इस गंगा, जमुना की पावन धरती पर जहां पवित्र नदियों का जल परोपकार हेतु अनवरत रूप से जीवन को निखारने के व्रतों को धारण किए हुए समान रूप से लोगों की प्यास व क्षुधा मिटा प्राणी के पापों का उद्धार करती हैं। वहीं वेद, पुराण,जीवन को अधिदैविक, अधिभौतिक, अधिदैहिक पापों से मुक्ति दिलाने के अनुपम तरीकों से सजे हुए हैं। भारत भूमि में अखिल मानव जीवन को संवारने तथा सत्य, दया, क्षमा, एकता, अखण्डता, की रीति निभाने हेतु व्रत पर्वो की अनेक पौराणिक व एैतिहासिक कथाएं मिलती हैं। जिसमे अन्याय, अत्याचार अनीतियों को यत्न पूर्वक समाप्त करने तथा अत्याचारियों का विनाश करने की समय एवं ऋतु के अनुसार प्रथाएं प्रचलित रहीं हैं।
कोकिला व्रत जो सुख, सौभाग्य, सौंदर्य और संपत्ति को जन्म जन्मांतरों तक बढ़ाता रहता है उसका व्रत विधि-विधान से करने से कई जन्मों का सौभाग्य सुख सौंदर्य, पुत्र, धन, धान्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने वाली विधवा या सधवा कोई भी स्त्री हो उसे सैकड़ांे जन्मों तक सुख सौभाग्य, धन, पुत्र, सौंदर्य की प्राप्ति होती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार इस व्रत को कर अहिल्या ने श्राप से मुक्ति पायी थी। माता सीता, रूक्मिणी जैसी महाशक्तियों ने इस व्रत को किया था। यह व्रत सभी पापों का नाश कर व्रती स्त्री को मनोवांछित फल देने वाला है। इसे आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ करके श्रावण मास की पूर्णिमा तक किया जाता है। स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त हो माह पर्यन्त सूर्य को अघ्र्य देकर मां गौरी की कोकिला के रूप में पूजा अर्चना का विधान है। इस व्रत में नियम संयम व ब्रह्मचर्य बहुत ही महत्त्व है।
कोकिला व्रत के विषय में श्रीवाराह पुराण में कथा है दक्ष ने प्रसन्न होकर बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया किन्तु शिव व पार्वती को नहीं बुलाया पार्वती पिता के घर यज्ञ का समाचार सुन जाने को लालायित हो उठीं, किन्तु शिव बिना बुलाएं उन्हें वहां जाने की अनुमति नहीं दे रहे थे। लेकिन पितु घर की लालसा और प्रेम उन्हें पिता के घर बरवस खींच ले गयी और वे जैसे ही पिता के घर पहुंची तो पिता दक्ष ने उनकी हाल खबर न पूछा और उल्टे मुंह फेर लिया, इतना ही नहीं भगवान शिव की पूजा का भाग कहीं भी नहीं रखा गया था। जिससे उनका व उनके पति का घोर अपमान हुआ। अपमान की ज्वाला से उत्तेजित हो वह यज्ञ की अग्नि में कूद भस्म हो गयी। शिव ने ऐसी अनहोनी की खबर सुन दक्ष के अभिमान को कुचलने के लिए गण वीरभ्रद को भेजा जिसने यज्ञ विध्वंस कर संपूर्ण लोगों को अंग भंग कर दिया। जिससे देव घबरा कर भगवान शिव के पास आएं शिव ने कृपा कर सभी को पहले जैसा कर दिया। किन्तु पार्वती को कोयल होकर 10,000 वर्षो तक वन में भटकने का श्राप दिया जिससे वह कोयल के रूप में भटकती रहीं। श्राप की समाप्ति के बाद हिमालय के घर जन्म लिया और तप बल से पुनः शिव को प्राप्त किया। इस प्रकार कोकिला व्रत का पुण्य प्रताप सभी पापों, श्रापो से मुक्ति दिला नारी जीवन को सुखमय बना देता हैं।
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