इस दिन पेड़ों पर झूले लगाए जाते हैं. यह पर्व सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है. हरियाली तीज का त्योहार भोलेनाथ और माता पार्वती के पुनर्मिलन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व श्रावण मास में पड़ता है, जब चारों तरफ हरियाली ही हरियाली होती है. इसीलिए इसे हरियाली तीज कहा जाता है.
हरियाली तीज का महत्व-
मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन तपस्या की थी. कठिन तपस्या और 108 जन्म की लंबी प्रतीक्षा के पश्चात माता पार्वती ने भोलेनाथ को पति के रूप में प्राप्त किया था. तभी से ऐसा माना जाता है कि जो भी सुहागन स्त्रियां इस दिन व्रत करती हैं उन्हें सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है. नव विवाहित स्त्रियों के लिए विवाह के पश्चात पड़ने वाले श्रावण के पहले पर्व का विशेष महत्व होता है. हरियाली तीज के अवसर पर लड़कियों को ससुराल से मायके बुला लिया जाता है. इस दिन सभी सुहागन स्त्रियां अपनी सास के पैर छूकर उन्हें सुहाग देती हैं.
हरियाली तीज पूजन विधि-
हरियाली तीज की पूजा करने के लिए प्रातः काल सूर्योदय के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा का संकल्प लें. अब काली मिट्टी से भगवान शिव पार्वती और श्री गणेश की मूर्ति का निर्माण करें. अब एक थाली में सुहाग की सभी सामग्रियों को सजा कर माता पार्वती को अर्पित करें. अब भोलेनाथ को नए वस्त्र चढ़ाकर हरियाली तीज की कथा सुने.
हरियाली तीज व्रत कथा-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए 107 बार पृथ्वी पर जन्म लिया, पर एक बार भी वह भोलेनाथ को पति के रूप में प्राप्त नहीं कर सकी. 107 बार जन्म लेने के पश्चात जब माता पार्वती ने 108 वीं बार पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया तब उन्होंने भोलेनाथ को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन तपस्या की. इस कठिन तपस्या में माता पार्वती ने अन्न जल का त्याग कर दिया और सूखे पत्तों का सेवन करके भोलेनाथ की तपस्या की. माता पार्वती के पिता उनकी ऐसी स्थिति देखकर बहुत ही नाराज थे. माता पार्वती ने एक गुफा के अंदर भोलेनाथ की कठिन तपस्या की. सावन मास में तृतीय शुक्ल पक्ष तिथि के दिन माता पार्वती ने बालू से शिवलिंग बनाकर भोलेनाथ की तपस्या की. माता पार्वती की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया. तभी से ऐसा माना जाता है कि जो भी स्त्री इस दिन पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ व्रत और पूजन करती है उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. कुंवारी कन्या भी अच्छा जीवन साथी प्राप्त करने के लिए यह व्रत कर सकती हैं.
हरियाली तीज से जुड़ी विशेष बातें-
मान्यताओं के अनुसार हरियाली तीज का व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है. अगर कोई कुंवारी कन्या हरियाली तीज का व्रत करती है तो उसे मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है. इस दिन सभी महिलाएं मिट्टी या बालू से शिवलिंग और माता पार्वती की मूर्ति का निर्माण करके उनकी पूजा करती हैं. पूजा करने के पश्चात भगवान की मूर्तियों को नदी में या किसी तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है. हरियाली तीज का व्रत करने वाले सभी भक्तों को प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात मां पार्वती की विधि विधान के साथ पूजा करके इस व्रत का आरंभ करना चाहिए. मान्यताओं के अनुसार हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करना चाहिए. हरियाली तीज का व्रत खोलने से पहले भोलेनाथ और माता पार्वती को खीर halue or maalpue का भोग लगाना चाहिए.