कथा-
माता छिन्नमस्तिका के बारे में एक पौराणिक कथा प्रसिद्द है. कथा के अनुसार एक बार माँ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थीं. उस समय उनके साथ उनके दो सहयोगी अजय और विजया भी थी, स्नान करते समय माँ के सहयोगियों को भूख महसूस होने लगी. उन्होंने माँ से कुछ खाने के लिए माँगा. तब माँ ने उन्हें प्रतीक्षा करने के लिए कहा, पर अजया और विजया को बहुत ज़ोरो से भूख लगी थी इसलिए वो बार बार माँ से खाने के लिए कुछ मांगते रहे. सहायकों ने देवी से कहा की माँ तो वो होती है जो अपने बच्चों को भोजन उपलब्ध कराती है. अपने सहयोगीयो की बात सुनकर ’देवी भवानी ने अपना सिर काट दिया जो उनके बाएं हाथ में गिरा. उनके सिर से खून की तीन धाराएं निकलीं. इनमें से दो धाराओं को अजया और विजया ने भस्म का दिया. तीसरी धारा को देवी ने भस्म कर दिया. तब से, वह माता छिन्नमस्तिका के नाम से जानी जाने लगी. लेकिन, अजय और विजया को और रक्त चाहिए था तो देवी ने अपना माथा काट दिया और उन्हें अपना रक्त अर्पित किया. इसलिए, उन्हें माता छिन्नमस्तिका के नाम से जाना जाता है.