सनातन धर्म व भारतीय धार्मिक ग्रंथों में पेड़, पौधों, जीव, जन्तुओं सहित सम्पूर्ण मानवता को संरक्षण देने हेतु उन्हें धार्मिक भावना से जोड़कर उनके प्रति आदर तथा उनका संरक्षण करने की परम्परा सदियों से कामय रही है।
पेड़ जो कि जीवन का आधार तथा हमारी प्राण शक्ति श्वांस को शुद्ध कर हमारे जीवन का संरक्षण करते चले आ रहे हैं उन्हें संरक्षित करने तथा धरती मां के आंगन में हरियाली बिखेरने के उद्देष्य से प्रति वर्ष हरियाली आमावस को परम्परागत रूप से मनाया जाता है। हिन्दू त्योहार, hariyali amavas, amavasya, hariyali teej,
वृक्षों में नीम, आम, महुआ, पीपल, बरगद, आदि जो हमें फूल-फल व कई तरह की महत्त्वपूर्ण औषधियां प्रदान करते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी सेवा करते चले आ रहे हैं उसमें नीम की बात ही अनोखी है जो अपने रोगनाशक गुणों के कारण जगविख्यात है।
जब वर्षा के कारण चारों तरफ कीट पंतगों के कारण बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है तो ऐसे समय में प्राकृतिक तरीके से नीम आदि वृक्षों के औषधीय गुणों के कारण हरियाली अमावस के पर्व में उसकी डाल को घरों में रखा जाता है। ऐसी मान्यता है यह गुणकारी वृक्ष केवल कीट पतंगो से ही नहीं बल्कि बुरी आत्माओं से भी रक्षा करता है।