वीरसेन नाम का एक राजा था। उसका कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया। तपस्या करने के लिए वह घने जंगल में चला गया। वह इस बात से अनजान था कि ऋषि याज्ञवल्क्य का आश्रम भी वहीं पास में ही है। एक दिन वीरसेन ने याज्ञवल्क्य को अपनी ओर आते देखा तो वह तुरंत उठकर खड़े हो गया और उनका अभिनन्दन किया। कुछ समय बाद ऋषि ने राजा से उसकी कठिन पूजा का कारण पूछा तब राजा ने उसे बताया कि वह एक पुत्र चाहता है इसलिए भगवान को प्रसन्न करने के लिए वह ये सब कर रहा है। ऋषि याज्ञवल्क्य ने उसे कठोर तपस्या के बजाय परशुराम द्वादशी का व्रत करने की सलाह दी। ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए राजा ने परशुराम द्वादशी के दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजा की जिसके बाद विष्णु जी ने उसे बहादुर और धार्मिक पुत्र का वरदान दिया। बाद में वीरसेन का यह पुत्र पुण्यात्मा राजा नल के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
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