तारा जयंती कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार देवी तारा का जन्म मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में चोलना नदी के किनारे पर हुआ था स्वतंत्र तंत्र के अनुसार, देवी तारा की उत्पत्ति , तट पर हुई। हयग्रीव नाम के दैत्य के वध हेतु देवी महा-काली ने ही, नील वर्ण धारण किया था। महाकाल संहिता के अनुसार, चैत्र शुक्ल अष्टमी तिथि में 'देवी तारा' प्रकट हुई थीं, इस कारण यह तिथि तारा-अष्टमी कहलाती हैं, चैत्र शुक्ल नवमी की रात्रि तारा-रात्रि कहलाती हैं। सबसे पहले स्वर्ग-लोक के रत्नद्वीप में वैदिक कल्पोक्त तथ्यों तथा वाक्यों को देवी काली के मुख से सुनकर, शिव जी अपनी पत्नी पर बहुत प्रसन्न हुए।
शिवजी ने मां पार्वती को बताया की आदि काल में भयंकर रावण का विनाश किया तब आपका वह स्वरूप तारा नाम से विख्यात हुआ। उस समय आपका रूप बहुत विकराल था आपका यह रूप देखकर सभी देवता भयभीत हो गए थे। अपने इस विकराल रूप में आप नग्न अवस्था में खी इसलिए आपकी लज्जा के लिए ब्रह्मा जी न आपको व्याघ्र चर्म प्रदान किया था। इसी कारण से आप लम्बोदरी नाम से विख्यात हुई थी। तारा-रहस्य तंत्र के अनुसार, भगवान राम केवल निमित्त मात्र ही थे, वास्तव में भगवान राम की विध्वंसक शक्ति देवी तारा ही थी, जिन्होंने लंका पति रावण का वध किया।
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