त्रिशूर पुरम उत्स्व से जुडी विशेष बाते-
• इस त्योहार की शुरुआत सुबह कनिमंगलम शास्ता के जुलूस से होती है. बारात एक रिवाज है जो पारमक्कुवु मंदिर और थिरुवमबाड़ी मंदिरों से देवी की यात्रा का प्रतीक है.
• इन दो मंदिरों के अलावा, आठ छोटे मंदिर भी इस उत्स्व में भाग लेते हैं.
• भगवान शिव को समर्पित वडुकुननाथन मंदिर, त्रिशूर पुरम उत्सव के दौरान एक दर्शक के रूप में मौजूद रहता है.
• मंदिर में पूरम उत्सव के दौरान कोई विशेष पूजा-अर्चना नहीं की जाती है.
• इस त्यौहार में केरल के विभिन्न मंदिरों से लाए गए 30 हाथियों का एक दल शामिल होता है.
• इस उत्स्व में एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है, जिसमे हाथियों की साज सज्जा और छतरियों को प्रदर्शित किया जाता है.
• हाथीयो की इस प्रतियोगिता को अण्णा चामल प्रदराना के नाम से जाना जाता है.
• इस उत्स्व में दोपहर के समय तक वहां पर रहने वाले स्थानीय लोग थुंककिनाडु श्रीकृष्ण मंदिर के जुलूस के साथ थेक्किंकडू मैदान में बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं.
• पांडिमेलम के संगीत के साथ परमक्कुवु देवी का जुलूस वडक्कुनाथन मंदिर में प्रवेश करता है.
• एलिंजीथरा मेलम नामक संगीत वाद्ययंत्र का क्लासिक प्रदर्शन तब शुरू होता है जब जुलूस मंदिर परिसर के अंदर एलानजी के पेड़ तक पहुंचता है.
• इस उत्स्व में उच्च स्तर की उत्तेजना तब नज़र आती है जब थिरुवमबदी श्री कृष्ण और परमकेवु देवी मंदिरों के जुलूस आमने-सामने होते हैं.
• यह त्यौहार थिरुवमबाड़ी और परमकेवु के देवताओं के लिए विदाई कार्यक्रम के साथ समाप्त होता है.
• पूरम शायद केरल का एकमात्र त्योहार है जो बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है.
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