भगवान श्री कृष्ण को स्यमंतक मणि जो की सूर्या देव द्वारा उनके भक्त स्त्राजित को प्रदान की गयी थी| जिसे श्री कृष्ण ने प्राप्त करने की इच्छा जताई थी, किंतु दैव योग से वह मणि धारक व्यक्ति जंगल में गया तो उसे हिंसक जानवरों ने मार डाला| जिससे उस व्यक्ति के परिवार व समाज ने श्रीकृष्ण को मणि प्राप्ति हेतु उसे मारने का आरोप श्रीकृष्ण पर मढ़ दिया| मिथ्य आरोप व कलंक से बचने के लिए श्रीकृष्ण मणि व् उस व्यक्ति की खोज में लग गए| और यथा जानकारी अनुसार उस स्यमन्तक नामक मणि धारण व्यक्ति अक्रूर युद्ध में भगवान् श्रीकृष्ण व् उनके भाई बलराम के हाथो मृत्यु को प्राप्त हुआ किन्तु वह मणि नहीं मिली जिससे श्री कृष्ण को उस मणि को रखने का कलंक प्राप्त हुआ था| इस मिथ्य कलंक के दुःख से दुखी होते श्रीकृष्ण को नारद मुनि ने कहा की यह दुःख आपको भाद्रपद मॉस की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के चंद्र दर्शन के कारण मिल रहा है| इसलिए आप विघ्न विनाशक श्रीगणेश की पूजा कर इस कलंक से बच सकते हैं| और नारद जी ने उन्हें चन्द्रमा को कलंक लगने और उस से मुक्त होने की कथा सुनाई|