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वरुथिनी एकादशी | Varuthini Ekadashi on 24 Apr 2025 (Thursday)

पापों से छुटकारा दिलाती है वरुथिनी एकादशी

क्या है वरूथिनी एकादशी-

शास्त्रों के अनुसार वरुथिनी एकादशी मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाली एकादशी होती है. मान्यताओं के अनुसार साल के हर महीने में दो एकादशियां आती हैं और दोनों ही एकादशियों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है

वरुथिनी एकादशी का महत्व-

वरूथिनी एकादशी को सभी एकदशीयों में श्रेष्ठ माना जाता है. वरूथिनी शब्द का निर्माण संस्कृत भाषा के 'वरूथिन्' से हुआ है, जिसका अर्थ है- प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला. मान्यताओं के अनुसार वरुथिनी एकादशी का उपवास करने से भगवान् विष्णु सभी संकटों से अपने भक्तों की रक्षा करते हैं. जो भी व्यक्ति वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत करता है और ब्राह्मणों को अपनी क्षमता अनुसार फलों और सोना आदि दान करता है उसे करोड़ों वर्ष की तपस्या करने के समान पुण्य प्राप्त होता है. इसके अलावा वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से कन्यादान करने के समान पुण्य प्राप्त होता है. इसलिए शास्त्रों में वरुथिनी एकादशी को समस्त पापों को नष्ट करने वाली एकादशी कहा गया है

वरूथिनी एकादशी पूजन विधि-  

• वरुथिनी एकादशी के दिन उपवास करने वाले व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यक्रियाओं से निवृत होकर किसी पवित्र सरोवर , नदी या तालाब में स्नान करना चाहिए.

• अगर आपके घर के आसपास कोई पवित्र नदी या सरोवर नहीं है तो आप अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगलजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं. ऐसा करने से आपको गंगा स्नान के समान ही पुण्य प्राप्त होगा.

• स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण करके अपने घर के पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ

• अब अपने सामने एक लकड़ी की चौकी रखे.

• अब इस चौकी पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़ककर इसे शुद्ध कर ले

• अब इस चौकी पर सफ़ेद रंग का कपडा बिछाएं.

• अब चौकी के ऊपर भगवान् विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें 

• अब भगवान् विष्णु के सामने  एक कलश स्थापित करें और कलश के ऊपर नारियल, आम के पत्ते, लाल रंग की चुनरी या मौली बांधें

• इसके पश्चात् कलश देवता और भगवान विष्णु का धूप-दीप जला कर पूजन करें

• अब भगवान विष्णु को मिष्ठान, ऋतुफल यानी खरबूजा, आम आदि अर्पित करें.

• अब भजन कीर्तन और मंत्र का जाप करें.

• पूजा के पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हे भेट और दान दक्षिणा देकर उनका आर्शीवाद लें.

वरुथिनी एकादशी की महिमा-

• शास्त्रों में बताया गया है की वरुथिनी एकादशी के दिन तिलों का दान करना बहुत शुभ होता है.

• इस दिन तिल दान का दान करना स्वर्ण दान करने से भी अधिक शुभ माना जाता है.

• जो भी व्यक्ति भगवान् विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहते है उन्हें वरुथिनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए.

• वरुथिनी एकादशी का उपवास करने से होती है शुभ फलों की प्राप्ति-

• शास्त्रों में बताया गया है कि वरुथिनी एकादशी का उपवास करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और मृत्यु के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति होती है.

• वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से सूर्य ग्रहण के वक़्त दान करने से जो फल मिलता है, वही फल इस उपवास को करने से प्राप्त होता है

• वरुथिनी एकादशी का व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख भोगकर अंत में स्वर्ग को प्राप्त होता है

• इस व्रत को करने से मनुष्य को हाथी के दान के समान और भूमि दान करने से ज़्यादा पुण्यो की प्राप्ति होती है.

• जितना पुण्य मनुष्य को गंगा स्नान करने से प्राप्त होता है उससे अधिक पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है

• शास्त्रों के अनुसार वरुथिनी एकादशी का उपवास करने से एक हजार गौ दान के समान पुण्य प्राप्त होता है

• अगर कोई महिला वरुथिनी एकादशी का व्रत करती है तो उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.   

• जो भी महिला इस उपवास को करती है उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे धन, संतान और सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती है.

वरूथिनी एकादशी के दिन करें ये विशेष उपाय

• अगर आप अपने जीवन की सभी समस्याओं को दूर करना चाहते है तो वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी की माला अर्पित करे. मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है. इसलिए भगवान् विष्णु को तुलसी की माला अर्पित करने से जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती है.

• दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए वरुथिनी एकादशी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें. ऐसा करने से आपका दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जायेगा.

• वरूथिनी एकादशी को धन की कामना-पूर्ति के लिए भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है. अगर आप अपने जीवन से धन की कमी को दूर करना चाहते हैं तो वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें.

• शुभ फल प्राप्त करने के लिए वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को केसर-युक्त साबूदाना की खीर, पीला फल और पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं.

• अपनी सभी मनोकामना को पूरा करने के लिए वरुथिनी एकादशी के दिन पीले रंग के फूलों से भगवान विष्णु की पूजा करें

• घर में खुशहाली लाने के लिए वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पीले रंग के फल, पीले वस्त्र और अनाज अर्पित करें. बाद में इन सभी चीजों को गरीबों को दान में दे दे

• वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु की मूर्ति का केसर मिले दूध से अभिषेक करें. वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के पश्चात श्रीमद् भागवत का पाठ करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं

• इस एकादशी के दिन तुलसी की माला से भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करें

मन्त्र-

ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः

वरूथिनी एकादशी व्रत कथा- 

प्रत्येक एकादशी के महत्व को बताने वाली एक खास कथा हमारे पौराणिक ग्रंथों में है। वरुथिनी एकादशी की भी एक कथा है जो इस प्रकार है। बहुत समय पहले की बात है नर्मदा किनारे एक राज्य था जिस पर मांधाता नामक राजा राज किया करते थे।राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के उपासक थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी वे अभी तपस्या में ही लीन थे। एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा। लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में ही लीन रहे भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी। उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई। भगवान अपने भक्त पर संकट कैसे देख सकते हैं। विष्णु भगवान प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया। परंतु तब तक भालू राजा के पैर को लगभग पूरा चबा चुका था। राजा बहुत दुखी थे दर्द में थे। भगवान विष्णु ने कहा वत्स विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जो कि वरुथिनी एकादशी कहलाती है पर मेरे वराह रूप की पजा करना। व्रत के प्रताप से तुम पुन: संपूर्ण अंगो वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे। भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप का फल है। इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जायेगी। भगवन की आज्ञा मानकर मांधाता ने वैसा ही किया और व्रत का पारण करते ही उसे जैसे नवजीवन मिला हो। वह फिर से हष्ट पुष्ट हो गया। अब राजा और भी अधिक श्रद्धाभाव से भगवद्भक्ति में लीन रहने लगा।


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