Indian Festivals

रोहिणी व्रत का महत्व और कहानी

रोहिणी व्रत का संबंध नक्षत्रों से है क्योंकि रोहिणी 27 नक्षत्रों में से एक है। लेकिन यह कोई साधारण व्रत नहीं है बल्कि इसे एक त्यौहार की भांति मनाया जाता हैं। जब उदियातिथि अर्थात सूर्य उगने के बाद जब रोहिणी नक्षत्र बहुत अधिक प्रबल होता है तभी रोहिणी व्रत का आरंभ होता है और इसे पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है।

व्रत का महत्व - 

महिलाओं के लिए इस व्रत का बहुत ही अधिक महत्व है क्योंकि वह अपने पति की लम्बी आयु एवं स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से कामना करती हैं। खासतौर पर जैन परिवारों की महिलाओं के लिए तो इसका पालन करना अनिवार्य माना गयहा है।इस व्रत की सफलता के लिये आवश्यक है कि पूरे विधि-विधान के साथ इसका पालन किया जाये।

ये व्रत विशेष रूप से जैन धर्म के लोगों द्वारा मानाया जाता है। उनके यहं इस व्रत का खास महत्तव है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य भगवान वासुपूज्य की पूजा करना है। इस व्रत की विशेष बात यह है किइसे 3, 5 या 7 वर्षों तक लगातार करने के बाद ही उद्यापन किया जा सकता है उससे पहले नहीं अर्थात् को काफी संयम बरतने की आवश्यकता है इस व्रत को करने के लिये ।

व्रत विधि -

महिलाएं भोर में उठकर स्नान करती है और उसके बाद ईश्वर की पूजा करती है। इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा बहुत ही श्रद्धा के साथ की जाती है। वासुपूज्य भगवान की पांचरत्न, ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा की स्थापना करने के बाद ही पूजा आरंभ की जाती है। पूजा को सफल बनाने के लिये भगवान वासु पूज्य को वस्त्रों, फूल, फल और नैवेध्य का प्रसाद चढाया जाता है और इसके साथ ही दान भी दिया जाता है।

व्रत कहानी -

पुराने समय की बात है जब चंपापुरी में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति के साथ रहते थे और उनके सात पुत्र व एक पुत्ती रोहिणी थी। राजा ने अपनी पुत्री रोहिणी के लिये स्वंयवर रखा और उन्होनें अपना वर राजकुमार अशोक को चुना। लेकिन राजा अपनी रानी के बहुत ही शांतचित्त से थोड़ा व्यथित था और उसने इसका कारण राना मुनिराज से पूछा। तब उन्होनें कहा की इसी नगर का एक राजा वस्तुपाल हुआ करता था और उसके मित्र का नाम धनमित्र था। धनमित्र के यहां दुर्गंधा कन्या उत्पन्न हुई जिसके कारण उसे उसके विवाह की चिंता हमेशा बनी रहती थी। लेकिन धनमित्र ने धन का लालच देकर वसतुपाल के बेटे श्रीषेण से उसका विवाह कर दिया लेकिन वह उसे एक माह के भीतर ही छोड कर चला गया। धनमित्र अपनी पुत्री को लेकर एक बार फिर मुनिराज के पास गये और उसके भविष्य के बारे में पूछा। उन्होनें कहा कि गिरनार पर्वत के पास एक नगर में राजा भूपाल और उनकी रानी सिंधुमति है।

एक दिन राजा रानी दोनों वनक्रीड़ा के लिए गये। उन्हें रास्ते में मुनिराज मिले और राजा ने रानी से घर जाकर मुनि के लिए भोजन व्यवस्था करने को कहा। किंतु रानी को इस बात से काफी क्रोध आ गया और उन्होंनें मुनि को जहरीला आहार दिया जिससे उनके प्राण चले गये। राजा को इस बारे में पता चला तो उन्होनें रानी को घर से बाहर निकाल दिया। और इस पाप से रानी को कोढ़ की बीमारी हो गई। इसके बाद वह नरक में चली गई और इसके बाद उन्होनें बहुत दुख भोगे और फिर तेरे घर वही कन्या पैदा हुई। मुनिराज बोले की रोहिणी व्रत का पालन करने से यह दोष दूर हो सकता है। उस दिन चारों तरह के आहार का त्याग करें और पूरे विधि-विधान से व्रत का पालन करें। फिर दुर्गंधा ने व्रत किया और सवर्ग मे देवी बनी। और उसके बाद तेरी जीवन संगिनी बनी। मुनिराज ने अशोक के बारे में बोला की तू भील हुआ करता था और मुनिराज को बहुत परेशान किया करता था। इसीलिये तू नरक गया और फिर एक  वणिक के घर जनम लिया और बहुत ही घृणित शरीर पाया। फिर तूने भी रोहिण व्रत किया और स्वर्ग पहुंचा और फिर अशोक नामक राजा हुआ।

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