Indian Festivals

त्रिशूर पुरम उत्स्व में आतिशबाजियों का महत्त्व

त्रिशूर पुरम उत्स्व में आतिशबाजियों का महत्त्व-


त्रिशूर पूरम उत्सव के समापन के समय सभी समूह वडक्कुमनाथ मन्दिर के पश्चिमी द्वार से प्रवेश करके दक्षिणी द्वार से बाहर निकलते हैं, पर इस दौरान ये सभी समूह जिस भाव-भंगिमा के साथ एक दूसरे की आंखों में आंखें डाल कर देखते हैं, वह ध्यान देने वाली बात होती है, इसी बात से  सभी समूहों के मध्य प्रतियोगिता का पता साफ़ तरीके से लग जाता है.

• यह प्रतियोगिता सिर्फ हाथियों की साजसज्जा, कलियारपट्टू नृत्य और कुडमट्टम के रूप में ही नहीं बल्कि समूहों के मध्य आतिशबाजियों की प्रतियोगिता के तौर पर भी होती है.

• आतिशबाजियों की प्रतियोगिता इस उत्स्व का 'ग्रांड फिनाले' होता है, जिसका आरम्भ सुबह के तीन-साढ़े तीन बजे से किया जाता है. 

• अलग अलग प्रकार की आतिशबाजियों की आकर्षक और आँखों को चौंधिया देने वाले प्रकाश से पुरे त्रिशूर नगर का आकाश चमक उठता है. 

• इसीलिए आतिशबाजी को त्रिशूर पुरम उत्सव का एक विशेष आकर्षण माना जाता है.
 
 
 
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