'नारल' का अर्थ है नारियल और यह फल पूर्णिमा के दिन समुद्र देवता को बहुत ही श्रद्धा के साथ अर्पित किया जाता है।
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नारली पूर्णिमा हिंदु कैलेंडर के अनुसार श्रावण महीने के दिन मनाई जाती है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठते है और समुद्र देवता की पूजा करते हैं और उन्हें नारियल चढाते हैं। नारली पूर्णिमा को नारियल का त्यौहार भी कहा जाता है और इसे बहुत ही ख़ुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
नारली पूर्णिमा का महत्व नारली पूर्णिमा का महत्व -
यह त्यौहार मछुआरों के साथ-साथ पूरे महाराष्ट्र में मछली पकड़ने वाले समुदाय के बीच काफी लोकप्रिय है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि श्रवण (सावन का महीना) हिंदी कैलेंडर के चार सबसे शुभ महीनों में से एक है। और इसीलिए, पूर्णिमा को अधिक सम्मान के साथ माना जाता है।
नारली पूर्णिमा कहाँ-कहाँ मनाई जाती है -
नारली पूर्णिमा पूरे देश में प्रचलित है लेकिन खासतौर पर महाराष्ट्र में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस विशेष त्यौहार को अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे -श्रावणी पूर्णिमा, रक्षा बंधन और राखी पूर्णिमा।
नारली पूर्णिमा एक बड़े पैमाने पर हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। मुख्य रूप से,यह भारत के पश्चिमी तट पर दमन और दीव, ठाणे जैसे महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र में, रत्नागिरी, और कोंकण आदि में रहने वाले लोगों के बीच मनाया जाता है
इस दिन पारंपरिक भोजन बनाया जाता है जिसे नारली भात, नारियल चावल, नरलाची करंजी कहा जाता है। पारंपरिक रूप से कपड़े पहने हुए पुरुष और महिलाएं इस दिन अनुष्ठान का पालन करते हैं। वे अपने साथ नारियल लेकर जाते हैं और समुद्र को अर्पित करते हैं।
नारली पूर्णिमा पर क्या करें -
नारली पूर्णिमा और अनुष्ठान -
मछुआरे समुद्र अपने सभी प्रकार औजारों व अन्य चीजों की मरम्मत करते हैं जिसे वह मछली या नौका चलाने के दौरान प्रयोग करत हैं जैसे नाव, मछली पकड़ने का जाल, जहाज आदि। यह त्यौहार पूरी तरह से मछुवारों का अपनी नौकरी और समुद्री भगवान के प्रति सम्मान देने का पर्व है। इसके अलावा, मछुवारे यदि धन से सम्पन्न है तो वे नई नाव या मछली पकड़ने का जाल भी खरीदते हैं। इस दिन नावें भी विशेष रुप से सजाई जाती हैं।
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