Indian Festivals

होलिका दहन से जुडी खास बातें

हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि विराट पुरुष के मुख से ब्राम्हण भुजाओं से क्षत्रिय जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए हैं. इनके नाम से ही इन्हे चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ) में बांटा गया है और इनके चार मुख्य त्योहार रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली और होली माने जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार चार वर्णों की उत्पत्ति विराट के एक शरीर से हुई है इसी कारण हर मनुष्य के शरीर में चारों वर्ण विराजमान होते हैं. इसलिए मूल रूप से यह कहना गलत होगा कि कोई एक त्यौहार किसी खास वर्ण से संबंध रखता है. हां ऐसा अवश्य हो सकता है कि किसी खास वर्ण के लिए किसी त्योहार की विशेष मान्यता हो, पर सभी त्योहारों में होली को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. जिस तरह मकान में नींव का सबसे अधिक महत्व होता है उसी तरह शरीर रूपी घर के लिए पैर को आधार स्तंभ माना जाता है. सब धर्मों की सिद्धि का मूल सेवा होता है. बिना सेवा किए कोई भी धर्म सिद्ध नहीं हो सकता है. इसलिए मूलभूत सेवा ही जिसका धर्म होता है वह शूद्र सब वर्णों से महान माना जाता है. उसके लिए होली का त्योहार भी सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है. शास्त्रों में ब्राह्मण का धर्म मोक्ष के लिए, क्षत्रिय का धर्म भोग के लिए, वैश्य का धर्म के अर्थ के लिए और शुद्र का धर्म के लिए बताया गया है. इसलिए इसकी वृद्धि से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं. 

होली का स्वरूप:- 
  • खुद भगवान श्री कृष्ण ने द्वारिका वासियों, अपनी रानियों, पट रानियों और राधा के साथ होली का उत्सव बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया है. देवता भी होली के उत्सव का आनंद लेने में पीछे नहीं रहे हैं. 
  • होली का त्योहार हर साल फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है. इसे दो भागों में बांटा गया है पूर्णिमा के दिन होली का पूजन और होलिका दहन किया जाता है, तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन रंग और गुलाल से होली खेली जाती है. 
  • होलिका दहन का निर्णय "ज्योति निर्बंध” में बताया गया है कि प्रतिपदा चतुर्थी और भद्रा में जो होलिका की पूजा करता है वह 1 साल तक उस देश और नगर को आश्चर्य से दहन करता है. 
  • पहले दिन प्रदोष के समय भद्रा हो और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले पूर्णिमा तिथि अगर समाप्त होती हो तो भद्रा के खत्म होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए और सूर्य उदय होने से पहले होलिका दहन करना चाहिए. 
  • अगर पहले दिन प्रदोष ना पड़ रहा हो और रात्रि के समय भद्रा रहे और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले ही पूर्णिमा तिथि समाप्त हो रही हो तो ऐसे समय में पहले दिन भद्रा हो तो भी उस पक्ष में होलिका दहन कर देना चाहिए. 
  • अगर पहले दिन रात्रि भर भद्रा तिथि हो और दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा का उत्तरार्ध भी मौजूद हो और उस समय अगर चंद्र ग्रहण हो तो ऐसे अवसर से पहले दिन भद्रा हो तब भी सूर्यास्त के पीछे होलिका दहन कर देना चाहिए. 
  • अगर अगले दिन प्रदोष काल के वक्त पूर्णिमा तिथि पड़ रही हो और भद्रा उससे पहले उतरने वाली हो पर चंद्र ग्रहण पड़ रहा हो तो उसके शुद्ध होने के बाद स्नान करके होलिका दहन करना चाहिए. 
  • अगर फाल्गुन दो पड़ रहे हो, मलमास हो तो शुद्ध मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन करना शुभ माना जाता है. 
 
होली पूजन विचार:-
  • होली का महोत्सव रहस्य पूर्ण माना जाता है. इसमें होली ढूंढा और प्रहलाद प्रमुख है. इसके अलावा इस नवनेष्टि यज्ञ भी किया जाता है. इसी परंपरा के अनुसार धर्म ध्वज राजाओं के यहां माघी पूर्णिमा की सुबह में सूर्य मंत्र और  सभ्य ढोल नगाड़ों के साथ नगर से बाहर जाकर वन में शाखा सहित वृक्ष लाते थे और गंध अक्षत आदि से उनकी पूजा की जाती थी. 
  • नगर या गांव से बाहर पश्चिम दिशा की ओर इन्हें स्थापित करके होलिका दहन किया जाता था. लोगों ने इस होली को होली दंड या प्रहलाद के नाम से जाना जाता है. 
  • अगर इसे नवोनेष्टि का यज्ञ स्तंभ माना जाए तो गलत नहीं होगा. होलिका दहन करने वाले व्यक्ति को फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को सुबह स्नान करने के बाद नीचे दिए गए मंत्र का जाप करके संकल्प लेना चाहिए. 
मंत्र:- 

मम बालक बालकादिभिः सह सुख शांति प्राप्तयर्थ होलिका व्रतम करिष्ये 
  • अब होलिका दहन की जगह को जल् से छिड़ककर शुद्ध कर लें. अब उसमें सूखी लकड़ी, सूखे उपले और कांटे आदि स्थापित करें. शाम के समय प्रसन्न मन से सभी लोगों के और गाजे-बाजे के साथ होलिका के नजदीक जाकर शुभ आसन पर यह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें. 
  • अब बालकों के द्वारा अग्नि मंगवा कर होलिका दहन करें और गंध अक्षत पुष्प षोडशोपचार द्वारा होलिका का पूजन करें. इसके पश्चात घर से लाए हुए खेड़ा, कांडा आदि को होली में डालकर जो गेहूं की बाल और चने के फूलों को होली की ज्वाला में सकें. 
  • होली की अग्नि की थोड़ी सी राख अपने घर ले आए. घर आकर अपने घर के आंगन में गोबर से चौका लगाकर अन्नादी की स्थापना करें. होलीका उत्सव के अवसर पर काश्ट के खंडों को बालकों को स्पर्श कराकर रात्रि आने पर उनका संरक्षण करना चाहिए और गुड़ से बने हुए पकवान उन्हें खिलाने चाहिए. 
ऐसा करने से ढूंढा दोष शांत हो जाता है और होली के उत्सव में सुख शांति प्राप्त होती है. 

कथा:-

दैत्यराज हिरण्यकश्यप के पुत्र का नाम प्रहलाद था. बचपन से ही प्रह्लाद विष्णु का परम भक्त था. पहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या करके ब्रह्मा जी से दिव्य वरदान पाया था और उसका दुरुपयोग कर रहा था. हिरण्यकश्यप ने स्वर्ग लोक पर भी अपना अधिकार कर लिया था और अपने भाई हिरण्याक्ष को मारने वाले भगवान विष्णु से नफरत करने लगा था. शायद इसीलिए उसके पुत्र प्रहलाद में विष्णु भगवान के प्रति भक्ति भावना जागृत हो गई थी. एक बार हिरण्यकश्यप अपने पुत्र की शिक्षा के विषय में जानने की कोशिश कर रहा था. तो उसे अपने पुत्र की विष्णु भक्ति का पता चला. तब उसने क्रोधित होकर प्रह्लाद को अपनी गोद से नीचे उतार दिया और उसे यातनाएं देने लगा. इन घटनाओं के बाद भी प्रहलाद के मन से भगवान विष्णु की भक्ति समाप्त नहीं हुई. तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठ जाए. 

होलिका ने अपने भाई की बात मानकर ऐसा ही किया. परंतु आग में बैठने के बाद होलिका का दुपट्टा जो उसे ब्रह्मा जी से मिला था भक्त पहलाद के शरीर पर आ गया. होलिका की पूरी शक्ति दुपट्टे में समाई थी. दुपट्टा जाने के बाद होलिका जल गई और प्रहलाद भगवान विष्णु का नाम लेते लेते आग से कुशलता पूर्वक बाहर आ गया. हिरण्यकश्यप का वध भगवान नरसिंह ने किया. इस अवसर पर नवीन धान जौ गेहूं चने के खेत पर तैयार हो जाते हैं और मानव समाज उनको इस्तेमाल में लेने का प्रयोजन भी करते हैं, पर धर्म प्राण हिंदू भगवान यज्ञेश्वर को समर्पित किए बिना नए अन्न का उपयोग नहीं किया जा सकता है. इसलिए फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को संविधान स्वरूप उपले आदि को इकट्ठा करके उसमें यज्ञ की विधि से अग्नि का स्थापन प्रतिष्ठा प्रज्ज्वलन और पूजन करके विविध मंत्रों से आहुति जाती जाती है और धान्य को घर आकर प्रतिष्ठित किया जाता है. होली के बाद वसंत ऋतु का आगमन होता है. पुराणों में बताया गया है कि नवविवाहिता स्त्री को पहली बार ससुराल में होलिका दहन नहीं देखना चाहिए. 

प्रतिपदा का भव्य होली उत्सव धुलेंडी:-
  • होली के अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि को सभी लोग अलग-अलग पिचकारी और अलग-अलग रंग आदि से एक दूसरे को रंग लगाते हैं. अलग-अलग प्रकार के रंगों को चेहरे पर लगाकर लोग आपस में सभी बैर भुलाकर गले मिलते हैं. 
  • इस दिन लोगों के मन से पूरे साल की द्वेष भावना एक पल में मिट जाती है और लोग बड़े बूढ़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. बृज मंडल में ये उत्सव फाल्गुन मास में मनाया जाता है. 
  • होली से पहले नवमी, दशमी, एकादशी को बरसाना नंदगांव वृंदावन में लट्ठमार होली और रंग की होली भी खेली जाती है. जिसे देखने के लिए पूरे देश से और विदेशों से भी लोग आते हैं. इस दिन यहां पर लोग जोर-जोर से होली के गीत और रसिया गाते हैं. होली के गीत गाने हंसने तथा निसंकोच बोलने का आयुर्वेदिक कारण भी है. 
  • गाना गाने से गले की कसरत हो जाती है. जिससे कफ खत्म हो जाता है. अबीर गुलाल गले में जाने से फेफड़ों और गले में रुकी कफ साफ हो जाती है पर बहुत दुख की बात है आज के समय में मानव समाज ने होली के इस त्यौहार पवित्र त्यौहार को दूषित कर दिया है.