Indian Festivals

गंगा माँ की आरती

गंगा माँ की आरती  
 
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता, मन वांशित फल पाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

चन्द्र सी ज्योत तुम्हारी, जल निर्मल आता ।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता ।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुखदाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

एक बार ही जो तेरी, शरणागति आता ।
यम की त्रास मिटाकर, परम गति पाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

आरती मात तुम्हारी, जो जान नित्त जाता ।
दास वाही सहज में, मुक्ति को पाता ॥
ॐ जय गंगे माता...

ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता, मन वांशित फल पाता ॥
ॐ जय गंगे माता...
 
 
जय जय भगीरथनन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दिनि,

नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जह्नु बालिका।

बिस्नु-पद-सरोजजासि, ईस-सीसपर बिभासि,

त्रिपथगासि, पुन्यरासि, पाप-छालिका।।1।।

अर्थ – हे भगीरथनन्दिनी! तुम्हारी जय हो, जय हो. तुम मुनियों के समूह रूपी चकोरो के लिए चन्द्रिका रूप हो. मनुष्य, नाग और देवता तुम्हारी वन्दना करते हैं. हे जह्नु की पुत्री! तुम्हारी जय हो. तुम भगवान विष्णु के चरण कमल से उत्पन्न हुई हो, शिवजी के मस्तक पर शोभा पाती हो, स्वर्ग, भूमि और पाताल – इन तीन मार्गों से तीन धाराओं में होकर बहती हो. पुण्यों की राशि और पापों को धोने वाली हो.

बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,

भँवर बर बिभंगतर तरंग-मालिका।

पुरजन पूजोपहार, सोभित ससि धवलधार,

भंजन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका।।2।।

अर्थ – तुम अगाध निर्मल जल को धारण किये हो, वह जल शीतल और तीनों तापों को हरने वाला है. तुम सुन्दर भँवर और अति चंचल तरंगों की माला धारण किये हो. नगर निवासियों ने पूजा के समय जो सामग्रियाँ भेंट चढ़ाई हैं उनसे तुम्हारी चन्द्रमा के समान धवल धारा शोभित हो रही है. वह धारा संसार के जन्म-मरण रूप भार का नाश करने वाली तथा भक्ति रूपी कल्प वृ्क्ष की रक्षा के लिए थाल्हा रूप है.

 
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