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ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले व्रत और त्योहार|

ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले व्रत और त्योहार

अपरा एकादशी

12 महीनों में पड़ने वाली सभी एकादशीया बहुत ही पावन मानी जाती हैं. पर ज्येष्ठ मास में पढ़ने वाली कृष्ण एकादशी को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. इस एकादशी को अपरा एकादशी भी कहा जाता है. अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष उपासना की जाती है

ज्येष्ठ अमावस्या

हिंदू धर्म शास्त्रों में ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. इसका एक कारण यह है कि अमावस्या तिथि के दिन पूर्वजों की शांति के लिए दान तर्पण आदि करना बहुत ही उत्तम माना जाता है. दूसरा ज्येष्ठ अमावस्या को अधिक महत्वपूर्ण इसलिए माना जाता है क्योंकि इसी दिन शनि देव जी की जयंती भी मनाई जाती है. इसके अलावा ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही वट सावित्री का व्रत भी किया जाता है

गंगा दशहरा

गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ महीने में मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार है. यह त्यौहार पतित पावनी मां गंगा के महत्व को दर्शाता है. साथ ही जल का बचाव करने का भी संदेश देता है. गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाते हैं

निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी का व्रत बहुत ही कठिन होता है. निर्जला एकादशी के दिन व्रत करने वाला व्यक्ति जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करता है और साथ ही दूसरों को जल पिलाता है. यह त्यौहार सब्र संतोष और जल का बचाव करने के साथ जल के महत्व को समझने के लिए ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दिन मनाया जाता है. निर्जला एकादशी के व्रत को सभी एकादशी में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है

ज्येष्ठ पूर्णिमा

ज्येष्ठ मास में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन प्रात:काल उठकर किसी पवित्र नदी या अपने घर पर ही अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करने के पश्चात पूजा-पाठ किया जाता है. इस दिन ब्राह्मण को भोजन कराना, गरीबों को दान करना और सत्यनारायण कथा सुनना बहुत ही शुभ माना जाता हैं ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन इन सभी कार्यो को करने से व्यक्ति के शुभ कर्मों में वृद्धि होती है. पौराणिक मान्यताओं अनुसार भी ज्येष्ठ का महीना बहुत ही गर्म होता है इस लिए ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जल का दान अत्यंत उत्तम फल प्रदान करने वाला माना जाता है. ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जल का दान करने के साथ साथ गरीबों को भोजन खिलाने और वस्त्र इत्यादि वस्तुओं का दान करने से भी अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.

वट पूर्णिमा व्रत, कबीर दास जयंती

वट पूर्णिमा व्रत वट सावित्री व्रत के समान ही होता है. इन सभी विवाहित महिलाएं सुख समृद्धि की कामना और अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. वट पूर्णिमा व्रत को मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में वट सावित्री व्रत के रूप में किया जाता है. हम आपको बता दें इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भक्ति काल के प्रमुख संत कबीर दास की जयंती का पर्व भी मनाया जाता है