एक किंवदंती के अनुसार एक बार, भारी बारिश की वजह से भक्त अराटपुझा महोत्सव में शामिल नहीं हो सकते थे. देरी से पहुँचने के कारण उन्हें मंदिर परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी. भक्तो के मंदिर में प्रवेश ना कर पाने के कारण थमपुराण ने तुरंत एक और त्योहार की योजना बनाई जो पहले की तुलना में अधिक असाधारण और अधिक फायदेमंद था. इस त्यौहार को त्रिशूर पूरम उत्सव की शुरुआत के रूप में मनाया गया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार आदि शंकराचार्य के माता-पिता त्रिशूर आए थे. यहां आकर उन्होंने 41 दिनों तक लगातार तपस्या की. जिसके फलस्वरूप वडक्कुननाथन का जन्म हुआ. बाद में उन्हें आदि शंकराचार्य के नाम से जाना गया. ऐसा माना जाता है कि सांसारिक जीवन जीने के पश्चात् आदि शंकराचार्य ने अपने नश्वर शरीर को यही पर त्याग दिया था.