रूक्मिणी अष्टमी व्रत – जीवन में लाए सुख-समृद्धि
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की लीला में सहयोग देने के लिए माता लक्ष्मी ने भी रूक्मिणी के रूप में अवतार लिया था। रूक्मिणी रूप में वह श्रीकृष्ण की जीवनसंगिनी और प्राणप्रिया बनीं। यही कारण है कि जैसे कृष्ण जन्माष्टमी को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, वैसे ही रूक्मिणी के जन्म को रूक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं, माता रूक्मिणी और श्रीकृष्ण का पूजन करती हैं और उनसे अपने और परिवार के जीवन के लिए के लिए सुख-समृद्धि, मंगल की कामना करती हैं। आइए इस लेख में हम आपको विस्तार से बताते हैं कि रूक्मिणी अष्टमी व्रत का महत्व और कथा है? साथ ही इस व्रत की पूजन विधि क्या है? इसे किस प्रकार से किया जाता है।
रूक्मिणी अष्टमी व्रत का महत्व
हर साल पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रूक्मिणी अष्टमी मनाई जाती है। क्योंकि इसी दिन ही द्वापरयुग में विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री के रूप में रूक्मिणी जी ने जन्म लिया था। तभी से इस दिन का बड़ा ही महत्व है। माना जाता है कि रूक्मिणी जी की उपासना, अराधना करने से, व्रत रखने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, हर मनोकामना पूरी होती है और सुख-समृद्धि घर-परिवार में आती है, साथ ही कभी भी धन का आभाव नहीं होता है।
रूक्मिणी अष्टमी पूजन विधि
- रूक्मिणी अष्टमी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर महिलाओं को स्नान करना चाहिए, साफ वस्त्र पहनने चाहिए।
- इसके बाद भगवान सत्यनारायण, पीपल और तुलसी को अर्ध्य देना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पीपल में भगवान विष्णु और तुलसी में माता लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए पीपल और तुलसी को अर्ध्य देने का इतना महत्व है।
- अर्ध्य देने के बाद घर के मंदिर में गंगाजल छिड़क कर एक चौकी स्थापित करें और इस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। चौकी पर सबसे पहले भगवान गणेश की स्थापना करें, फिर श्रीकृष्ण और माता रूक्मिणी की मूर्ति स्थापित करें।
- चौकी के एक तरफ साफ जल से भरा हुआ मिट्टी का कलश रखें, उसके ऊपर आम और अशोक के पत्ते रखें, फिर एक नारियल रख दें। इसके बाद पूजा शुरू करें।
- सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें।
- इसके बाद श्रीकृष्ण और रूक्मिणी की मूर्ति को जल से स्नान कराएं और फिर उनका अभिषेक करें। स्नान कराते हुए श्री कृष्ण शरणममम: या कृष्णायनम: का जाप करते रहें।
- दूध, दही, घी, शहद और मिश्री को एक साथ मिलाकर पंचामृत बनाएं।
- इसके बाद देवी रूक्मिणी को फल, फूल, रौली-मौली, चावल, सुपारी, लांग, नैवेद्य, अक्षत, चंदन, धूप और दीप अर्पित करें।
- पूजा में गाय के दूध से बने घी का उपयोग करना चाहिए। दीपक में भी यही घी डालना चाहिए।
- पूजा के दौरान श्रीकृष्ण को पीले रंग के वस्त्र और रूक्मिणी जी को लाल रंग के वस्त्र और श्रृंगार अर्पित करें। इसके उपरांत रूक्मिणी अष्टमी व्रत की कथा सुनें और आरती करें।
- भोग के तौर पर खीर चढ़ाएं। ताजे फल, मिठाइयां, लड्डू, मिश्री, तुलसी के पत्ते और फल भी शामिल करें।
- संध्या के समय इसी विधि का पालन करें।
- सभी को बाद में प्रसाद भी वितरण करें। आखिर में गाय माता को भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन करें। इस तरह अपना व्रत खोलें।
रूक्मिणी अष्टमीव्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
विदर्भ देश के राजा और रूक्मिणी जी के पिता भीष्मक बड़े ही तेजस्वी और सद्गुणी राजा थे। वह अपनी बेटी रूक्मिणी को बहुत अधिक प्रेम करते थे। जैसे-जैसे रूक्मिणी बड़ी होने लगीं, राजा भीष्मक को उनके विवाह की चिंता होने लगी। यह बात रूक्मिणी के पांच भाईयों को भी पता थी कि पिता, बेटी के विवाह के लिए चिंतित हैं। लेकिन रूक्मिणी तो मन ही मन श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, क्योंकि जो कोई भी रूक्मिणी के पास आता, श्रीकृष्ण के रूप, गुण की प्रशंसा करता है। वह तो हृदय से श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थीं। कृष्ण को भी नारद जी से यह बात पता चल गई थी कि रूक्मिणी उनसे प्रेम करती हैं। लेकिन श्रीकृष्ण और रूक्मिणी के विवाह में एक बड़ी अड़चन थी। रूक्मिणी का बड़ा भाई रूक्मी श्रीकृष्ण को अपना शत्रु मानता था और वह बिल्कुल भी इस विवाह के पक्ष में नहीं था। इसके बजाय वह रूक्मिणी का विवाह चेदिवंश के राजा और कृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल से करना चाहता था। दरअसल, शिशुपाल भी श्रीकृष्ण को अपना शत्रु ही मानता था। इसी कारण शिशुपाल और रूक्मी के बीच मित्रता थी। रूक्मी ने किसी तरह से अपने पिता को रूक्मिणी का विवाह, शिशुपाल से करने के लिए राजी कर लिया। विवाह का दिन भी तय कर दिया गया है। लेकिन रूक्मिणी को यह विवाह मंजूर नहीं था, उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना संदेश भेजा कि वह उनसे ही विवाह करना चाहती हैं। ऐसे में जब रूक्मिणी के विवाह का दिन आया तो श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम के साथ रूक्मिणी को अपने साथ ले जाने की योजना बनाई। रूक्मिणी विवाह से पहले सखियों के साथ मंदिर आई हुई थी, जब वह पूजा करके बाहर आईं, तो श्रीकृष्ण रथ में उनकी प्रतिक्षा कर रहे थे। उन्हें देखकर रूक्मिणी बड़ी ही प्रसन्न हुईं। श्रीकृष्ण ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और रूक्मिणी ने उनका हाथ थाम लिया। श्रीकृष्ण ने रूक्मिणी को रथ में बैठाया और शंख बजा दिया। जिसे सुनकर रूक्मी और शिशुपाल हैरान हो गए है। जब रूक्मी ने देखा कि श्रीकृष्ण, रूक्मिणी को अपने साथ लेकर जा रहे हैं तो वह उनसे युद्ध करने लगा। इस युद्ध में रूक्मी की हार हुई। बाद में श्रीकृष्ण और रूक्मिणी का विवाह द्वारिका में संपन्न हुआ। कुछ वर्ष बाद इनका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम प्रद्युम्न था, जिन्हें कामदेव का अवतार माना गया। रूक्मिणी और श्रीकृष्ण के बेटे प्रद्युम्न की पूजा भी रूक्मिणी अष्टमी को जाती है। माना जाता है कि इनकी पूजा करने से घर में खूब धन- धान्य बढ़ता है, साथ ही संतान की प्राप्ति भी होती है।