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हनुमान जी से जुडी कुछ विशेष बाते

 

जानिए हनुमान जी से जुडी कुछ विशेष बाते


हिंदू धर्म में हनुमान जयंती का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. हिंदी कैलेंडर के अनुसार हनुमान जयंती का त्योहार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के 15 दिन बाद मनाया जाता है. 
हनुमान जी श्री राम के बहुत बड़े भक्त थे. इसी वजह से जो लोग श्रीराम पर आस्था रखते हैं वह हनुमान जी की पूजा जरूर करते हैं. 
हनुमान जयंती के दिन हनुमान मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है. 
हनुमान जयंती के दिन सुबह किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद लोग हनुमान जी की पूजा करते हैं. 
हनुमान जयंती का पर्व एक बहुत ही महान हिंदू उत्सव है. जिसे लोग सांस्कृतिक और पारंपरिक तरीके से मनाते हैं. 
जो लोग हनुमान जी की पूजा श्रद्धा, आस्था, जादुई शक्तियों ताकत और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में करते हैं उनके लिए हनुमान जयंती का पर्व बहुत महत्वपूर्ण होता है. 
हनुमान भक्त हनुमान जयंती के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं. हनुमान चालीसा का पाठ करने से बुरी शक्तियों का नाश हो जाता है और मन को शांति मिलती है. 
इसके अलावा हनुमान जयंती के दिन लोग सुबह स्नान करने के बाद हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी की मूर्ति पर सिंदूर का चोला चढ़ाते हैं. 
इसके बाद लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं और फिर हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद हनुमान जी की आरती करते हैं. 
इस दिन लोग  हनुमान मंदिर की परिक्रमा करने के साथ-साथ और भी बहुत सारे नियमों का पालन करते हैं. हनुमान जी की पूजा करने के बाद लोग अपने माथे पर हनुमान जी के प्रसाद के रूप में लाल सिंदूर लगाते हैं और अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं.

शिव है हनुमान :-
हनुमान जी को भगवान शंकर का ११वा अवतार माना जाता है. 
हनुमान जी ने अपना पूरा जीवन भगवान श्री राम और माता सीता की भक्ति में बिता दिया और आजीवन ब्रह्मचारी रहकर इन दोनों की सेवा की. 
भक्त कई प्रकार से हनुमानजी की पूजा करते हैं. 
हनुमान जी की पूजा करने से जीवन में शक्ति, प्रसिद्धि, सफलता प्राप्त होती है. 
कई लोग सफलता पाने के लिए हनुमान जी का नाम जाप करने के साथ-साथ हनुमान चालीसा का भी पाठ करते हैं. 

हनुमान जयंती की मान्यताएं :-
हनुमान जयंती मनाने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है. एक बार एक बहुत बड़े संत अंगिरा स्वर्ग के स्वामी इंद्र से मिलने के लिए आए. इंद्र ने बहुत ही जोर-शोर से संत अंगिरा का स्वागत किया. इन के स्वागत में स्वर्ग की अप्सराओं ने नृत्य किया. वैसे तो संत अंगिरा को अप्सराओं के नृत्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उन्होंने अप्सराओं का नृत्य देखने की जगह अपने प्रभु का ध्यान करना शुरू किया. जब नृत्य खत्म हुआ तो इंद्र ने संत अंगिरा से नृत्य के बारे में पूछा. तब संत अंगिरा ने कहा कि मैंने नृत्य नहीं देखा, क्योंकि मैं अपने प्रभु के ध्यान में था और मुझे इस तरह के प्रदर्शन में कोई रुचि नहीं है. संत अंगिरा की यह बात इंद्र और अप्सराओं को बहुत बुरी लगी. तब उन्होंने संत अंगिरा का अनादर करना शुरू कर दिया. तब क्रोधित होकर संत अंगिरा ने इंद्र को श्राप दिया की तुम  पृथ्वी को स्वर्ग से कम समझते हो इसी वजह से तुम पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में मादा बंदर के रूप में पैदा होंगे. श्राप मिलने के बाद इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह संत अंगिरा से माफी मांगने लगे. इंद्र की माफी मांगने पर संत को उन पर दया आ गई और उन्होंने कहा कि अगले जन्म में  तुम एक बहुत ही महान भक्त के पिता बनोगे. तुम्हारा पुत्र हमेशा परमात्मा की सेवा करेगा. इसके बाद इंद्र ने अगले जन्म में अंजना के रूप में जन्म लिया और उनका विवाह सुमेरु पर्वत के राजा की पुत्री केसरी से संपन्न हुआ. उन्होंने पांच दिव्य तत्वों जैसे- ऋषि अंगिरा का श्राप और आशीर्वाद, उनकी पूजा, भगवान शिव की कृपा, वायु देव की कृपा और पुत्र श्रेष्ठी यज्ञ के तेज से हनुमान नामक पुत्र को जन्म दिया. हमारे धर्म पुराणों के अनुसार हनुमान जी भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार थे. हनुमान जी के जन्म पर वानर समुदाय के सभी लोगों और मनुष्य ने खुशी और महान उत्साह के साथ नाच गाकर उनका जन्मदिन मनाया. तब से यह दिन हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है. जो भक्त अपने जीवन में सिद्धि धन और सफलता पाना चाहते हैं उन्हें हनुमान जी के मंत्रों के साथ साथ हनुमान चालीसा और हनुमान जी की आरती का पाठ भी करना चाहिए.

हनुमान मंत्र :-
मनोजवं मारुततुल्यावेगम जितेन्द्रियं बुद्धत्तम वरिष्ठम वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्री राम दुतम शरणम् प्रपद्ये
 
हनुमान चालीसा :-
दोहा-
श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधारी, बरनऊ रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि,
बुद्धिहीन तनु जानि के सुमिरो पवन कुमार, बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार,
 
चौपाई :-
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुं लोक उजागर, राम दूत अतुलित बल धामा अंजनी पुत्र पवनसुत नामा महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी, कंचन वरण विराज सुरेशा, कानन कुंडल कुंचित केसा

हाथ वज्र ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे, शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग बंदन

विद्यावान गुनी अति चातूर, राम काज करने को आतुर, प्रभु चरित्र सुनने को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया सूक्ष्म रूप धारी सियही दिखावा, विकट रुप धरि लंक जरावा, भीम रूप धरि असुर संघारे, रामचंद्र के काज संवारे

लाय सजीवन लखन जीआए, श्री रघुपति हरखी उर लाये,  रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई सहस बदन तुमरो जस गावे, अस कहि श्रीपति कंठ लगावे, सनकादिक ब्रह्मादी मुनीशा, नारद सारद सहित अहीशा

यम कुबेर दिगपाल जहां ते, कवि कोविद कहि सके कहां ते, तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाए राजपथ दीन्हा
तुमरो मंत्र विभीषण माना, लंकेश्वर भय सब जग जाना,जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू
प्रभु मुद्रिका मेल मुख माहि, जलधि लांघ गया अचरज नाहीं, दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पठारे, सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना

आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांकते काँपै, भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत वीरा, संकट से हनुमान बचावे, मन क्रम वचन ध्यान जो लावे

सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा, और मनोरथ जो कोई लावे, तासु अमित जीवन फल पावे चारों जुग परताप तुम्हारा है, प्रसिद्ध जगत उजियारा, साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता, राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा तुम्हरे भजन राम को भावे, जन्म जन्म के दुख बिसरावे, अंतकाल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई

और देवता चित ना धरहिं, हनुमत सेई सर्व सुख करहि, संकट कटे मिटे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत वीरा

जय जय जय हनुमान गोसाई, कृपा करो गुरुदेव की नाईं, जो सत बार पाठ कर कोई जोई,छूटहि बंदी महा सुख होई

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीशा, तुलसीदास सदा हरि चेरा,  कीजिए नाथ हृदय महं डेरा

दोहा :-
पवन तनय संकट हरे मंगल मूर्ति रूप
राम लखन सीता सहित हृदय बसा सुर भूप
 
हनुमान जी की आरती :-
आरती की जय हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की

जाके बल से गिरिवर कांपे, रोग दोष जाके निकट न झाके

अंजनिपुत्र महाबल दाई, संतन के प्रभु सदा सहाय

दे बीरा रघुनाथ पटाए, लंका जाय सिया सुधि लाए

लंका सा कोट समुद्र सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई

लंका जाई असुर संघारे, सियाराम जी के काज संवारे

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे, लानी सजीवन प्राण उबारे

पैथी पताल तोरी जम कारे, अहिरावण की भुजा उखारे

बाईं भुजा असुर दल मारे, दाहिनी भुजा सब संत जन उबारे

सुर नर मुनि जन आरती उतारे, जय जय जय हनुमान उचारे

कंचन थाल कपूर लौ छाई, आरती करत अंजना माई

जो हनुमान जी की आरती गावे, वसई वैकुंठ परम पद पावे

लंका विध्वंस किए रघुराई, तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई 

आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की

हनुमान जी से जुडी ख़ास बातें :-
हनुमान जी का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को मंगलवार के दिन हुआ था, हनुमान जी अपने भक्तजनों का मंगल करने के लिए मंगलवार के दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे. 
हनुमान जी को कलयुग का सबसे असरकारक देवता माना जाता है. 
हनुमान जी को कई नामों से पुकारा जाता है. जैसे- महावीर, बजरंगबली, मारुति, पवन पुत्र आदि. 
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार कई सालों पहले बहुत सारी पुण्य आत्माओं ने मनुष्य के रूप में इस धरती पर जन्म लिया और इन दैवी शक्तियों की मदद करने के लिए कई पशु पक्षियों ने भी धरती पर अवतार लिया. 
त्रेता युग में वानर सेना का प्रतिनिधि करने के लिए हनुमान जी का जन्म हुआ. 
हनुमान जी और उनकी वानर सेना का रंग नारंगी रंग का था. जिनका जन्म रामायण से पहले ही धरती पर हुआ था. 
रामायण में बताया गया है कि हनुमान जी ने किस प्रकार वानर रूप में रावण के विरुद्ध होने वाले युद्ध में श्रीराम का साथ दिया था. 

हनुमान जी का जनम :-
हनुमान जी केसरी तथा अंजना के पुत्र थे. इसी वजह से इन्हें केसरी नंदन और अंजनी पुत्र के नाम से भी जाना जाता है. 
ऐसा माना जाता है कि स्वर्गलोक में विराजमान वायु देव ने माता अंजनी के गर्भ में हनुमान को स्थापित किया था. जिसकी वजह से इन्हें पवन पुत्र भी कहा जाता है. 
धर्म पुराणों में बताया गया है कि हिंदू महीने के चैत्र की शुक्ल पक्ष तिथि की पूर्णिमा के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था. 
वैसे तो भारत के अलग-अलग राज्यों में हनुमान के जन्म की अलग-अलग तिथियां मनाई जाती है. 
हनुमान जी के जन्म के दिन को लोग हनुमान जयंती के रूप में मनाते हैं. 
सभी भक्त हनुमान जी के प्रति आस्था और श्रद्धा रखते हैं. 
दक्षिण भारत में मरगजी माह के मूल नक्षत्र में हनुमान जयंती मनाई जाती है. 
महाराष्ट्र में चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को ही हनुमान जयंती का त्यौहार मनाया जाता है. 
बहुत सारे हिंदू पंचांग के अनुसार हनुमान जी का जन्म अश्विन मास की चतुर्दशी तिथि को आधी रात के वक्त हुआ था. 
एक दूसरी मान्यता के अनुसार हनुमान जी का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा के दिन सुबह के समय सूर्य उदय के वक्त हुआ था. 

हनुमान जयंती कैसे मनाई जाती है?
हिंदू धर्म में हनुमान जयंती को धार्मिक तरीके से मनाया जाता है. 
सभी भक्त श्रद्धा और आस्था के साथ इस दिन हनुमान जी की पूजा करते हैं. 
इस दिन हनुमान मंदिरों में भक्तों की लंबी लाइनें लगी रहती है. 
सुबह से ही भक्त हनुमान जी की प्रतिमा पर जल दूध और फूल चढ़ाकर इनकी पूजा करते हैं. 
हनुमान जी को सिंदूर और तेल चढ़ाने का भी बहुत महत्व है. 
हनुमान जी की प्रतिमा पर लगा सिंदूर बहुत ही पवित्र माना जाता है. 
सभी भक्त हनुमान जी की प्रतिमा पर लगा सिंदूर अपने माथे पर लगाते हैं. 
ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी की कृपा पाने के लिए अपने माथे पर हनुमान जी की प्रतिमा पर लगा सिंदूर जरूर लगाना चाहिए.ऐसा करने से मनुष्य शक्तिशाली ऊर्जावान और संयमित रहता है. 
हनुमान जयंती के दिन मंदिरों में सुबह से ही प्रसाद वितरण शुरू हो जाता है. 
कई भक्त हनुमान जयंती के उपलक्ष में मंदिरों में भंडारा भी करवाते हैं.

क्यों हुआ हनुमान जी का जनम?
हनुमान जी का जन्म पृथ्वी को हर संकट से बचाने के लिए हुआ था.  
हनुमान जी शक्ति, स्फूर्ति और ऊर्जा के प्रतीक है. 
अलग अलग कथाओं के आधार पर हनुमान जी का जन्म हर युग में अलग-अलग रूपों में बताया गया है. 
त्रेता युग में हनुमान जी का जन्म राम के सेवक और भक्त के रूप में हुआ था, द्वापर युग में पांडव एवं कौरव के बीच युद्ध के दौरान श्री कृष्ण (जोकि राम के ही अवतार थे) अर्जुन के सारथी थे. 
उसके साथ मिलकर रथ के ऊपर बाल रूप धारण करके युद्ध में अर्जुन की रक्षा की थी. 
हनुमान जी शिव जी के भी अवतार थे. सभी हनुमान मंदिरों में शिव लिंग या शिव प्रतिमा जरूर स्थापित की जाती है. 
हनुमान जी को रूद्र अवतार के रूप में भी माना जाता है. 

क्यों चढ़ाएं हनुमान जी को सिन्दूर?
हिंदू धर्म के अनुसार हनुमान जी का रंग सिंदूरी अथवा के केसर वर्ण का था. इसीलिए हनुमान जी की मूर्तियों पर सिंदूर लगाया जाता है.  
पूजा करते वक्त सीधे हाथ की अनामिका उंगली से हनुमान जी की मूर्ति को सिंदूर लगाना चाहिए. 
हनुमान जी को केवड़ा, चमेली और अंबर की महक बहुत पसंद है. इसीलिए हनुमान जी के सामने इन खुशबू वाली धूपबत्ती या अगरबत्ती जलानी चाहिए. ऐसा करने से हनुमान जी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. 
अगर बत्ती को हमेशा सीधे हाथ के अंगूठे और तर्जनी ऊँगली के बीच पकड़ कर मूर्ति के सामने तीन बार सीधी दिशा में घूमा कर हनुमान जी की पूजा करें. 
हनुमान जी की पूजा करते समय किसी भी मंत्र का जाप कम से कम 5, 11,21, 51 या 101 बार करें. 
वैसे तो हर दिन हनुमानजी की पूजा की जा सकती है, पर मंगलवार के दिन हनुमानजी की पूजा करना बहुत शुभ होता है.

कब कर सकतें हैं हनुमान जी की पूजा?
भारत के अलग-अलग राज्यों में मंगलवार के साथ साथ शनिवार का दिन भी हनुमान जी का माना जाता है. 
भक्त गण मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा, सुंदरकांड आदि का पाठ करके हनुमान जी को प्रसन्न करते हैं. 
शनिवार और मंगलवार के दिन हनुमान जी की मूर्ति पर तेल और सिंदूर चढ़ाने का भी बहुत महत्व माना जाता है.
हनुमान जी की पूजा का महत्व|
हनुमान जी की पूजा करते वक्त अपने मन में जय श्री राम जय श्री राम का जाप करते रहे. 
ऐसा माना जाता है कि जय श्री राम कहने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. 
हनुमान जी राम जी की आज्ञा से समुद्र को पार करके सीता जी को बचाने के लिए रावण की लंका में गए थे और वहां पर उन्होंने अपना बल और शौर्य दिखाते हुए जय श्री राम का नारा लगाकर रावण की पूरी सोने की लंका जला दी थी.
हनुमान जी श्री राम के सच्चे सेवक थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन राम जी की सेवा में बिता दिया था. 
हिंदू धर्म के अनुसार हनुमान जी मंगल दायक मंगल कारक ऊर्जा और स्फूर्ति प्रदान करने वाले देवता है. 
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार हनुमान जी शक्ति और ऊर्जा के दूत हैं. 
हनुमान जी के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है. 
वह जादुई शक्ति तथा दुश्मनों और बुरी आत्माओं से रक्षा करते हैं. 
हनुमान चालीसा की एक पंक्ति "भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे” इसका अर्थ है कि हनुमान जी का नाम लेने से किसी भी प्रकार के भूत पिशाच या संकट आसपास भी नहीं सकते हैं.

हनुमान जी से जुडी कुछ मान्यताएं :-
हिंदू धर्म में बताया गया है कि हनुमान जी की मूर्ति को हमेशा खड़े रूप में होना चाहिए. 
खड़े हनुमान जी की मूर्ति जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है और हनुमान जी के सामने की गई प्रार्थना को हनुमान जी स्फूर्ति के साथ पूरा करते हैं. 
बैठे हुए हनुमान जी की मूर्ति को ध्यान मुद्रा माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि बैठे हुए हनुमान जी की मूर्ति एक ही जगह स्थिर रहती है. इसलिए भक्तों की मनोकामना भी ठहर जाती है. 

हनुमान जी के जन्म को लेकर दो कथाएं प्रचलित है :-
ऐसा माना जाता है कि जब हनुमान जी का जन्म हुआ तब जन्म लेते ही उन्हें जोरों से भूख लगी तब उन्होंने सूर्य को फल समझकर खाने की चेष्टा की. उसी समय राहु भी सूर्य को खाने के लिए आया हुआ था. जब राहु में हनुमान जी को देखा तब उन्होंने इसे दूसरा राहु समझ लिया. इस दिन चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि थी. इसलिए इस दिन को सभी भक्त लोग हनुमान जयंती के रूप में मनाते हैं. 
दूसरी कथा के अनुसार हनुमान जयंती दीपावली के दिन भी मनाई जाती है. इस दिन माता सीता ने हनुमान जी की भक्ति और समर्पण से खुश होकर उन्हें अमर रहने का वरदान दिया था. शास्त्रों के अनुसार इस दिन दीपावली थी. इसीलिए दीपावली के दिन को भी हनुमान जयंती के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. 

हनुमान जी करते हैं सभी मनोकामना पूर्ण :-
ऐसा माना जाता है कि दीपावली के दिन हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाने से वह प्रसन्न होकर आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. 
हनुमान जी का जन्म चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को माता अंजनी के गर्भ से हुआ था. 
हनुमान जी कलयुग में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने जाते हैं. 
सभी भक्त लोग हनुमान जी की कृपा मैं पाने के लिए हनुमान जयंती के दिन सुबह स्नान करने के बाद मंदिर में जाकर हनुमान जी का दर्शन करते हैं. 

हनुमान जी की कैसी मूर्ती करेगी कैसा फल प्रदान :-
अगर आप अपने घर को नकारात्मक शक्तियों के प्रवेश से बचाना चाहते हैं तो अपने घर में हनुमान जी की ऐसी तस्वीर लगाएं जिसमें वह अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे हो. हनुमान जी की ऐसी तस्वीर लगाने से आपके घर में कोई भी नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर पाएगी.

अपने घर में कभी भी ऐसी तस्वीर ना लगाएं जिसमें हनुमान जी पर्वत को लेकर आकाश में उड़ रहे हो. हमेशा हनुमान जी की स्थिर अवस्था वाली मूर्ति की पूजा करें.

जिस तस्वीर में हनुमान जी अपने कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण को बैठाकर उड़ रहे हो ऐसी तस्वीर को घर में नहीं लगाना चाहिए. क्योंकि ऐसी तस्वीर अस्थिरता का प्रतीक होती है.

कभी भी अपने घर में राक्षसों का वध करते हुए या लंका दहन की तस्वीरों को घर में ना लगाएं.

अगर आप अपने घर में सुख और समृद्धि लाना चाहते हैं तो अपने घर में हनुमानजी की युवावस्था में पीले रंग के वस्त्र धारण किए हुए चित्र लगाएं.

अगर आप धन लाभ पाना चाहते हैं तो अपने घर में हनुमान जी की भगवान राम की सेवा करती हुई तस्वीर लगाएं. ऐसा करने से आपके घर में धन की वर्षा होने लगेगी.

घर को नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के लिए अपने घर के मुख्य द्वार पर पंचमुखी हनुमान जी की तस्वीर लगाएं.

अगर आपके घर में हमेशा लड़ाई झगड़े होते हैं तो अपने घर में हनुमान जी की बैठी हुई मुद्रा में लाल रंग की तस्वीर लगाएं. 

इस बात का ध्यान रखें कि हनुमान जी की तस्वीर को हमेशा दक्षिण दिशा में ही लगाएं. ऐसा करने से आपके घर में सुख शांति बनी रहेगी.
 
क्या अभी भी हनुमान जी पृथ्वी पर हैं?
ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी आज भी पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं. 
हनुमान जी को अमरता का वरदान प्राप्त है. इसलिए ऐसा कहा जाता है कि हर 41 साल के बाद हनुमान जी एक आदिवासी समूह से मिलने के लिए आते हैं. 
श्रीलंका के जंगलों में एक आदिवासी समूह मौजूद है जिस से मिलने के लिए हनुमान जी हर 41 साल के बाद प्रकट होते हैं. 
हनुमान जी मातंग ऋषि के शिष्य थे. ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी का जन्म मातंग ऋषि के आश्रम में हुआ था. मातंग समाज के लोग आज भी भारत के दक्षिणी राज्यों में निवास करते हैं. 
जब भगवान राम की मृत्यु हुई तो उसके बाद हनुमान जी अयोध्या से लौट कर दक्षिण भारत के जंगलों में निवास करने लगे. 
कुछ दिनों के बाद वह श्री लंका चले गए. हनुमान जी ने अपने जीवन का कुछ समय श्रीलंका के जंगलों में बिताया. तब इसी आदिवासी समूह के लोगों ने हनुमान जी की बहुत सेवा की. हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्म ज्ञान  प्रदान किया और उनसे यह वादा किया कि वह हर 41 साल के बाद इस कबीले के लोगों को ब्रह्म ज्ञान देने के लिए वापस आएंगे.
 

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