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महोत्सव: तुलसीदास जयंती

तुलसीदास जी का नाम कौन नहीं जानता। उनके बिना भारत का इतिहास अधूरा-सा ही माना जाता है। तुलसीदास वैदिक विद्या, दर्शन और पौराणिक कथाओं की काफी अच्छी और सटीक जानकारी ऱखते थे। तुलसीदास जी स्वभाव से काफी विनम्र माने जाते थे। तुलसीदास के अनुसार, राम जी का नाम स्वयं भगवान राम जी से भी ज्यादा बड़ा व मह्तवपूर्ण माना गया है । तुलसीदास जी के जन्मदिवस को तुलसीदास जयंती या गोस्वामी तुलसीदास जयंती के नाम से भी जाना जाता है।

तुलसीदास जयंती कब मनाते है – तुलसीदास का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के राजपुर में हुआ था। उनके माता-पिता को नाम हुलसी देवी और आत्माराम शुक्ला दुबे था। उनके बचपन का नाम राम भोला रखा गया था। तुलसीदास जयंती को एक मह्त्तवपूर्ण पर्व को रुप में मनाया जाता है। यह त्यौहार श्रावण मास अर्थात अगस्त महीने में अमावस के बाद सातवें दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रामायण में उनके भक्ति संस्करण की महत्ता हम सभी जानते है।

क्या है तुलसीदास जयंती का पूजा विधान - भक्त इस पावन दिन के अवसर पर मंदिर जाते हैं और पूरे श्रद्धा भाव से भक्ति करते है। इस दिन भगवान राम जी और हनुमान मंदिर में बहुत ही भारी भीड़ दिखाई देती है। उत्तर भारत में इस शुभ दिन पर काफी चहल-पहल दिखाई देती है और रामचरित मानस को प्रमुखता से पढ़ा जाता है। वहीं इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना भी काफी शुभ माना जाता है। इस दिन भक्त व्रत भी रखते हैं और भगवान राम जी को पूरी श्रद्धाभाव के साथ याद करते हैं।

तुलसीदास जयंती का महत्व - तुलसीदास जंयंती भारत वर्ष में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। तुलसीदास जी एक ब्राह्मण पुत्र थे, जो उच्चतम हिंदू जाति से संबंधित थे। लेकिन उनके माता-पिता उन्हें किसी कारणवश अपने साथ रखना नहीं चाहते थे और इसी कारण उनका पालन-पोषण किसी अन्य के द्वारा किया गया । विवाह लायक होने पर उनका विवाह एक कन्या से किया गया जिनसे वह बहुत प्रेम करते थे। लेकिन अत्याधिक पत्नी-प्रेम में लीन होने को कारण उनकी पत्नी ने कही की जिनता प्रेम आप मुझसे करते हैं, यदि इसका आधा भी प्रभु राम जी को करें तो आपका जीवन संवर जाएगा और इन शब्दों ने तुलसीदास जी को परन ज्ञान की अनुभूति कराई।

तुलसीदास जी द्वारा रचित रचनाओं की महत्ता - तुलसीदास जी की सबसे प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस मानी जाती है। यही नहीं ब्लिक इसे उत्तर भारत की बाइबिल के रूप में भी काफी सम्मान दिया जाता है। बुद्धिजीवियों के अनुसार तुलसीदास ने कुल बारह पुस्तकें लिखीं हैं। इतना ही नहीं ब्लिक उनकी रचनाओं और लेखन नें भाषा के विकास में भी काफी मदद की है। तुलसीदास ने कुल मिलाकर लगभग 22 अलग-अलग रचनाएँ लिखीं, जिनमें से 5 लम्बी हैं और 6 कम छोटी हैं जैसे

  • गीतावली,
  • दोहावली,
  • कवितावली,
  • कृष्णावली
  • और विनय पत्रिका शामिल हैं।

तुलसीदास जी का भगवान राम जी के प्रति उनका प्रेम जगजाहिर है। और भगवान राम के प्रति अपनी असीम भक्ति की धार्मिक भावनाओं को बहुत ही प्रेमपूर्वक और मार्मिक रुप में व्यक्त करना उन्हें आदरणीय व सम्मानीय बनाता है।

 

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