छिन्नमस्ता जयंती का महत्व और पूजन विधि
क्या है छिन्नमस्ता जयंती-
माता छिन्नमस्ता जयंती बैसाख माह के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को मनाई जाती है. छिन्नमस्तिका माता को दस महाविद्याओं में छठी देवी माना जाता है, देवी छिन्नमस्तिका जयंती को बहुत भक्ति और समर्पण के साथ मनाया जाता है. इस दिन देवी छिन्नमस्ता के मंदिर को रंगीन रोशनी और फूलों से सजाया जाता है. इस दिन माता छिन्नमस्तिका की पूजा करने के लिए मंत्रों का पाठ किया जाता है. इस दिन सभी भक्तगण माता छिन्नमस्तिका के मंदिर में उनका दर्शन करने और आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं. माँ छिन्नमस्तिका को माता चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है. कई प्राचीन धार्मिक ग्रंथ छिन्नमस्तिका देवी के बारे में बताया गया हैं. मार्कंडेय पुराण और शिव पुराण में माता छिन्नमस्तिका के इस रूप के बारे में व्याख्या की गयी हैं. पुराणों के अनुसार, देवी ने राक्षसों को मारने के लिए चंडी का रूप धारण किया था. और सभी राक्षसों का वध करके देवताओं को जीत दिलाई थी.
छिन्नमस्ता जयंती का महत्त्व -
आमतौर पर छिन्नमस्ता जयंती की पूजा तांत्रिक अनुष्ठानों के अनुसार की जाती है. देवी छिन्नमस्ता की पूजा करने से मनुष्य को समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है और साथ ही सुख और समृद्धि का वरदान मिलता है. माँ छिन्नमस्ता की पूजा करने से मंसूही न केवल अपनी यौन ऊर्जा को नियंत्रित कर सकते हैं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा को भी बढ़ा सकते हैं. देवी अपने साधक को ज्ञान, समृद्धि, विजय, स्वास्थ्य और धन का आशीर्वाद देती हैं. छिन्नमस्तिका पूजा उन लोगों के लिए बहुत प्रभावी है जो बांझपन, यौन रोग और ऋण से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं. माँ छिन्नमस्ता की पूजा व्यावसायिक हानि से उबरने में भी मदद करती है. छिन्नमस्तिका पूजा की सिद्धि के तुरंत बाद परिणाम का एहसास होता है. माँ छिन्नमस्ता की पूजा से समृद्धि, स्थिरता और लंबे जीवन के साथ साथ और भी अनगिनत लाभ होते है. छिन्नमस्तिका मंत्र कुंडलिनी जागरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कुंडलिनी योग माँ के अभ्यास के दौरान मूला धरा चक्र के जागरण के लिए छिन्नमस्तिका मंत्र का जाप किया जाता है.