मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए ज़रूर करें कोकिला व्रत
हिंदू धर्म में कई तरह के व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक है कोकिला व्रत…. कोकिला व्रत आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि से शुरू होता है और श्रावण पूर्णिमा को समाप्त होता है. यह व्रत 1 महीने चलता है. कुंवारी कन्याओं के लिए यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. पूरी श्रद्धा के साथ कोकिला व्रत करने से कुंवारी कन्याओं को योग्य और सर्वगुण सम्पन पति मिलता है. अगर कोई शादीशुदा स्त्री इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक रखती हैं तो उनके पति की उम्र लम्बी हो जाती है. जो लोग पूरी श्रद्धा निगम के साथ इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.
कोकिला व्रत से जुडी खास बातें :-
1- शास्त्रों में बताया गया है की कोकिला व्रत पहली बार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था.
2- पार्वती रूप में जन्म लेने से पहले पार्वती कोयल का जन्म लेकर पुरे दस हजार सालों तक नंदन वन में भटकती रही थी.
3- श्राप से मुक्ति पाने के बाद पार्वती ने कोयल की श्रद्धा पूर्वक पूजा की. इस पूजा के प्रताप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया.
कोकिला व्रत का महत्त्व :-
1- हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि कोकिला व्रत करने से लड़कियों को अच्छा पति मिलता है.
2- अगर विवाहित महिलाएं कोकिला व्यक्त करती हैं तो उनके पति की आयु बढ़ती है. इसके अलावा कोकिला व्रत करने से सुंदरता में भी निखार आता है. क्योंकि इस व्रत में विशेष जड़ी बूटियों से नहाया जाता है.
3- अगर अधिक मास में कोकिला व्रत किया जाए तो यह है और भी ज्यादा फलदाई होता है. इस व्रत की कथा को सुनने के बाद यह बात पता चलती है कि पाप कर्म की सजा न केवल इंसानों को बल्कि देवी-देवताओं को भी मिलती है.
4- इस व्रत को करने से घर में वैभव और सुख की वृद्धि होती है.
कोकिला व्रत पूजन विधि :-
1- यह व्रत सौभाग्यशाली महिलाएं या कुंवारी कन्याएं करती हैं. जिस भी महिला या कुंवारी कन्या को ये व्रत करना हो उन्हें प्रातःकाल सूर्य उदय होने से पहले जागकर स्नान करना चाहिए. स्नान करने के पश्चात स्वयं को सुगन्धित और खुशबूदार इत्र लगाना चाहिए.
2- पहले दिन से इस नियम को आरम्भ करने के बाद अगले आठ दिनों तक करना चाहिए. इसके बाद उबटन लगाकर सूर्यदेव की आराधना करनी चाहिए.
3- इसके अगले 8 दिनों तक पीसी हुई हल्दी को नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करें और आखिरी 6 दिनों में पानी में तेल और आंवला मिलाकर स्नान करना चाहिए.
4- नियमित रूप से स्नान करने के बाद कोयल की पूजा करनी चाहिए और अंतिम दिन कोयल को सजाकर उसकी पूजा करनी चाहिए.
5- विधिवत पूजा करने के बाद ब्राम्हण या सास-ससुर को कोयल का दान करना चाहिए.
6- कोकिला व्रत करने के लिए चांदी या लाख की बनी कोयल को पीपल के पेड़ में रखकर सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए.
इस व्रत में आंवले के पेड़ का भी बहुत महत्व होता है. इस व्रत में आंवले की पूजा की जाती है.
कोकिला व्रत कथा :-
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री सती से हुआ था। प्रजापति शिव को पसंद नहीं करता था यह जानते हुए भी सती ने शिव से विवाह कर लिया। इससे प्रजापति सती से नाराज हो गया। एक बार प्रजापति ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया लेकिन शिव और सती को न्योता नहीं भेजा। सती के मन में पिता के यज्ञ को देखने की इच्छा हुई और वह शिव से हठ करके दक्ष के यज्ञ स्थल पर पहुंच गयी।
इससे दक्ष ने शिव और सती का बहुत अपमान किया। सती अपमान सहन नहीं कर सकी और यज्ञ कुण्ड में कूद कर जल गयी। इसके बाद शिव ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और हठ करके प्रजपति के यज्ञ में शामिल होने के कारण सती को श्राप दिया कि वह दस हजार सालों तक कोयल बनकर नंदन बन में रहे।
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