टिप्पणीः - एकादशी व्रत सदाचार, दया, क्षमा, सहिष्णुता, त्याग, आत्मशक्ति, ओज व परम पिता श्री हरि विष्णु की कृपा प्रदान करता है। एकादशी के व्रतांे से पापों तापांे का अंत हो जाता है, भटकते हुए पितरों को एकादशी के पुण्य प्रभाव से मोक्ष प्राप्त होता है।
वरुथिनी एकादशीव्रत का महत्व
जीवन को धन्य बनाने उसे अहंकार, अज्ञानता, आशक्ति के अंधेरों से दूर रखने हेतु तथा सुख षांति व समृद्धि की ओर निरन्तर बढ़ने हेतु भारत की इस तपोभूमि व वनोभूमि में यज्ञों की वेदी सदियों से सजी रही है। जहां त्याग, बलिदान, परोपकार, व विनम्रता तथा मर्यादाओं के सहज, सुखद दीर्घकालिक, चिरस्थाई, पवित्र, उत्तम, कर्मबंधन चैरासी लाख योनि द्वार में भटकते हुए जीव का उद्धार करते हैं। उसका साक्षात्कार परम शक्ति से हो जाता है, उसे आवागम (जन्म-मृत्यु) के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। व्रत पर्व, धर्म व नेक कार्यों से उसके मन की मलीनता, राग, द्वेश, पीड़ाएं उसी प्रकार समाप्त हो जाती हैं जैसे-सूर्य की एक किरण के आते ही घने तिमिर का अंत हो जाता है और उस तेज व दिव्य प्रकाश से कमलदल मुस्कुराते हुए खिल उठते हैं व एक सुनहरी सुबह का आगाज हो जाता है। अर्थात् एकादशी का व्रत सम्पूर्ण पापों का नाशकर व्रती के जीवन को कमलदल की तरह खिला देता है। एकादशी को व्रतों मे व्रतराज कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिस प्रकार छः ऋतुआंें मे वसंत को ऋतुराज कहते हैं, उसी प्रकार एकादशी व्रत को व्रतराज भी कहते हैं।
एकादशी व्रत सदाचार, दया, क्षमा, सहिष्णुता, त्याग, आत्मशक्ति, ओज व परम पिता श्री हरि विष्णु की कृपा प्रदान करता है। एकादशी के व्रतांे से पापों तापांे का अंत हो जाता है, भटकते हुए पितरों को एकादशी के पुण्य प्रभाव से मोक्ष प्राप्त होता है।
बरूथनी एकादशी का व्रत मनुष्य को सभी प्रकार के सुख सौभाग्य देने वाला है। भगवान श्रीकृष्ण की निकटता पाये हुए अर्जुन बोले हे प्रभु! वैसाख मास जो कि मासों मे उत्तम मास है, उसके कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है उसके करने का क्या विधान तथा उसे करने से मानव को भौतिक और पारलौलिक जीवन में क्या लाभ होता है? भक्त व संसार के प्राणियो के हित के लिए प्रभु कृपा कर इस एकादशी के व्रत को बताएं ?
प्रभु मधुसूदन बोले हे पार्थ! बैषाख मास जिसे उत्तम मास कहा जाता है उसमे कृष्ण पक्ष मे पड़ने वाली एकादशी का नाम बारूथनी एकादशी हैं। इसे सौभाग्य दायनी एकादशी कहा जा सकता है। इससे मानव जीवन के पाप ताप मिट जाते हैं। कालान्तर में इस व्रत को राजा मान्धाता ने किया जिसके पुण्य प्रभाव से वह भू-लोक के सुखों के भोगने के बाद स्वर्ण लोक को गये। इसी प्रकार अन्य भक्त इसके पुण्य प्रभाव से स्वर्ण व मोक्ष को प्राप्त हुए।
वेद षास्त्रों मे जो अनेक दानों के फल कहे गये हंै जैसे- कन्यादान, गौदान, अन्नदान, भूदान, स्वर्णदान, रत्नदान, हांथी, घोड़ों का दान अर्थात् प्रत्येक दान अपने अवसर व स्थान के अनुसार पुण्यवर्धक होता है और सुखदफल देता है। इसी प्रकार एकादशी का व्रत दान भी बहुत श्रेष्ठ है जिसके व्रत करने से कन्यादान व सुखाद्य पदार्थो के दान का फल प्राप्त होता है। अतः बारूणी एकादशी का व्रत बहुत षुभ पुण्यफल प्रदायक है।
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